चंकी महाराज दिल्ली की सड़कों में इतना विचरते हैं कि इन्हें चप्पा चप्पा गली गली में क्या कहाँ किस भाव में बिकता है सब याद है. बेरोजगार आदमी क्या करता है ? फालतू भटकता है पैदल पैदल बस वही काम इनका भी है. खुद सड़कों में भटक भटक कर लंगर भंडारे का खा खा कर मोटाये हुए हैं और हमें रोज थमा देते हैं एक स्टोरी, कमबख्त लिखते लिखते दिवाली ने निपट जाना है . नाश हो इनका . हे दिवाली वाली मय्या इनकी नौकरी लगा दे ताकि मेरा पिंड छूटे.
दिल्ली की सड़कों में सालों से साईकिल में बिकती आ रही सब्जी कचौड़ी एक तरह से यहाँ का फेमस आईटम कही जा सकती है. चलो पुरानी दिल्ली का ना कहो लेकिन रिंग रोड, कश्मीरी गेट, साउथ दिल्ली आदि की तो माननी पड़ेगी. वैसे फेमस आईटम होता क्या है ? वह जिसे ज्यादातर लोग रोज खाएं या वो जो आसानी से सर्वसुलभ ना हो?
अब जैसे चांदनी चौक के पराठे हैं . उन्हें खाने के लिए जेब में कम से कम 100 रूपये होने चाहिए नहीं तो दिल्ली की ये प्रसिद्ध चीज आप नहीं खा सकते. मगर कचौड़ी सब्जी के लिए 10 रूपया काफी है. रिंग रोड में कश्मीरी गेट में आपको वो हीरो की साईकिल में कचौड़ी से लदे फदे विक्रेता मिल जायेंगे . और इनके आस पास जमा होगी शौकीनों की भीड़ . जी वह शौक़ीन जो बर्गर पिज्जा चाऊमीन मोमो जैसी विदेशी चीजों का बहिष्कार कर चुके हैं और सिर्फ स्वदेशी का शौक रखते हैं .
वैसे तो दिल्ली में कचौड़ियों का इतिहास बहुत पुराना है। दिल्ली में 100 से 70 साल पुरानी कचौड़ियों की दुकानें भी मौजूद हैं। मगर एक पूरी दुकान के सामान को अपनी छोटी- सी साइकिल में बांधकर चलना इन्हें अन्य दुकान वालों के मुकाबले यूनिक बनाता है। इनका काम बहुत दुष्कर है।
दिल्ली में दोपहिया साईकिल में बिकने वाली ये कचौड़ी सब्जी और इसके विक्रेता अपने आप में बहुत ख़ास होते हैं. नीचे देखिये उनकी खासियत .
इनकी दो पहियों की दुकान में गरम सब्जी से लेकर ठंडा पानी तक उपलब्ध रहता है। आपको पैक करके घर ले जानी हो तो उसकी सुविधा भी ये कचौड़ी वाले आपको देते हैं।
इस तरह कचौड़ियां बेचकर अपनी ज़िदगी के 20 साल गुज़ार चुके 65 वर्षीय रामफल यादव बताते हैं कि साइकिल में कचौड़ी बेचने की शुरूआत किसने की यह मुझे नहीं पता। मगर मैंने पुरानी दिल्ली के पास एक साइकिल वाले को 1995 में इस तरह मूंगफली बेचते देखा था और तब मुझे साइकिल में कचौड़ी बेचने का आइडिया आया। दिल्ली में कचौड़ियों की बहुत मांग है। बस इसी को भुनाने के लिए मैंने इसे साइकिल पर बेचना शुरू किया। कचौड़ी बेचने की शुरूआत मैंने कश्मीरी गेट बस अड्डे से की।
एक साइकिल और इतना सामान…
एक दो पहिया साइकिल में 10 लीटर की बड़ी स्टील की बाल्टी में गरम सब्जी, 10 किलो कचौड़ियां, ब्रेड पकौड़ा, सादी पकौड़ी, 20 लीटर पानी, मसाले, चटनी, दो से तीन किलो प्याज, पैक करने के लिए फॉयल पेपर, अखबार, कूड़े के लिए डस्टबीन, सब्जी गर्म रखने के लिए छोटी सी अंगीठी, कोयला और छोटा- मोटा अन्य सामान लटका रहता है।
एक अन्य विक्रेता बताते हैं कि जब गरम सब्जी घर से लेकर चलते हैं तो सबसे बड़ा डर इस बात का रहता है कि सब्जी न छलक जाए। इतने सामान के साथ साइकिल में बैलेंस बनाना बहुत मुश्किल होता है। ऊपर से दिल्ली का ट्रैफिक और गड्ढे वाली सड़कें इन साइकिल सवारों को एक स्टंटमैन बना देती हैं जो रोज़ाना रिस्क लेकर घर से निकलते हैं।
अक्सर कश्मीरी गेट बस अड्डे के आसपास फ्लाइओवर में आपने इन्हें शाम के समय अपना सामान बेचते देखा होगा। जहां पुलिस और एनडीएमसी से छिप- छिपा कर ये ग्राहकों को स्वादिष्ट कचौड़ियां उपलब्ध कराते हैं। वैसे पूरी दिल्ली में इस तरह के विक्रेता आपको नज़र आएंगे मगर कभी उनकी खासियत पर ध्यान नहीं गया होगा। अब कभी गौर से देखिएगा इन स्टंटमैन को, जो ज़िंदगी की गाड़ी खींचने के लिए हर दिन स्टंट करते हैं।
अच्छी कहानी है। साधुवाद!