गंभीर अड्डा

कर्बला कथा -अध्याय 6

अक्टूबर 17, 2016 ओये बांगड़ू

मोहर्रम हर साल आता है चला जाता हैलेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि आखिर हुसैन का गम आखिर मनाया क्यों जाता है. इतिहास के झरोखे से जानिये मोहर्रम की दास्तां, हैदर रिजवी की कलम से छठा अध्याय

आपने पढ़ा अली जैसा यह बहादुर योद्धा अली जैसे युद्ध कौशल दिखाने के अरमान मन में ही लिये मात्र 32 वर्ष की अवस्था में इस संसार से विदा हो लिया।

जब तक अब्बास जिंदा थे औरतों और बच्चों को ढाढस थी. जब भी कोई लाश खेमों में आती वे अब्बास को देखते और सोचते की जब अब्बास जायेंगे लड़ने तो कर्बला का मंज़र बदल जाएगा. किन्तु अब्बास की मौत के बाद हुसैन के खेमों का मंज़र बदल गया. औरतों में मायूसी छा गयी, बच्चों को यकीन हो गया कि अब इस ज़िन्दगी में पानी नहीं नसीब होने वाला है.

हुसैन के अट्ठारह वर्षीय पुत्र अली अकबर ने हुसैन से युद्ध की इजाज़त मांगी. हुसैन ने मना कर दिया. अली अकबर अपनी माँ के पास गए , माँ ने हुसैन से काफी इल्तेजा की. हुसैन ने कहा अली अकबर की शक्ल हूबहू नाना मुहम्मद साहब से मिलती है, मुझसे नहीं देखा जायेगा कि कोई मुहम्मद साहब की सूरत वाले मेरे बेटे पर हमला करे. किन्तु पत्नी की जिद के आगे हुसैन को झुकना पड़ा, और अकबर रणक्षेत्र में उतरे.

अली अकबर जब घोडा लेकर आगे बढे तो उन्हें महसूस हुआ कोई पीछे पीछे आरहा है, पलट कर देखा तो बूढा बाप कमर पे हाथ रखे चला आता है. हुसैन कभी चलते और कभी रेत में उलझ कर गिर जाते. अकबर वापस आये पिता पुत्र ने दुबारा आखिरी विदा ली.
अली अकबर में जवानी का भरपूर जोश और अब्बास का सिखाया हुआ युद्ध कौशल था. हालाँकि 3 दिन की प्यास हावी थी. अकबर ने कुछ ही पलों में जंग का मंज़र बदल दिया. घोड़ा हवा से बातें कर रहा था. अली अकबर के घोड़े का नाम “ओक़ाब” था, ओक़ाब एक चिड़िया को कहते हैं जो आसमान में तेज़ी से उड़ते हुए आती है और शिकार को भनक लगने से पहले ही उसे अपने पंजों में जकड कर दुबारा आसमान पर उड़ जाती है. इब्ने ज़्याद बौखला गया. उसने एक साथ का हमला रुकवा दिया और एक -एक के युद्ध का प्रस्ताव रखा. 18 साल के युवक के मुक़ाबिल अरब का एक मशहूर पहलवान भेजा गया. हुसैनी ख़ेमों से युद्ध का मंज़र देख रहे लोगों का दिल दहल गया. पहलवान ने भाला फेंका जिसे अकबर ने तलवार से रोक कर दिशाहीन कर दिया और अपने घोड़े को एड लगाकर अपने जीवन का पहला “तूल का वार” किया.

तूल का वार वोह वार होता था जो अपने से बहुत ही ताक़तवर पहलवान को हारने के लिए किया जाता था. इसमें दुश्मन का पहला वार रोक कर अचानक उसके सर के बीचो बीच एक वार किया जाता था जिससे दुश्मन घोड़े समेत बीच से आधा आधा हो जाय. यह वार अली द्वारा डेवेलोप किया गया था और इसका इस्तेमाल अली ने मरहब के खिलाफ पहली बार किया था.
पहलवान के मरते ही, अकबर ने तलवार हवा में उठायी और हुसैनी ख़ेमों की तरफ मुंह मोड़ा ताकि दूर से अपने पिता का आशीर्वाद ले सकें, इतने में पीछे से हमला हुआ. एक सनसनाती हुई बरछी अकबर की पीठ पर लगी, अकबर पीछे पलटे तभी एक बरछी पेट के आर पार गुज़रकर फँस गयी, अकबर घोड़े से नीचे गिरे. हुसैन खेमों से दौड़े. हुसैन जोर जोर से अकबर अकबर पुकार रहे थे. हुसैन की आँखों के आगे अँधेरा छा गया चिल्लाकर बोले बेटा मुझे आवाज़ दो मुझे कुछ दिख नहीं रहा है. आवाज़ का पीछा करते अकबर के पास पहुंचे. बेटे का सर अपने गोद में रखा. अकबर की बरछी खींचने लगे. हुसैन बेटे को ढाढस बंधाते जाते और और बरछी खींचने की कोशिश करते. या अली मदद कह एक जोर लगाया और बरछी के साथ बेटे का कलेजा निकलकर बाप की गोद में आ गिरा.

हमीद इब्ने मुस्लिम लिखता है, हुसैन सुबह से लाश उठा रहे थे, लेकिन उनमें ज़रा भी थकन न थी, किन्तु अकबर की लाश उनसे कई बार कोशिश करने पर भी न उठी. आखिरकार मजबूर बाप ने लाश को अपने सीने से चिपकाकर चलना शुरू किया, लाश का पैर ज़मीन पे घिसटता जाता था, हुसैन कभी गिरते कभी सँभलते और बढ़ते जाते थे ….

इससे पहले के अध्याय पढने के लिए यहाँ क्लिक करें

कर्बला कथा -अध्याय 5

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *