बाबरी एक् काले अध्याय के रूप में हमेशा याद की जाती रहेगी,ये एक् पुराने स्ट्रक्चर का ध्वंस नही था बल्कि कानून व्यवस्था का ध्वंस था। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने जब 1991 में उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली थी तो सुप्रीम कोर्ट में एक् शपथ पत्र दिया था कि वह कानून व्यवस्था बनाये रखेंगे और मंदिर निर्माण के लिए किसी भी तरह से सत्ता का दुरुपयोग नही होने देंगे । मगर उनके मुख्यमंत्री रहते हुए 6 दिसम्बर 1992 को यह सब हो गया।
उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता कल्याण सिंह की सरकार के नीचे हजारों कारसेवको ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए एक् स्ट्रक्चर को गिराकर यह बता दिया कि वह कानून नियम कुछ नही मानते। उनकी नजर में उनके द्वारा किया हर कृत्य एकदम सही था।
आज 26 साल बाद भी उस जगह पर कुछ नही बन पाया है और हर चुनाव में नेता राम का नाम लेकर चुनाव मैदान में उतरते हैं। आस्था और धर्म से इमोशनल हुई जनता हर बार इनके बुने जाल में फंस भी जाती है और बाबरी ध्वंस को राम मंदिर के निर्माण युद्ध मे हुई पहली जीत के रूप में हर साल याद भी किया जाता है। मगर क्या ये ध्वंस किसी तरह की जीत थी ?
1990 में अयोध्या पहुंचे कारसेवकों पर तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने बर्बरता पूर्वक लाठी चला दी थी। ये पूरी तरह धर्म का रूप ले रहा आंदोलन था जो अचानक राजनीतिक हो चला था,मुलायम को मुल्ला मुलायम कहा जाने लगा और उसकी टक्कर में किसी ऐसे नेता की तलाश ने जोर पकड़ ली जो मुल्ला मुलायम को धर्म की इस लड़ाई में कड़ी टक्कर दे सके। कल्याण सिंह यूपी के कद्दावर नेता थे, प्रखर वक्ता थे और सबसे बड़ी बात एक् कट्टर हिंदूवादी भी थे। इस चुनाव में उन्होंने पूरी तरह से धर्म को राजनीति से जोड़ा और यूपी के सर्वेसर्वा बन गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट को भी उनकी छवि से डर था कि कहीं सत्ता का दुरुपयोग इस संवेदनशील मामले में न किया जाए। इसलिए उन्हें कोर्ट में शपथ पत्र भी देना पड़ा। मगर सत्ता हासिल करने के एक् साल के भीतर ही कल्याण सिंह ने अपने इरादे जता दिए।
कहा तो ये भी जाता है कि बाबरी ध्वंस के अगले दिन मौका ए वारदात पर पहुंचे तत्कालीन सीएम ने राम मंदिर निर्माण की शपथ की, उनके भाषणों में ये जिक्र अक्सर सुना गया कि मुलायम सरकार द्वारा किये गए अत्याचार का बदला उन्होंने ले लिया। लेकिन इसका हासिल आज तक कुछ नही हुआ।
खैर बाबरी को गिरे हुए आज 26 साल पूरे हो गए हैं, कल्याण सिंह सत्ता से गायब हैं, राज्यपाल बनाकर एक् राजभवन की शोभा बड़ा रहे हैं, राम मंदिर का मुद्दा आज भी मुद्दा ही है।
कोर्ट में सुनवाई अभी चल ही रही है। ऐसा लगता है ये सब लम्बा समय और लेगा।
अयोध्या में शांति है, मगर लम्बे समय बाद योगी के रूप में एक् कट्टर हिंदूवादी मुख्यमंत्री जरूर यूपी में सत्ताधीन है। 6 दिसम्बर आते ही इस बार जितनी एक्टिविटी इतनी दूर दिल्ली में बैठे मैंने महसूस की है इतनी आज से पहले कभी नही की। छोटे छोटे समूह राम मंदिर बनाओ के नारे लेकर गली कूचों में घूम रहे हैं। जाने क्यों ये लोग 92 के उन बाबरी ध्वंसक समान लग रहे हैं जो निर्माण कराने को कम और कुछ ध्वंस करने को ज्यादा आमदा हैं। पहली नजर यही कहती है कि 2019 के चुनाव से पहले एक् बार और राम मंदिर मुद्दे को जीवित किया गया है ताकि ये चुनाव भी आसानी से निकल जाए।
इन छोटी बातों को समझना अब बहुत ज्यादा मुश्किल नही रहा क्योंकि 92 से लेकर अब तक 26 सालों में सिर्फ चुनाव से पहले ही यह मुद्दा जोर पकड़ता है उसके आगे पीछे इस मुद्दे में कोई जान नजर नही आती।
आम जनता गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी से परेशान है। देश की कथित तरक्की के नाम पर और ज्यादा दिन फाके करना अब युवा वर्ग को मंजूर नही। पहले हमें रोजगार मिले फिर देश के विकास के ठेके बांटे जाएं, पहले हमारे पेट भरें जाएं बाद में विकसित या विकासशील का रोना रोया जाएगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)