यंगिस्तान

जोहान्सबर्ग से चिट्ठी – 21

नवंबर 17, 2016 ओये बांगड़ू

भारत में पुलिस का नाम सुनते ही मुसीबत याद आ जाती है. आप भले ही किसी की मदद के लिए ही थाने में क्यों ना जाए लेकिन पुलिस आपकी मुजरिमों से कम सेवा पानी कभी नहीं करती लेकिन बनारस के विनय कुमार बता रहे है जोहान्सबर्ग की पुलिस के बारे में जो ट्रैफिक कण्ट्रोल करते हुए नाचते हुए भी नज़र आ जाती है और जहां थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए परेशानी में पसीना नहीं बहाना पड़ता.

पुलिस एक ऐसा शब्द है जिससे वैसे तो व्यक्ति को सुरक्षा का आभास होना चाहिए लेकिन होता संभवतः इसका उल्टा ही है. हिंदुस्तान में शायद ही कोई शरीफ इंसान ऐसा होगा जिसे अगर ये कहा जाए कि किसी काम के लिए पुलिस के पास चले जाओ तो वह जाना चाहेगा (हाँ, सत्तारूढ़ दल के नेता, अपराधी और दलाल जरूर बेधड़क पुलिस के पास चले जाते हैं) लेकिन इस देश में स्थिति काफी उलट है और लोगों को पुलिस के पास जाने में कम से कम भय तो नहीं ही लगता है.
यहाँ की पुलिस फोर्स दक्षिण अफ्रीकन पुलिस सर्विस (SAPS) है, और इसके अलावा यहाँ पर कुछ म्युनिसिपल क्षेत्रों में म्युनिसिपल पुलिस यूनिट भी है (जोहानसबर्ग, डरबन और केप टाउन में), जिनके पास कम पावर होते हैं. मुख्य रूप से इनका कार्य ट्रैफिक व्यवस्था को चलाना और म्युनिसिपल क्षेत्रों में उनके कानून का पालन कराना होता है.

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यहाँ पर पुलिस के अधिकारियों के रैंक हिंदुस्तान के सेना की तरह होते हैं. सबसे बड़ा अधिकारी जनरल होता है और उसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल, मेजर जनरल, ब्रिगेडियर, कर्नल इत्यादि होते हैं.हाँ सबसे निचले स्तर के कर्मचारी को कांस्टेबल जरूर कहते हैं.कुल पुलिस बल की संख्या लगभग 2 लाख के आस पास है जो दुनिया के बाकी देशों की तुलना में बहुत कम है (हिंदुस्तान में तो लगभग 20 लाख पुलिस कर्मी होंगे जो विश्व में सर्वाधिक है, चीन से भी ज्यादा)
लेकिन यहाँ पर आपको हर चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस या हर मोड़ पर सामान्य पुलिस नहीं दिखती है.अक्सर वीकेंड के पहले शाम को वाहनों की सघन तलाशी होती है और लोग पूरी शांति से इसमें सहयोग करते हैं.सबसे आश्चर्यजनक दृश्य तो तब देखने को मिलता है जब किसी चौराहे की लाइट खराब हो जाती है और वहां पर पुलिस के जवान ट्रैफिक कण्ट्रोल करने आते हैं. न तो इनके पास कोई सीटी होती है जिसे जोर से बजा सकें और न ही कोई शोर शराबा होता है. इसमें बहुत सी महिला पुलिस की सदस्य होती हैं और अगर वो स्थानीय अश्वेत महिला है तो कभी कभी आपको ट्रैफिक नियंत्रण करते करते नृत्य करते भी दिख जाती है.लगता ही नहीं है कि ट्रैफिक नियंत्रण में इनको कोई तनाव होता है. दरअसल यहाँ भीड़ भाड़ नहीं है तो इसके चलते शायद पुलिस को तनाव भी नहीं होता.

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अगर आपकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया है तो आपको नजदीकी पुलिस स्टेशन जाकर एक रिपोर्ट लिखानी होती है जिससे बीमा कंपनी आपको क्लेम का भुगतान कर सके|.अब अगर यह रिपोर्ट आपको हिंदुस्तान में लिखवानी हो तो आपके माथे पर पसीना आ जायेगा, लेकिन यहाँ तो पता ही नहीं चलता. मैं खुद गया था रिपोर्ट लिखाने, पहले तो एक काउंटर पर बैठे पुलिस कर्मी से कुशल क्षेम हुआ और फिर उसने बताया कि फलां पुलिस अधिकारी के पास चले जाईये, काम हो जायेगा. अगले 20 मिनट में रिपोर्ट लिख कर मिल भी गयी. ये अलग बात है कि यह शहर दुनिया के सबसे ज्यादा अपराधग्रस्त शहरों में से एक है.

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यहाँ पर पुलिस के सामानांतर एक और व्यवस्था चलती है जो प्राइवेट सुरक्षा एजेंसीज के द्वारा चलायी जाती है. इस देश में तमाम निजी एजेंसियां हैं जो अलग अलग क्षेत्रों में काम करती हैं. हर बिल्डिंग और हर घर कहीं न कहीं इनके द्वारा सुरक्षित रहता है और उनकी गाड़ियां दिन रात भाग दौड़ करती रहती हैं.दरअसल ये एजेंसियां बड़े बड़े नेताओं द्वारा संचालित होती हैं और शायद इसी वजह से यह उद्योग फल फूल रहा है.अब अगर देश में अपराध घट गए तो इनका धंधा ही बंद हो जायेगा, यहाँ पर अपराधों के नहीं घटने की शायद ये भी एक वजह हो सकती है.
एक और बात जो बहुत सुकूनदायीं लगती है कि यहाँ शायद ही कभी सड़क पर नेताओं के चलते सड़क जाम लगता है. न तो कोई पुलिस के हूटर्स और न ही कोई लाल, नीली बत्तियां जलाती हुई गाड़ियां दिखती हैं. सिर्फ कभी कभी जब देश के राष्ट्रपति निकलते हैं तो थोड़ी दूर तक ट्रैफिक रोक दिया जाता है.
पुलिस का सामान्य व्यवहार भी बहुत दोस्ताना होता है, आप किसी भी पुलिस वाले से बिना किसी भय के कुछ भी पूछ सकते हैं| पुलिस में भ्रष्टाचार तो यहाँ भी खूब है लेकिन शायद ही कभी सामना करना पड़ा है, हाँ एक बार जरूर 20 ज़ार कोक के नाम पर देना पड़ा था (एक पुलिस वाले ने मांग ही लिया था कि कम से कम कोक तो पिलाइये)

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जोहान्सबर्ग से चिट्ठी -20

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