गंभीर अड्डा

कर्बला कथा – अध्याय 3

अक्टूबर 14, 2016 ओये बांगड़ू

मोहर्रम को ठीक से समझने के लिए इस्लाम के उस हिस्से को समझना जरूरी है जहाँ से ये सब शुरू हुआ . हिन्दुस्तान भी कर्बला से जुड़ा है ये बता रहे हैं हैदर रिजवी तीसरी किश्त में

3 मुहर्रम यानी अगले ही दिन यज़ीद की पहली दस हज़ार सैनिकों की सेना वहाँ पहुंची. सेना खेमों के पास आई और पहरा दे रहे अब्बास को बुलाकर आदेश दिया की यह हुसैन के ख़ेमे नहर के पास से हटाये जाएँ, यज़ीद का आदेश है. अब्बास ने कहा इस रेगिस्तान में और कहाँ ख़ेमे लगाये जायेंगे , हमारे काफ़िले में औरते और बच्चे हैं पानी से ज्यादा दूर रहना उनके लिए इस रेगिस्तान में बहुत दुष्कर होगा. किन्तु यज़ीदी सेना न मानी और सेना के सरदार ने हुक्म दिया की यदि अब्बास ख़ेमे न हटाये तो हमला करके हटवा दो.

अब यहाँ से शुरू होती हैं करबला के ऐतिहासिक युद्ध की घटनाएँ, इतिहास का पहला युद्ध जिसमें दो सेनाएं नहीं लड़ रही थीं बल्कि ऐसा युद्ध जो एक बड़ी सेना और एक परिवार के बीच लड़ा गया

नहर के पास से ख़ेमे हटा लेने की सुन अब्बास को जोश आगया, और उन्होंने तलवार खींच ली किन्तु हुसैन ने अब्बास को युद्ध से दुबारा रोक दिया और 3 मुहर्रम को ही ख़ेमे नहर के पास से हटा लिए गए.

इसके बाद से दोनों ही और से युद्ध की कोई पहल नहीं हुई. यजीदी की फौजी टुकडियां आ आकर जमा होती रहीं और यज़ीदी सेना की संख्या 6०००० से 2 लाख ( अलग अलग इतिहासकारों के अलग अलग मत हैं) तक करबला में इकठ्ठा हो गयी. कुछ लोग हुसैन से भी आकर जुड़े जिसमें अरब का मशहूर व्यापारी जुहैर इब्ने कैन था , जो की व्यापारिक दौरे पर जा रहा था, जब उसे पता चला के हुसैन को यज़ीदी सेना द्वारा घेर लिया गया है तो तुरंत ही उसने अपनी पत्नी को बुलाकर उसे तलाक  दिया ताकि युद्ध में उसके मरने के बाद उसे जुहेर की बीवी होने के जुर्म में यजीदी सेना परेशान न करे और हुसैन से जा मिला.

हुसैन की सेना में जौन भी अपनी २० दिन की नवविवाहिता बीवी और माँ के साथ आकर जुड़ गया. जौन ईसाई था और मुहम्मद साहब तथा उनके नवासे पर इमान रखता था. जौन के बारे में कहा जाता था वह अकेला ही 1००-2०० की फ़ौज को अपने घोड़े और तलवार के बल पर हरा सकता था.

हुसैन की सेना में हबीब इब्ने मज़ाहिर जो कूफ़े का एक सरदार था और हुसैन के बेटे अली का साथी था और बहुत बूढ़ा हो चूका था अपने दो बेटों के साथ आकर मिला. इतिहासकार लिखते हैं कि करबला के युद्ध के दौरान इस बुड्ढे सिपाही ने वह युद्ध लड़ा था की यज़ीदी सेना ने दांतों तले उँगलियाँ दबा ली थीं.

3 मुहर्रम सन 61 हिजरी को हुसैन के ख़ेमों(तम्बुओं) को नहर के पास से हटाने के बाद यजीदी सेना ने नहर पर क़ब्ज़ा कर लिया और हुसैनी सेना को वहां से पानी भरने के लिए पाबंदी लगा दी. मर्दों ने पानी पीना कम कर दिया ताकि औरतों और बच्चों के लिए अधिक दिन तक पानी संचित करके रखा जा सके . किन्तु 7  मुहर्रम को हुसैनी काफिले के पास एक बूँद पानी न रहा. दुधमुहे बच्चे तक प्यास से तड़प रहे थे. इतिहासकारों ने उस समय कर्बला के रेगिस्तान की जो गर्मी बतायी है वहां किसी व्यक्ति का एक दिन भी पानी के बिना जीवित रहना नामुमकिन था.

