मोहर्रम को ठीक से समझने के लिए इस्लाम के उस हिस्से को समझना जरूरी है जहाँ से ये सब शुरू हुआ . हैदर रिजवी उसी दौर को आसान शब्दों में हमें समझा रहे हैं. पेश है कर्बला कथा की दूसरी किश्त
जनाबे मुस्लिम ने चूंकि इमाम हुसैन को कूफा आने का पत्र पहले ही लिख दिया था सो वह मदीने से अपने परिवार और कुछ दोस्तों के साथ एक छोटा सा काफिला लेकर कूफ़ा रवाना हो गए. इस काफिले में इमाम हुसैन थे उनके छोटे भाई जो अली की जीवित छवि माने जाने वाले अब्बास थे, इमाम हसन जिन्हें ज़हर देकर मारा जा चूका था उनका 16 साल का बेटा कासिम था, हुसैन के बेटे अली अकबर (18 वर्ष) अली असगर (5 माह) बेटी सकीना (6 वर्ष) अली की बेटी ज़ैनब तथा उनके दो पुत्र औन तथा मुहम्मद (12 वर्ष) मुख्य थे. काफिले की मुख्य सूचि इसलिए लिख रहा हूँ क्युकि कर्बला के युद्ध के बाद मुसलमानों ने एक अफवाह यह भी उडाई थी कि हुसैन कूफा युद्ध करने आ रहे थे. तो सूचि देख कर कोई भी समझ सकता है कि युद्ध के मैदान में कोई भी समझदार इंसान औरतों और दुधमुहे बच्चों को लेकर नहीं जाता है.
हुसैन पहले मक्का गए हज करने, किन्तु क़ातिल हाजियों के भेस में मक्का पहुँच चुके थे और हुसैन नहीं चाहते थे काबा के अन्दर खून बहे, तो उन्होंने हज बीच में छोड़ दिया और मक्का से बाहर चले आये.
कर्बला के रास्ते में एक मुख्य घटना यह हुई कि रास्ते में रेगिस्तान की तपती धुप में हुसैन का काफिला एक दुसरे काफिले से टकराया जो रेगिस्तान में भटक गया था और प्यास से तड़प रहा था. इस काफ़िले का पानी भी ख़त्म हो चूका था. हुसैन ने अब्बास से कहा कि इस काफिले के लोगों और जानवरों को अपना पानी पिला दो. पानी पीने के बाद उस काफिले के सरदार हुर ने हुसैन के घोड़े की लगाम पकड़ ली कि उसे यज़ीद के हुक्म से भेजा गया है, हुसैन का काफिला कूफा नहीं जा सकता है, यदि आगे जाना है तो उन्हें युद्ध करना होगा पहले. अब्बास ने तलवार खींच ली किन्तु हुसैन ने युद्ध से इनकार कर दिया और अपना रास्ता बदल दिया.
हुर द्वारा रास्ता बदलवा दिए जाने पर हुसैन समझ चुके थे की उनके नाना मुहम्मद साहब की वोह भविष्यवाणी सच होने का समय आगया, जब उन्होंने कहा था के मेरा बड़ा नवासा हसन धोखे द्वारा ज़हर दिए जाने से मारा जाएगा और छोटा नवासा हुसैन कर्बला में सर काट कर. हुसैन ने रास्ता बदल लिया और 2 मुहर्रम सन 61 हिजरी को एक एक बियाबान सहरा में आगये. आस पास के गांव् वालों से जगह का नाम पता किया, लोगों ने बताया जनाब इसे “नैनवा” कहते हैं. हुसैन को तसल्ली नहीं हुई , कहा गांव् के किसी बूढ़े को बुलाओ. एक बूढ़े व्यक्ति ने बताया की बहुत पहले इस बंजर इलाके को “करबला” भी कहा जाता था. हुसैन ने उससे कहा यह ज़मीन हमें खरीदनी है. बुड्ढे ने कहा “जनाब जब तक यहाँ ठहरना है ठहरिये इस बंजर ज़मीन को मैं क्या बेचूंगा और आप क्या खरीदेंगे. जब आपको जाना होगा चले जाइएगा” हुसैन ने कहा ” हमें यहाँ से जाना नहीं है, अब क़यामत तक हमारा ठिकाना यही होगा”. और हुसैन ने गाँव वालों से वोह ज़मीन खरीद ली. तथा पास बहती एक नहर “अलक़मा”, जो फ़रात नदी से निकल कर वहां आती थी, उसके बगल में अपने ख़ेमे (तम्बू) लगवा दिए. सारा परिवार वहां रुक गया. हुसैन ने अली के बेटे और अपने छोटे भाई अब्बास को सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी.
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