गंभीर अड्डा

कर्बला कथा -अध्याय 5

अक्टूबर 16, 2016 ओये बांगड़ू

मोहर्रम को समझने के लिए इतिहास में झांकना जरूरी है , और इतिहास की खिड़की से मोहर्रम के घटनाक्रम हमें सुना रहे हैं हैदर रिजवी . हुसैन के जैसे बहादुर अब्बास की कहानी जिन्हें अगर लड़ने दिया जाता तो शायद इतिहास में मोहर्रम ना होता.

सभी साथियों के मारे जाने के बाद अब हुसैन के परिवार की बारी थी। ज़ैनब जो अली की बेटी व हुसैन की बहन थीं उन्होंने हुसैन से अपनी बात मानने का वचन लेने के बाद सबसे पहले अपने दोनों बेटों औन तथा मुहम्मद को युद्ध में भेजने की अपील की। एक लम्बी बहस के बाद हुसैन को जैनब की बात माननी पड़ी और आज्ञा देनी पड़ी। इतिहासकारों में इन दोनों बालकों की उम्र के बारे में मतभेद हैं, लेकिन किसी ने भी इनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक नहीं लिखी है।
दोनों बालकों ने बहुत बहादुरी के साथ युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुए। रण क्षेत्र से एक बच्चे की लाश हुसैन और दूसरे की अब्बास उठा कर लाये। कहते हैं कि जैनब करबला के युद्ध के बाद से अगले एक साल तक कभी अपने इन बेटों के लिये नहीं रोयीं।

करबला के युद्ध में हुसैन के बाद सबसे महत्वपूर्ण चरित्र अब्बास का था। अब्बास हुसैन के छोटे भाई और अली के बेटे थे। कहते हैं अली ने बचपन से ही अब्बास को यह कहकर पाला था कि एक समय ऐसा आयेगा जब मैं नहीं रहूँगा और तुम्हारा भाई दुश्मनों में घेर लिया जायगा, उस समय तुम्हें अपने भाई की सहायता करनी है।
इतिहास में अब्बास को अली जैसा बहादुर, वैसी ही क़द काठी और वैसे ही युद्धकौशल में निपुण बताया गया है। यजीदी सेना को भी यदि पूरे युद्ध में किसी से भय था, तो वोह या तो हुसैन से था या अब्बास से।

अब्बास जिस दिन से खेमों में पानी ख़त्म हुआ उसी दिन से हुसैन से युद्ध की आज्ञा मांग रहे थे, किन्तु हुसैन आज्ञा न देते थे। बच्चों की प्यास का तर्क देने पर हुसैन ने तीन दिनों में अब्बास से 7 कुँए खुदवाये, जिनमें से पानी तो न निकला किन्तु प्यासे अब्बास की ताक़त में कमी ज़रूर आ गयी।

औन तथा मुहम्मद की लाश लाने के बाद अब्बास ने फिर हुसैन के सामने हाथ जोड़ दिये कि आका़ युद्ध की आज्ञा न दीजिये, कम से कम बच्चों के लिये पानी लाने की ही आज्ञा दे दीजिये, सकीना कई बार मुझसे पानी मांग चुकी है और अब मेरी ग़ैरत जवाब दे चुकी है। हुसैन कुछ नहीं बोले बस उन्होंने सकीना की मश्क(पानी रखने का चमड़े का पात्र) लाकर अब्बास के अलम(झंडा) पर बाँध दिया और अलम पर लिखा “नसरुम्मिनललाहे फतहुन क़रीब” ( खुदा सफलता को पास लाये) मिटा कर ” इननललाहा माआ साबरीन” ( खुदा संयम रखने वालों के साथ है) लिख दिया। अब्बास समझ गये पानी लाने की आज्ञा तो मिली है किन्तु युद्ध की नही।

हुसैन से आज्ञा मिलते ही अब्बास ने तलवार निकाली और घोड़ा नहर की तरफ़ दौड़ा दिया। यजीदी सेना में जो लोग अली को पहले युद्ध करते देख चुके थे, दूर से आता घोड़ा और उसके सवार को देखकर ही समझ गये और घबराकर चिल्लाये “अब्बास आ गये” ।नहर की सुरक्षा में खड़ी फ़ौजों में अफ़रा तफ़री मच गयी। सेनानायक चिल्लाते रहे कि एक ही आदमी तो है, क्यों डर रहे हो, मत भागो। मगर सैनिक रूकने का नाम हा नहीं ले रहे थे। कुछ दो चार हिम्मत करके सामने भी आते तो अपनी तलवार उठाने से पहले ही परलोक सिधार जाते। घोड़ा और तलवार दोनो बिजली की तरह चल रहे थे। भागती फ़ौजों ने यजीदी सेना के कमांडर तक ख़बर पहुँचायी कि अब्बास मैदान में आ गये हैं। कमांडर ने अपनी बेहतरीन टुकड़ियों को सोने का लालच देकर नहर की और रवाना किया।

इधर अब्बास ने अपना घोड़ा नहर में उतार दिया, मश्क भरी, चुललू में पानी उठाया, लेकिन हमीद इब्ने मुस्लिम लिखता है, अब्बास ने जाने क्या सोचा और घृणा के साथ पानी फेंक दिया। मश्क भरकर अलम के ऊपर बाँधी और भागती फ़ौजों से चिल्लाकर कहा, मैं युद्ध करने नहीं आया हूँ न ही पानी पीने, हुसैन के बच्चों के लिये केवल पानी लेने आया था, यह मश्क गवाह है, और मैं वापस जा रहा हूँ।
यह सुनते ही भागी हुई फ़ौजें पलटीं, नयी पहुँची सेनाओं ने अपनी कमानें सम्भाली, कमांडर ने हुक्म दिया ख़बरदार कोई तलवारों से लड़ने की ग़लती न करना, तीर चलाओ। चारों तरफ़ से तीर बरसे, एक ने दायाँ हाथ काट गिराया, अलम बायें हाथ में पकड़ा लगाम दाँतों में दबायी, बायाँ हाथ भी कटा गिरती मश्क़ दाँतों से सम्भाली तभी कमांडर चिल्लाया मश्क़ पर निशाना लगाओ। एक तीर मश्क से टकराया पानी अब्बास के शरीर से बहता करबला की गर्म रेत पर गिरा, अब्बास का सर हताशा से झुक गया, घोड़े की रफ़्तार थम गयी। मौक़ा पाकर एक सैनिक ने सर पर बुर्ज़ ( गदा जैसा नुकीला हथियार) मारा, अली का शेर मुँह के बल रेत पर गिरा। हुसैन बेटे अली अकबर का हाथ थामे दौड़े ।

हुसैन ने आते ही भाई का सर अपनी गोद में रखा। अब्बास ने कहा आका़ मुझे आपकी शक्ल देखते हुए मरना है, मेरी एक आँख में तीर लग चुका है और दूसरी में उसका ख़ून जम चुका है। हुसैन ने ख़ून साफ़ किया । भाई ने भाईँ को आख़िरी बार देखा। अब्बास ने वसीयत की कि मेरा जनाज़ा खेमों तक न ले जायें और यहीं रेत में दबा दें, मैं सकीना से शर्मिनदा हूँ , मैंने पानी लेकर ही लौटने का वादा किया था। हुसैन ने कहा अब्बास तुमने हमेशा मुझे आक़ा हा कहा एक बार भाई कह कल पुकार लो। अब्बास ने भाई कहा और प्राण त्याग दिये ।

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कर्बला कथा -अध्याय 4

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