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वो पहली माल यात्रा (मजा या सजा? )

अक्टूबर 5, 2016 ओये बांगड़ू

पहली बार जब शापिंग माल गए या एस्केलेटर में चढ़े तो क्या एहसास हुआ था ? शायद आप उस एहसास को शब्द न दे पाए हों. मगर हरिद्वार के विनोद पन्त ने अपने पहले माँल अनुभव का जो मालदार वर्णन किया है. उसे पढ़कर जरूर आपको आपकी पहली माल यात्रा याद आ जायेगी. हिन्दी पहाडी के लेखक विनोद की कथा में जो हास्य विनोद है वह ब्रेकेट में दिए शब्दों को इग्नोर करके पढने में है

बच्चों की जिद पर मॉल गया हो साब … क्याप बना ठैरा .
हमारा तो पूरा गाँव समा जाय. दरवाजे पर ही गड़बड़ हो
गयी भीतर कै खुलैगे या भ्यैरकै(अंदर खुलेगा या बाहर)
गजबजी(भ्रम) गया . भीतर जाकर देखा बड़ा
ही चुपड़(फिसलने वाला) फर्श ठैरा . रड़ते रड़ते(फिसलते फिसलते)  बचा … मैलि मंजिल(ऊपर जाने) मे
जाने के लिये घूमने वाली सीड़ी
..आब कसके जाऊ ? बेटा मेरी हालत समझकर बोला
पापा मेरा हाथ पकड़ो कुछ नही होगा . फटक(कूद) मार कर
चढा .पता नही कैसे भगवान की कृपा से
बैलैन्स बन गया वरना मुख लै पतेड़ी(मुंह के बल गिरता) जाता .खुटन
में कम्ब(पाँव कांप गए) जैसी छूट गयी .
बाहाहो गजब महंगाई ठैरी अन्दर .नाम हुवा
पैन्टागन माँल पर मेरे लिये पैन्ट गीली माँल
हो गया .
बजर पड़ जाल इनसे अच्छी तो भोटिया मार्केट
की दुकानें ठहरी .
कुकुरीच्याले सर सर बोलकर पन्नी के
डबल(पैसे) भी काट लेने वाले हुए . भ्यैर निकलते समय
खान तलासी भी दो जैसे हम जेब काटकर
आये हैं .
कसम से ईज्जत के साथ फुल बेईज्जती का अहसास
होता है .

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