सिन्ना और सिंगाण
इससे पहले की प्रदीप कुछ समझ पाता. उसने खुद को महर्षि विद्या मंदिर के पिछले हिस्से में गिरा पाया और एक सच्चे पहाडी की तरह उसके मुह से पीड़ासूचक आह के रुप में जोर से ओ ईजा ही निकला. पगडंडी से लगभग 10 मीटर नीचे गिरने के बाद उसे बस ये सुनाई दिया
अरे यार ये वो जो क्या था चल भाग तो यहाँ से अब ज्यून भी रहा होगा नि वो.
उरमिल्ला तेरे को तो ना में चित्त धर दूंगी एक दिन पहले नि बता सकती थी कोई और है करके. देख आयें एक बार ( दूर जाती आवाज में उसी महीन लेकिन मोटी आवाज में )
चल तो यार खाल्लि क्या करना है लगि जो क्या होगी एक हि पंच में
सिब्बो लगि तो क्यों नि होगी यार ( फिर दोनों के खिल-खिल्याट )
दोनों ही लड़कियों की आवाज पूरी तरीके से खत्म होने तक प्रदीप पड़ा रहा. घास और सिन्ने ( बिछू घास) के हल्के भूड़ से होते हुए मिटी में गुरकिते हुये गिरने के कारण उसे कोई खास चोट नहीं आई. लेकिन सिन्न्ना अपनी डोस दे चुका था और एक सच्चे पहाड़ी की तरह प्रदीप इस डोज का एंटीडोज जानता था सिंगाण.
सिंगाण नाक से निकलने वाला अपने आप में एक अत्यंत चिफला पदार्थ. जिसका विश्व स्तरीय कोड है घीं. हमारे समाज में कई प्रकार से प्रयोग लाया जाता है जैसे मास्टर के हाथों पर डंडे मारने से पूर्व हाथों पर इसका प्रयोग दर्द को कम करता है. डंडे मारने के पश्चात कई लोग आयोडेक्स की तर्ज पर इसका प्रयोग करते पाये गए हैं. ऐतिहासिक रुप से इसका प्रयोग अत्यंत अलीत और गलीत समझे जाने वाले गरीब लौंडे लफाडो ने बिग-बगल-बम से बनने वाले गुब्बारे बनाने की तर्ज पर भी किया है. तेजस्वी विद्वानो ने इसे बिग-बलगम नाम दिया.
खड़े होकर उसने जितना हो सका उतना सिंगाण नाक से निकाला और उन सभी जगह पर मल दिया जहाँ झन-झनाट थी. सिंगाण के इस एंटीडोज के बाद तेजी से उसने अपने नोट्स पगडंडी पर डाले फिर उसी तेजी से बिच्छू घास का सहारा लेकर उपर आने की पहली कोशिश की. अंजाम वही जो सिन्ना लगने पर होता है और उसकी सादगी ये कि फिर से बिना किसी मादर-फादर के आदरसूचक शब्दों के उसके मुह से वही पीड़ा सूचक शब्द निकला जो एक आम पहाड़ी के मुंह से निकलता है ओ ईजा. जल्दी से प्रदीप ने आँखों से आंसु आने तक सिंगाण रूपी एंटीडोज का इंतजाम किया और हाथों में मलते हुए लम्बे पैदल रास्ते से पगडंडी की ओर चलता बना.
प्रदीप ने पूरा वाकिया हमेशा की तरह केवल अपनी माँ को बताया लेकिन हल्के बदलाव के साथ मुक्का लड़की ने नहीं लड़के ने मारा. हमेशा बेटे को अतिरिक्त लाड़ के आरोपों से घिरी माँ को लगा कि उसके बेटे ने किसी से झगड़ा किया होगा ओर दूरदर्शी सोच के साथ मामले को गुप्त रखा. सिन्ने के मीठे झनझनाट के साथ प्रदीप का बांकि का दिन सामान्य रहा.
अगला दिन प्रदीप के जीवन की एक सामान्य सुबह के साथ शुरु हुआ. हां उसके घर से निकलते हुये एक हाथ में रथ का सफेद 12 लीटर वाला जार और सिर पर तांबे का फौला ( घड़ा ) लिये घर में प्रवेश करती उसकी मां ने ज़रूर फुस-फुसाती आवाज में पूछा था चले जायेगा रे या मैं छोड़ दू. नई नई चले जाऊँगा कहता भागता हुआ प्रदीप रफ्फू हुआ.
इससे पहले प्रदीप कौन था कहाँ से आया था क्यों ये सब हुआ जैसे प्रश्न मन में आ रहे हो और आप इस श्रंखला से नए नए जुड़े हों तो ये रहा पिछ्ला अंक