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कृषक महोत्सव 2017

सरकार और आम जनता के मध्य कितनी दूरी होती है उसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण है उत्तराखंड सरकार द्वारा 7 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक चलने वाला कृषक महोत्सव 2017. असौज ( आषाढ़) के महिने सरकार किसानो के द्वार जा रही है. कोई समझाये  पहाड़ में असौज के माह सभी किसान के द्वार खाली मिलेंगे. सारे किसान अपने खेतों में जब जी-तोड़ मेहनत कर रहे होंगे और हमारी सरकार किसान के द्वार जायेगी.

सरकार ने अपनी पहली प्राथमिकता में कृषकों को सस्ते ऋण पर कर उपलब्ध कराना रखा है. क्या सस्ता ऋण किसानों कें खेतों से बंदर और सूअरों का आतंक भगा देगा. पहाड़ में आज खेती करने पर पहली समस्या मैदानी इलाकों से पहाड़ों में ट्रक भरकर छोड़े गये बंदर हैं. दूसरी समस्या सूअरों के आतंक की है. सौल, सियार, नील गाय के आंतक को छोड़ दिया जाये तो भी अन्य  दोनों ही सरकार की प्राथमिकताओं से नदारद है. हाँ किसानों के नाम पर सस्ते ऋण द्वारा जिला पंचायतों के सदस्यो के घरों के आगे एक और गाड़ी खड़ी करनी हो तो अलग बात है.

सत प्रतिशत मृदा स्वास्थ कार्ड पहुँचना सरकार का एक अन्य लक्ष्य है. पर इस कार्ड का किसान उपयोग कहाँ करेंगे? ढाई साल से केंद्र सरकार मृदा स्वास्थय कार्ड का राग अलाप रही है सरकार एक आँकड़ा जारी कर दे जो बताये कि उक्त स्वास्थ्य कार्ड से किसान की आय में कितने ढेले की वृध्दि हुई. बिना किसी तंत्र के सरकार पर्चे बाटे जा रही है. कितने गांव में मृदा जाँच केंद्र खोले गये? मृदा जांच केंद्र में कितनी नियुक्तियाँ की गयी?  हाँ किसानों के कंधे पर एक और बाबू बैठाना है तो अलग बात है.

जल संचय जल संरक्षण सूक्ष्म जल सिंचाई जैसे भारी-भरकम शब्दो से सिचाई क्षेत्र में वृद्दि सरकार की प्राथमिकताओ का एक अन्य हिस्सा है. क्या सरकार जानती है कि पहाड़ों में प्राकृतिक रुप से जल संचय और जल संरक्षण होता है. जब यह राज्य स्तरीय कृषक मेला है तो कम से कम सिचाई के लिये राज्य में प्रयोग गाड़-गधेरे चाल-खाल जैसी शब्दावली का प्रयोग तो कर लिजिये. हाँ पहाड़ के किसानों के हिस्से का पैसा अब सिचाई विभाग में भी बटना हो तो अलग बात है.

सरकार की प्राथमिकताओ में बेमौसमी सब्जी उगाना भी है. पहले मौसमी सब्जी के उत्पादन को तो सरकार संरक्षण दे. बेमौसमी का पीछा करने में सरकार इतना मसगूल हो चुकी है कि प्राथमिकताओ में अपनी विशिष्टता ही भूल गयी. पहाड़ के लिये कृषक मेला पर मडुये मक्के भट्ट मसूर माल्टे का उत्पादन आड़ू घिंगारु आदि के उत्पादन में वृद्धि प्राथमिकता में ही शामिल नहीं है. हाँ जापानियों द्वारा किसी स्थानीय फसल के महत्त्व की घोषणा का इंतजार है तो अलग बात है.

सरकार की एक अन्य प्राथमिकता में पशुपालन का विकास करना है. क्या सरकार जानती है कि पहाड़ में रहने वाले हर घर में पशु पालन पहले से ही किया जाता है. जरुरत पशुपालन के विकास की नहीं पशुपालन से उपलब्ध सामाग्री को बाजार में पहुँचाना है. कुक्कुट पालन मत्स्य पालन को बढ़ावा देना भी सरकार की प्राथमिकता में हैं. जबकि समस्या बाजार की अनुपलब्धता की है. हाँ अब सरकार गांव वालों को अंडा खिला- खिला कर छेरयाना ( पेट खराब होना ) चाहती हो तो अलग बात है.  

महोत्सव के कार्यक्रमों में राज्य की 670 न्याय पंचायतों में विशेषज्ञों का एकालाप आयोजन किया जाना है पूरा पहाड़ जब गाज्यो ( घास ) कटाई में व्यस्त होगा तब ये विशेषज्ञ न्याय पंचायतों में ना जाने किसकी समस्याओं का समाधान करेंगे. ना जाने किसे 2022 तक आय दोगुनी करने का सुझाव देंगे. ना जाने सरकार किसे बीज देगी किसे यंत्र देगी. हाँ विशेषज्ञों को दिवाली का बोनस दिलाना हो तो अलग बात है.

पिछले एक दशक मे किसानो द्वारा आत्महत्या भारत में एक गंभीर समस्या के रुप में उभरी है जिसके पैर अब उत्तराखंड में भी पसरने लगे हैं. उत्तराखंड में अधिकांश किसान सीमांत किसान हैं सरकार को चाहिये ऐसे छ्दमी मेलों के आयोजन से बचे और धरातल किसानों के लिये देश काल परिस्थिति विशेष को देखते हुये योजनाये क्रियान्वित करे.

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