यंगिस्तान

जोहान्सबर्ग से चिट्ठी 32

दिसंबर 23, 2016 ओये बांगड़ू

हमारे यहाँ खाना खाते समय नाक पोंछने के लिए सबके सामने अगर छीं, छूं कर दी तो साथ में बैठा आदमी खाना छोड़कर भाग जाएगा, लेकिन जोहान्सबर्ग में ये आम है. उन्हें इन चीजों की इतनी आदत हो गयी है कि सामने बैठा आदमी नाक पोंछे चाहे प्लेट में नाक रगड़ ले उन्हें फर्क नहीं पड़ता. थोड़ा अजीब है खासकर बनारस के विनय कुमार के लिए ये चीज नोट करने वाली चीज थी, आखिर हम टेबल में नाक बहने पर भाग कर वश बेसिन में जाते हैं. पढ़िए एसी ही रोचक जानकारियाँ उस शहर के बारे में जिसे हम विनय की नज़रों से देख रहे हैं.

कुछ और चीजें जो यहाँ आप को आश्चर्य में डाल देती हैं, उनमे से एक है यहाँ पर टिसू पेपर का उपयोग| यहाँ पर लोग आम हिंदुस्तानियों की तरह रुमाल नहीं इस्तेमाल करते, बस टिसू पेपर ही इस्तेमाल करते हैं| (वैसे अब दिल्ली मुम्बई जैसे बड़े शहरों में भी टिसू का बहुत ज्यादा प्रचलन शुरू हो गया है लेकिन यहाँ कि तुलना में अब भी वो कम है ) चाहे खाने के समय हो या खाने के बाद हो, हर जगह सिर्फ टिसू पेपर| वैसे तो यह लोग साफ़ सफाई के लिए बहुत सजग रहते हैं लेकिन अगर आप इनके साथ खाने बैठ गए तो शुरू शुरू में तो आपको बहुत दिक्कत होगी|

अगर खाना जरा भी तीखा है तो इनकी नाक बहनी शुरू हो जाती है और खाने के मेज पर बैठे बैठे ही ये लोग टिसू से नाक साफ़ करते हैं और फिर उस टिसू को जेब में रखकर पुनः खाना शुरूं कर देते हैं| अब आप सोचिये कि आपके ठीक सामने बैठा हुआ व्यक्ति खूब जोर से नाक साफ़ करता है और फिर टिसू जेब में रखकर वापस आप के साथ खाना शुरू कर देता है तो ऐसे में आपको खाना हजम होगा| और अगर खुदा न खास्ता उसको जुकाम हुआ है तो पूरे भोजन के दौरान वह बार बार नाक साफ़ करेगा और खाता रहेगा, भले आपका खाना खराब हो जाये|

खाने के बाद खूब सारा टिसू लेकर हाथ साफ़ करेगा और चल देगा, रुमाल का झंझट ही नहीं| बाकि टॉयलेट में तो यह लोग सिर्फ टिसू पेपर ही इस्तेमाल करते हैं, यह तो सबको पता है|

एक और चीज जो हमें आज ही पता चली वह यह है कि यहाँ का नियम है कि जो व्यक्ति किसी भी जगह जाता है, उसे पहले हाल चाल पूछना है| आप फर्ज कीजिये कि आप हिंदुस्तान में किसी ऑफिस में जाते हैं या किसी और जगह भी जाते हैं तो रिसेप्सन पर बैठा आदमी आपको पहले ग्रीट करेगा, फिर भले आप उसे नमस्कार कीजिये और काम की बात कीजिये| लेकिन यहाँ अगर आप कहीं भी जाते हैं तो रिसेप्सन पर बैठे आदमी को पहले आपको पूछना है कि आप कैसे हैं, फिर वह आपसे पूछेगा और आपकी मदद करेगा|

हमारे परिचित के साथ एक मजेदार वाक़या हुआ था एक बार, उनको किसी ऑफिस में पहुँचने में देर हो रही थी तो उन्होंने गेट पर खड़े गार्ड से कहा कि मुझे देर हो रही है, क्या आप गेट खोल सकते हैं| लेकिन वह गार्ड खड़ा रहा उसने गेट नहीं खोला तो उनको गुस्सा आया और उन्होंने पूछा कि तुम गेट क्यों नहीं खोल रहे तो उसने बताया “आपने मुझसे हाल चाल नहीं पूछा, तो कैसे खोल दूँ”| फिर उन्होंने क्षमा मांगी और उससे पूछा कि आप कैसे हैं, तब जाकर गार्ड ने गेट खोला| मतलब यहाँ आप कैसे हैं नहीं पूछना उनका अपमान करना माना जाता है|

यहाँ के भारतीय, जो कई पुश्तों से यहीं रह रहे हैं, उन्होंने अपने आप को यहाँ के हिसाब से ढाल लिया है| उनमे से अधिकांश को तो यह भी नहीं पता कि उनके दादा परदादा कहाँ से आये थे और बहुत से तो अपने आप को अब दक्षिण अफ्रीकन ही मानते हैं| उनके नाम और सरनेम तो अभी भी काफी मिलते जुलते हैं लेकिन नाम की स्पेलिंग में काफी फ़र्क़ आ गया है| मिसाल के तौर पर एक परिचित हैं जिनका नाम वी गरीब है लेकिन गरीब की स्पेलिंग (Garrib) है| इसी तरह एक और हैं जिनका सरनेम शिवनाथ है लेकिन स्पेलिंग (Sewnath) है| ऊषा की स्पेलिंग (Oosha) होती है, चित्रा की स्पेलिंग (Citra) होती है और विद्या की स्पेलिंग (Vidhiya), ऐसे ही तमाम नाम हैं जिनकी स्पेलिंग पढ़कर आप चौंक जायेंगे लेकिन यह फ़र्क़ यहाँ के हिसाब से हो गया है|

ऐसे ही और कई अजब गजब चीजें हैं यहाँ पर, जिनका जिक्र आगे चलकर होता रहेगा|

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जोहान्सबर्ग से चिट्ठी 31

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