ओए न्यूज़

मोबाईल वर्सेज एसएलआर

अक्टूबर 15, 2016 ओये बांगड़ू

राहुल मिश्रा का जंतर मंतर से वही रिश्ता है जो पाव का भाजी से गोल का गप्पे से और पनीर का कुलचे से , बस एक दुसरे के बिना अधूरे . ये कभी 2 घंटे के लिए गायब हो जाते हैं तो पुलिस बेरिकेड इनसे पूछने लगते हैं. भाई साहब कहाँ चले गए थे .

सुबह जब जंतर मंतर धरना स्थल गया तो कुछ पुराने फ़ोटोग्राफ़र मित्रों से मुलाक़ात हुई और फ़िर कुछ ऐसी बातें पता लगी जिनको सुन कर हैरानी भी हुई और एक नयी हकीकत भी पता लगी। लीजिए आप लोग भी सुनिये।
अभी मोबाईल कैमरों ने सबसे ज्यादा फ़ोटोग्राफ़रों के पेट पर ही लात मारी है। हमारे एक मित्र जंतर मंतर के बहुत प्रतिष्ठित छाया-चित्रकारों में से एक हैं। उन्होनें एक किस्सा सुनाया आप लोग भी सुनिए।

वैसे तो अखबारों में  फ़ोटो जर्नलिस्ट रखने का रिवाज भी होता था मगर वख्त के साथ यह रिवाज बदल गया. आजकल फोटो जर्नलिस्ट गिनती के रह गए हैं इसलिए नए फोटोग्राफरों को  इसके साथ कभी कभी किसी शादी वगैरा में भी फोटोग्राफी करना पड़ता है आखिर अपने साथ कैमरे का भी पेट पालना है .

एसे ही एक शादी में  बडे बडे कैमरों से फ़ोटोग्राफ़िंग का काम चालू था और चार चार बन्दे शादी की हर छोटी से छोटी रस्म को कैमरें में कैद करनें के लिए सतर्क थे। उसी में धकियाते हुए एक सज्जन अपनें मोबाईल कैमरे से फ़ोटुआ लेनें में लगे हुए थे और बीच बीच में बतिया भी रहे थे कि तीन मेगा-पिक्सल कैमरा है। मन से एक आवाज आयी ‘अबे ससुर के नाती! चार चार फ़ोटोग्राफ़र लगे हुए हैं और बडे बडे एसएलआर कैमरों से काम चल रहा है और उसमें फ़िर तेरा यह तीन मेगा-पिक्सल कैमरा! भूतिया है क्या ?  मगर क्या करें ये सब मन में ही बोल पाए .

वैसे बात गम्भीर है। फ़ोटोग्राफ़रों की स्थिति वाकई आज कल चिंताजनक है। फ़िर फ़्री लांसरों की पीडा के तो फ़िर कहनें ही क्या! जंतर मंतर पर होने वाले प्रदर्शन को कवर करने वाले फोटोग्राफरों की हालात इस वक्त खस्ता है। वही बताते हैं कि प्रदर्शनकारी खुद ही अपने बंदरों वाले चेहरों की फोटुआ खुद ही ले लेते हैं। बेचारे फोटोग्राफर पंडित जी की चाय पीते ही रह जाते हैं।

हम तो भाई कम्प्यूटर पर हाथ पटकनें वाले आदमी हैं सो आज तक इस सत्य से अन्जान थे, मगर आज मॉर्निंग काल में फ़ोटोग्राफ़रो की असल स्थिति को देखनें का मौका मिला। सच में कैमरे के पीछे का सच कुछ और ही है।  नए बन्दे का इंडस्ट्री में टिकना मुश्किल हो गया है। पुरानी मछलियां नई मछलिओं को निगलनें को तैयार हैं और नए बन्दों को पनपनें का मौका नहीं मिल पा रहा है। देखते हैं भविष्य में क्या होता है।

वैसे आज नए फ़ोटोग्राफ़रों के असली चित्र को देखकर हम थोडे चिंतित ज़रूर हुए तो अपनी बक बक को भाई यहां पटक दिया, बाकी एकदम मजे में।

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