मोहर्रम का क्या इतिहास रहा इसके विभिन्न पहलुओं पर इतिहास के झरोखे से नजर डाल रहे हैं हैदर रिजवी , किस तरह प्यास से परेशान हुसैन के परिवार को पानी के लिए तडपना पड़ा ये पढ़िए इस किश्त में चौथी किश्त
जैसा कि पहले बताया कि 7 मुहररम को खेमों का सारा पानी ख़त्म होगया और आठ मुहररम को हुसैन ने भारत जाने की पेशकश की किन्तु यजीदी सेना ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और बैययत न करने की स्थिति में युद्ध की घोषणा कर दी। हुसैन ने यजीदी सेना से 9 मुहररम रात तक की मुहलत माँगी ताकि वो अपने खुदा की एबादत कर सकें।
9 मुहररम की रात हुसैन ने अपने सभी साथियों को बुलाया और कहा कि इस युद्ध में हम सभी की मौत निश्चित है, तुम लोग मेरी मदद को आये तुम्हारा यह परोपकार मैंने स्वीक्रित किया। अब मैं चिरागों को बुझा देता हूँ ताकि तुम लोग वापस लौट जाओ, और रोशनी की वजह से तुम्हें किसी तरह की शर्मिन्दगी न हो। जब चेराग दुबारा जलाये गये सभी साथी वहीं मौजूद थे।
उसी रात हुसैन की सेना की ओर यजीदी सेना की ओर से दो लोग आते दिखाई दिये। हुसैन और उनके साथियों ने बढ़ कर देखा तो यह वही यजीदी सेना का कमांडर हुर था, जिसने हुसैन के कूफा की ओर जारहे काफ़िले को रोक कर करबला की ओर आने को विवश कर दिया था। हुर के साथ उसका बेटा था और हुर की आँखों पर पट्टी बंधी हुई थी। जैसे ही उसके बेटे ने बताया कि हुसैन हैं , वोह हुसैन के क़दमों पर गिर गया और माफ़ी माँगी। हुर ने कहा मौला मुझमें हिम्मत नहीं थी कि आपसे आँख मिला सकूँ , इसलिये आँखों को बन्द कर रखा है। हुसैन ने उसकी आँखें खोली और गले से लगा कर कहा हुर पश्चाताप ही क्षमा है। हुर ने कहा मौला एक विनती और है कल की जंग में मैं और मेरा बेटा आपसे पहले लड़ने जायगा, हम यह नहीं बर्दाश्त कर सकते की हम ज़िन्दा रहें और आपको जंग लड़नी पड़े ।
9 मुहररम की रात बीती और 10 मुहररम 61 हिजरी का सूर्य अपने गर्भ में इस्लामी इतिहास का सबसे काला दिन लेकर रेगिस्तान की तपती ज़मीन पर चमका। हुसैनी खेमों में सुबह से पानी के लिये बच्चों की चीख़ें गूँज रही थीं, औरतें अपने बच्चों भाइयों और शौहरों को होने वाले युद्ध के लिये तैयार कर रही थीं और ताकीद कर रही थीं कि देखो हुसैन कोई सेना का सरदार नहीं है, मुहम्मद का नवासा है, कहीं तुमसे पहले कोई तीर हुसैन को न लग जाय।
फ़ैसला हुआ जो़ह्रर (दोपहर) की नमाज़ के बाद युद्ध शुरू होगा, लेकिन जैसे नमाज़ शुरू हुई तब यजीदी सेना का पहला हमला हुआ। यजीदी सेना ने नमाज़ पढ़ते हुसैन पर तीर बरसाने शुरू कर दिये। जोहरेक़ैन और सईद नमाज़ के सामने खड़े होगये और तीरों को अपनी ढाल और शरीर पर रोकना शुरू कर दिया, ताकि कोई तीर नमाज़ियों को न लगे। सईद तीरों को रोकते हुए वहीं वीरगति को प्राप्त हुए। घायल जोहरेक़ैन ने नमाज़ ख़त्म होते ही हुसैन से इजाज़त ली और घोड़े पर सवार होकर पहला हमला किया। अरब की युद्ध नीति के अनुसार एक से एक का युद्ध होता रहा और जो़हरेक़ैन सबको पार लगाते गये तभी यजीदी कमांडर ने आदेश दिया एक साथ हमला करो लेकिन जो़हरेक़ैन क़ाबू मे न आये, झुँझलाकर कहा तीर चला दो। चारों तरफ़ से घेर कर तीर चलाये गये, जोहरेक़ैन घोड़े से नीचे गिर गये तभी एक सिपाही ने अपना भाला उनके सीने के आर पार कर दिया।
जो़हरेक़ैन के पश्चात् ईसाई नवयुवक जौन रणक्षेत्र में उतरा। जौन का युद्ध कोशल जौन की घुड़सवारी थी, जिससे दुश्मन उन पर हमला ही नहीं कर पाता था। लेकिन आख़िरकार उसे भी तीरों से शिकार किया गया और सर को धड़ से अलग कर दिया। जौन की बूढ़ी माँ और २० दिन की नवविवाहिता बीवी दूर ख़ेमों के पास खड़ी इस युद्ध को देख रही थीं। यजीदी सेना के घुड़सवार ने जौन का कटा सर उठाया और ले जाकर जौन की माँ के सामने फेंक आया।
जौन की माँ ने ग़ुस्से से बेटे का सर उठाया और लेकर तेज़ी से यजीदी सेना की तरफ़ बढ़ीं । फ़ौज समझ नहीं पारही थी कि यह बूढ़ी औरत रणक्षेत्र की ओर क्यों आरही है। जौन का माँ सेना के सामने आयीं और बेटे का सर वापस फ़ौज की तरफ़ उछाल दिया। चिल्लाकर बोलीं ” हम जो चीज़ एक बार हुसैन की राह मे लुटा देते हैं,उसे वापस नहीं लिया करते”
एक एक करके सभी साथी युद्ध करते और वीरगति को प्राप्त होते, हुसैन जाते और एक एक की लाश उठा कर रणझेत्र से खैमों में लाते रहते। हुर, हुर का बेटा, हबीब इब्ने मजाहिर, वह्बे कल्बी, मुस्लिम बिने औसजा, आबिस सभी साथी एक एक कर वीरगति को प्राप्त हुए। अब मर्दों में केवल हुसैन और उनके परिवार के सदस्य शेष रह गये थे। हुसैन के परिवार की औरतें शहीद हुए साथियों के परिवार को सांत्वना देरही थीं। खैमों में मातम छाया हुआ था, बच्चे लाशों को देख दहल चुके थे और अपनी 3 दिन की प्यास भूल चुके थे।
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कर्बला। . पढ़ा वाकई बहुत अच्छा लिखा है जिसने भी लिखा है उसमे एक चीज़ बढ़ाना चाहता हूँ। इस्लामी कानून के अनुसार जब तक कोई चीज़ 6 महीने की नहीं हो जाती तब तक उसकी कुर्बानी नहीं दी जा सकती इसलिए इमाम हुसैन ने यज़ीदी फ़ौज से एक रात का वक़्त माँगा था क्योंकि उनके बेटे अली असगर के 6 माह के होने में एक रात बाकी थी। अलिअसगर का जन्म 9 रजब 60 हिजरी को हुआ था और कर्बला का वाकया 10 मुहर्रम 61 हिजरी को हुआ