बांगड़ूनामा

खोल भी दो खिड़कियाँ

नवंबर 3, 2016 ओये बांगड़ू

पुरानी पीढी को नयी पीढी से मिलाने की इच्छा के साथ लिखी गयी ये छन्दमुक्त कानपुर से प्रेरणा गुप्ता ने लिखी है.

खोल भी दो खिड़कियाँ…
आने दो ताज़ी हवाएँ नए ज़माने की,  अपने ज़माने में….

क्यों बंद बैठे घुट रहे हो, अभी तक….

अपने गुजरे ज़माने में…

बुला रही हैं ये फ़िजाएँ तुम्हें,

नए ज़माने की ताज़ी हवा में गुनगुनाने को

छोड़ दो जिद्द…

रहने की बंद कमरे में, पुराने ज़माने में…

याद आने दो गुजरे ज़माने की,

ना छोड़ो उन्हें तुम,

वे भी साथी हैं तुम्हारे बीते ज़माने के….

मगर आओ अब चल पड़ो….

खुद के साथ कदम से कदम मिला कर,

नए ज़माने में…

नई राहें भी खुश होंगी, पाकर साथ तुम्हारा…

तुम्हारे बीते ज़माने के तज़ुरबे से…

दोस्ती कर लो उनके साथ अब,

मिलने दो नए ज़माने को पुराने ज़माने से

महका दो अपने प्यार से,

नए – पुराने सुनहरे तजुरबों के साथ….

मिलकर खिलने दो नए आशियाने को

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *