बनारस के विनय कुमार जब गंगा नदी से दक्षिण अफ्रिका की जेक्स्की नदी पहुंचे तो उन्होंने क्या अनुभव किया ये सब दर्ज है इस जोहान्सबर्ग डायरी में , डायरी का पहला पन्ना आपके सामने है. धीरे धीरे पूरी डायरी यहाँ हाजिर होगी. कालेज में पढने वाले सभी युवा इस डायरी को पढ़कर दक्षिण अफ्रीका घूमने का प्लान भी बना सकते हैं.
भारतीय उपमहाद्वीप के आम व्यक्ती का विदेश यात्रा करना बहुत रोमांचक होता है . वैसे भी यहाँ नेपाल को छोड़कर दुसरे किसी देश में आसानी से जाना नहीं हो पाता और नेपाल यात्रा को भारतीय कहाँ विदेश यात्रा कहते हैं, खैर किसी आम भारतीय लड़के के लिए सात समंदर पार जाना, वो भी घूमने के लिए नहीं बल्कि नौकरी करने के लिए, काफी रोमांचक होता है| वो देश अगर दक्षिण अफ्रीका हो, जिसका नाम सुनते ही जेहन में अश्वेत अफ्रिकी लोग और गरीबी इत्यादि पहले आता है, तो क्या कहना | अगर जोहानसबर्ग जाना हो और गलती से आपने गूगल में सर्च किया तो हालत और ख़राब हो जाती है (यह शहर गूगल की दुनियां के सबसे अपराधग्रस्त शहरों में से एक दिखता है)| किसी भी आदमी से बात कीजिये, वो आपको बहुत डरायेगा, ऐसे में आपकी मानसिक स्थिति बहुत सुखद नहीं रह जाती|
कई बार जोहानसबर्ग में काम कर रहे सहकर्मियों से बात हुई, हर बार बस एक ही जवाब होता था “ये जगह बहुत सुरक्षित नहीं है, आवागमन के साधन नहीं हैं और आप को अपनी कार में ही हर जगह जाना होता है| कार का शीशा हमेशा बंद रखना है और हर चौराहे पर बेहद सतर्क रहना पड़ता है”| कई बार मन में आता था कि कहीं गलत जगह तो नहीं जा रहा हूँ (हालाकि बाद में ये विचार गलत ही साबित हुआ)|
इन्हीं तमाम विचारों के झंझावात को झेलते हुए जब जोहानसबर्ग हवाई अड्डे पर उतरा तो मन में काफी चिंता थी| मुम्बई से जहाज रात के दो बजे निकला और सुबह सात बजे जोहानसबर्ग पहुँच गया| साढ़े तीन घंटे के समय के फ़र्क़ को जोड़कर यात्रा लगभग नौ घंटे की थी और शायद ही पूरी यात्रा में कभी नींद आयी हो| बनारस के अगस्त के काफी गर्म मौसम से निकलकर जोहानसबर्ग के ठंडे मौसम में आते ही एकदम से अच्छा लगा और महसूस हुआ कि शायद वो गर्मी यहाँ नहीं मिलेगी अगले कई सालों तक| हवाई अड्डा, जो काफी साफ़ सुथरा था, जो कि हिंदुस्तान में भी है, को चारो तरफ से निहारते हुए हम लोग आगे बढे| सिक्योरिटी चेक को पार करने के बाद सामान लेकर बाहर आने पर पहला झटका लगा| ड्राइवर, जो कि 6 फ़ीट से ज्यादा लंबा और विशालकाय अश्वेत था, उसने सामान को हाथ तक नहीं लगाया| हां, इंतज़ार कर रहे बाकी सहकर्मियों ने ही मदद की और हम कार में सवार होकर होटल की तरफ चल पड़े| ये बाद में पता चला कि यहाँ अपने मुल्क़ की तरह स्थिति नहीं है जहाँ आपका ड्राइवर आपका कुली भी होता है|