इस बीच हुसैन ने यज़ीदी फ़ौज को एक फरमान भेजा जिसमें यह कहा गया था, कि वह युद्ध न चाहते हैं न ही युद्ध करने की नियत से यहाँ आये थे, और न ही उन्हें खिलाफत का कोई मोह है किन्तु यज़ीद यदि हुसैन की राजनिष्ठा चाहता है तो इसे वह ख्वाब ही समझे. यजीद जैसा दुराचारी शाम से लेकर रोम तक का शासक तो हो सकता है किन्तु इस्लाम जैसे धर्म का खलीफा नहीं. यदि यजीद को हमसे या हमारे परिवार से कोई खतरा लगता है तो हमें रास्ता देदे , हम “हिन्दुस्तान” जाना चाहते हैं .

करबला के युद्ध और इमाम हुसैन के जीवन में हिन्दुस्तान का बहुत अहम् स्थान रहा है. एक किस्से के अनुसार रेब जिसे अरबी इतिहास में “राहिब” लिखा जाता है व्यापर के लिए अरब गया. जब उसने मुहम्मद साहब के नए धर्म और उनकी ख्याति के बारे में सुना तो मुहम्मद साहब के दर्शन के लिए मदीना पहुंचा. मुहम्मद साहब से उसने वरदान में अपने लिए संतान मांगी, क्युकी वोह निःसंतान था. हुसैन जो उस समय बालक थे उन्होंने राहिब को कहा जा राहिब तेरे यहाँ 7 बेटे होंगे और उन्हें इतिहास में सदैव हमारे नाम के साथ याद रखा जायेगा.
कर्बला के युद्ध में राहिब के बेटे भी हुसैन की मदद को पहुंचे थे, किन्तु जब वह पहुंचे हुसैन वीरगति को प्राप्त हो चुके थे. इसी तरह भारत में पानीपत के पास से भी दत्त ब्राह्मण और कश्यप गोत्र से सम्बद्ध कुछ ब्राह्मण भी हुसैन की मदद को गए किन्तु वह भी युद्ध के बाद वहां पहुँच पाए.

इराक़ में आज भी राहिब के वंशज और भारत से गए अन्य लोगों के वंशज वहां रहते हैं जिन्हें “हुसैनी ब्राह्मण” कहकर पुकारा जाता है. भारत में पानीपत के पास भी करीब 1०० हिन्दू परिवार उस वंश से हैं जो आज भी हुसैन को याद करते और मुहर्रम में उनका गम मानते हैं.
हुसैन की पत्नी शहरबानो जिसे कुछ इतिहासकार एक भारतीय रजा की बेटी चंद्रकला बताते हैं वह भी भारतीय थीं, किन्तु यह इतिहास इतना पुष्ट नहीं है. हाँ लेकिन यह ज़रूर है की कर्बला में हुसैन द्वारा भारत आने की मांग करना एक गुप्त सन्देश था हुसैनियों के लिए कि हालात खराब होने पर वह भारत की और विस्थापित हों, जैसा कि बाद में सूफियों ने किया भी. उमय्या और अब्बासी खलीफाओं के समय में कई हुसैनी परिवार भारत की और आये. समारा, पंजाब में हुसैन के परपोते की कब्र भी इसका एक प्रमाण माना जा सकता है.

यहाँ यह बताना आवश्यक है कि करबला के युद्ध का जो भी लिखित इतिहास काॅपी किया गया वह हमीद इब्ने मुस्लिम द्वारा कलमबद्ध किया हुआ है। हमीद इब्ने मुस्लिम यज़ीद द्वारा करबला का आँखों देखा हाल लिखने के लिये नियुक्त किया गया था। मतलब इस इतिहास में यह तो गुंजाइश है कि हुसैन और उनके साथियों की वीरता और उन पर हुए ज़ुल्म को घटा कर लिखा गया हो, लेकिन यह सम्भावना नहीं कि बढ़ा चढ़ा कर लिख दिया गया हो।

इससे पहले के दो अध्याय पढने के लिए यहाँ क्लिक करें

कर्बला कथा – अध्याय 2

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