पहाड़ों में मकर संक्रान्ति के दिन घरों में घुघते खजूरे और इसी तरह के अन्य पकवान बनाये जाते हैं,एक तरह से ये माना जाता है कि पूस की सर्द रातें खत्म होने के बाद जब माघ का महीना आता है तो मौसम में थोड़ी सर्दी कम हो जाती है,और इस प्रकृति के परिवर्तन को एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.इसी दिन सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है,इसलिए इसे उत्तरायणी भी कहते हैं.मगर विशेष है इसे मनाने का तरीका,उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में इसे एक अलग तरीके से मनाया जाता है.
इस दिन काले कौओ को घर के बने पकवान खिलाये जाते हैं,वही पकवान जो ऊपर बताये गये हैं. अब आप सोचेंगे भला कौए क्यों खाने लगे ये पकवान, जी कुमाऊँ में कौए घी दूध के बने पकवानों को भी खाने आते हैं और ये दर्शाता है हमारा प्रकृति के प्रति जुड़ाव ,एक एसा जुड़ाव जिसमे हमारे लिए पेड़ पौधे तो ख़ास हो ही जाते हैं साथ ही पशु पक्षी भी हमारी अराधना और उत्सव में शामिल हो जाते हैं.
अब देखिये इस त्यौहार का नाम है पुसुडिया, इस दिन घरों में आटे में घी और गुड डालकर बनाये जाते हैं घुघते और खजूरे, इनके अलावा पूरी खीर वगेरह वगेरह टाईप के बहुत से पकवान,मगर मुख्य होते हैं घुघते और खजूरे, अब इन घुघते खजूरों को गूंथकर छोटे छोटे बच्चों के लिए माला बनायी जाती है, इसे आप इस नजरिये से देख सकते हैं कि घर के बड़े बच्चों को खेल खेल में प्रकृति से जुड़ना किस तरह सिखाते हैं, छोटे छोटे बच्चे सुबह सुबह घुघते खजूरे की माला के साथ घर की छतों में पहली पूड़ी कौओ को देने के लिए जाते है,गाय भैंस कुत्ता जैसे अन्य जानवरों को तो हम साल भर खिलाते ही हैं मगर गौरैया,कौए,कबूतरों को भी हम समय समय पर अलग त्योहारों में उत्सवों में शामिल करते रहते हैं ये प्रकृति से जुड़ने का एक तरीका ही तो है.
खैर उत्तरायनी पर बातें तो अब होती रहेंगी,क्योंकि इस उतरायानी कमल जोशी और उनकी टीम लेकर आ रही है एक शानदार काले कव्वा , इस बार कौओ को बुलाने के लिए एक सुरीला गीत रचा है उनकी टीम ने,जो बहुत जल्द रिलीज होगा, फिलहाल उस गीत का एक पोस्टर रिलीज किया गया है.
इस पुसुडिया आप अपने बच्चों के साथ छत से इस गीत को गाकर कौओं को बुला सकते हैं,कौए भी कहेंगे कि आज के बच्चों ने प्रकृति से जुड़ने के लिए कितना खूब्सूत संगीत रचा है.