मिर्जापुर की आंचलिक भाषा अवधी एवम् भोजपुरी का मिश्रण है | उसी मिर्जापुरी बोली में प्रेरणा गुप्ता लाई हैं आपके लिए एक लघुकथा| 35 वर्षों से मिर्जापुर से दूर प्रेरणा को अपनी वह खूबसूरत मीठी बोली बहुत अच्छे से याद है| अपनी बोली में यह उनका पहला प्रयास है|
लागत बाटइ की मलकिन आटा साने बखत आपन अँगूठी पथरा पर रख के भुलाय गई होईयें | बस का रहा….. कल्लो के अँगूठी चुराय बदे अच्छा मउका मिल गवा | तबहीं रिंकी आय
गइन | रिंकी के देखि के कल्लो हड़बड़ाय गइन, आउर टुकुर – टुकुर ताके लगिन |
फिन आपन चोरी छिपाय खातिर ऊ जल्दी से स्टील के गिलासे में पानी पिए लगिन
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रिंकी रहिन त केवल छह बरिस की, मगर रहिन बड़ी सियानी | कल्लो ओकरे तेज
निगाह से नाहीं बच सकिन | पहिली गलती त ई रही कि कल्लो स्टीले के गिलासे
में पानी पियत रहिन | जबकि ओके मलकिन पानी पिए बदे पितरी क गिलास अलग दिए
रहिन | फिन त रिंकी चिल्लाय लगिन,” देsखs मम्मी | कल्लो चोरी किये हईन |
अपने मुँहवा म तोहार अँगूठी चुराय के रक्खे हईन |” ई कहि के रिंकी ओकर
चुटिया जोर – जोर से झन्झोरे लगिन | फिन का रहा …कल्लो भोख्खा फाड़ –
फाड़ के रोये लगिन, अउर अँगूठिया मुँहवा से बहरे आय के गिर पड़ी ! आखिर में
कल्लो क पोल खुलय गवा |
(लौधर – गन्दी, फूहड़ )
(बदे- के लिए)
(लागत बाटइ – ऐसा लगता है )