यंगिस्तान

जोहान्सबर्ग से चिट्ठी 18

नवंबर 12, 2016 ओये बांगड़ू

इण्डिया में सामान खरीदते समय ग्राहक भगवान होता है मगर सामान एक्सचेंज करने या लौटाने के समय वह भगवान शैतान बन जाता है. दुकानदार का चेहरा एसे उतर जाता है जैसे उसके सर का बोझ उसे लौटाने जा रहे हों. खैर जोहान्सबर्ग में एसा नहीं होता और जब बनारस के विनय कुमार ने इसे महसूस किया तो उनको भी पहली याद हिन्दुस्तान के दुकानदारों की आयी.

कोई भी व्यक्ति जब पहली बार विदेश जाता है, खास कर ऐसे देश में जहाँ की मुद्रा हिंदुस्तान की मुद्रा से बहुत मजबूत होती है, तो कुछ भी खरीदने पर बहुत कस के झटका लगता है| अब हम भी शुरू शुरू में जब आये थे तो चीजों का दाम सुनने या पढ़ने के बाद सबसे पहले उसे रुपये में जोड़ते थे| उसके बाद लगता था कि इतना महंगा, कैसे खरीदेंगे चीजों को यहाँ पर, फिर याद आता था कि बहुत सी चीजें तो हम हिंदुस्तान से ही खरीद कर लाये हुए हैं तो दिल को तसल्ली मिलती| खैर पहले दिन ऑफिस में पानी पीने के लिए एक बोतल खरीदनी पड़ी और उसका दाम था 100 ज़ार (मतलब उस समय 600 रूपये से ज्यादा)| कहाँ कभी भी 100 रुपये से ज्यादा की बोतल नहीं खरीदी थी और सिर्फ पानी पीने की बोतल के लिए इतने रुपये| यहाँ तक की अगर ट्रैफिक सिग्नल पर किसी भिखारी को देना हो तो 2 ज़ार का भी मतलब होता था 12 रुपये| अब हमने तो हिंदुस्तान में कभी भी किसी भिखारी को शायद ही 5 रुपये भी दिए हों, ऐसे में अपनी मनोदशा की कल्पना आप कर सकते हैं| खैर धीरे धीरे आदत पड़ गयी और अब तो ज़ार और रुपया बराबर ही लगता है|jsf-logo-2016-final

अब चूँकि अपनी शाखा एक बेहतरीन शॉपिंग माल में ही है तो रोज ही एक बार हम लोग चक्कर लगा लेते हैं| कुछ न कुछ तो खरीदना ही पड़ जाता था और फिर झटका लगता था, लेकिन धीरे धीरे समझ आया कि यहाँ साल में लगभग चार बार सेल लगता है| और सेल भी हिंदुस्तान की तरह नहीं कि पहले दाम बड़ा दिए और सेल के नाम पर थोड़ा घटा के बेच दिए| यहाँ पर सेल का मतलब सच का सेल होता है, जो शर्ट आपको एक दिन पहले 500 ज़ार में मिल रही थी, वही शर्ट सेल में 100 ज़ार में भी मिल सकती है|  सेल ख़त्म होने के बाद वापस 500 ज़ार में वही शर्ट मिलेगी आपको|  यहाँ के निवासी चूँकि इन सब से वाकिफ होते हैं तो ये लोग सेल का इंतज़ार करते हैं और ढेर सारी खरीददारी करते हैं सेल में|cx9bypvumaaeiww

एक और बात है यहाँ, सेल में दाम घटाने के बाद कपड़ों या अन्य चीजों के दाम के ऊपर घटी हुई कीमत का स्टिकर लगा देते हैं| और अगर गलती से सेल ख़त्म होने के बाद भी घटी हुई कीमत का स्टिकर नहीं बदल पाए तो जो भी स्टिकर पर दाम है, उसी में दे देंगे| कोई हुज़्ज़त नहीं कि गलती से रह गया था, इत्यादि|

सबसे बड़ा आश्चर्य तब होता है जब आप कोई चीज लौटाने जाते हैं| आप कल्पना कीजिये कि हिंदुस्तान में कोई चीज आप खरीदने के बाद लौटाने जाते हैं तो दुकानदार का चेहरा ऐसा बनता है जैसे आप उसका बहुत बड़ा नुक्सान करने आ गए हैं| उसके बाद आपको पूरी कैफियत देनी पड़ती है, फिर कुछ चुने हुए दिनों और निश्चित समय पर ही वह सामान वापस करता है, और अधिकतर मामलों में आपको नकद नहीं देता बल्कि आपको कुछ और खरीदना पड़ता है| लेकिन यहाँ तो एकदम राम राज्य है, आप जब चाहें, जिस भी हालात में सामान लौटा दीजिये, कोई सवाल नहीं, इनके माथे पर शिकन भी नहीं आती, आपको पूरे पैसे मुस्कुराते हुए लौटा देते हैं (मतलब सामान खुल गया हो और मुड़ तुड़ भी गया हो, कुछ दिन इस्तेमाल भी कर लिए हो| मिसाल के तौर पर आपने रेबैन का चश्मा ख़रीदा तो वह आपको कहेगा कि आप अगर संतुष्ट नहीं हैं तो एक हफ्ते के अंदर किसी भी दूकान पर, जहाँ यह बिकता है, लौटा सकते हैं| कुछ लोगों को मैंने ये करते भी देखा है, चश्मा लिया, दो चार दिन रौब जमाया और फिर लौटा दिया, दूकान वाले के चेहरे पर शिकन भी नहीं आती) इसलिए लोग यहाँ सेल में कई महीनों की चीज खरीद डालते हैं| और साल में एक बार ब्लैक फ्राइडे को तो भयानक सेल होती है और उस दिन दुकानों में लंबी लंबी कतारें दिखती हैं|   final-clearance-sale-full-page-image

मतलब यहाँ समझदारी और बेफिक्री दोनों का गजब का संगम देखने को मिलता है लेकिन लोग जिंदगी बहुत शानदार जीते हैं यहाँ|

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जोहान्सबर्ग से चिट्ठी -17

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