कल तुम जिससे मिलीं
फोन आया था वहाँ से
तुम तिल भूल आयी हो
सुनो लडकियों ये तिल बहुत आवारा होते हैं
चन्द्र ग्रहण की तरह
काला तिल आनाज नही होता
ये पूरी दुनिया होता है
जिससे मिलो सँभल कर मिलो
ये मिलना भी ज्वार भाटा है जिसमें तुम डूब जाती हो
और भूल आती हो तिल
ये तिल अभिशाप नहीं
देखो!
मेरे हाथ में भी एक तिल है
अम्मा ने कहा खूब पैसा होगा
मुट्ठी तो बाँधों जरा
पर मुट्ठी कहाँ बँधी रही है
जो अब रहेगी
खुल ही जाती है
और दिख जाता है तिल
ये छुप नहीं सकता
और दुनिया ढूँढ लेती है
ऐसे ही
धूप नहीं पड़ती
देखो पर्दा लगा है
पर्दे के भीतर भी
लड़की बदचलन हो जाती है
और तिल आवारा
और तुम हो कि नदी में
छलांग लगाती हो
दीप्ति शर्मा इंजिनियर बनने के बाद कवियत्री बनी हैं. ओयेबांगडू के लिए यह उनकी पहली रचना है