औपचारिकताओं का देश है अफ्रिका यहाँ खुद को विन्रम दिखाने के लिए लोग टायलेट में तक हालचाल पूछने लग जाते हैं. बनारस के विनय कुमार को इन औपचारिकताओं से निपटने में क्या अनुभव हुए पढ़िए डायरी की इस अनमोल चिट्ठी में
कुछ और बहुत दिलचस्प चीजें यहाँ देखने को मिलती हैं| दर असल इस देश में औपचारिकता की पराकाष्ठा दिखती है| लोग तो यहाँ पर इस तरह से क्षमा मांगते हैं जैसे हम लोग साँस लेते हैं| अब उदाहरण के तौर पर फर्ज कीजिये कि आप किसी शॉपिंग माल या कहीं भी पैदल जा रहे हैं और आपके सामने कोई व्यक्ति आ जाता है| अब ऐसे में हम हिंदुस्तानी अमूमन थोड़ा सा हट के या रगड़ते हुए निकल जायेंगे, लेकिन यहाँ पर ऐसा नहीं होता है| ऐसी स्थिति में 100 में से 95 लोग रुक जायेंगे और आपसे तुरंत सॉरी बोलेंगे, तब रास्ता बदलेंगे| और अगर दोनों तरफ यहाँ के लोग हैं तो स्थिति और दिलचस्प होती है, उनमें अधिक विनम्र होने की जैसे होड़ लग जाती है|
सबसे हास्यास्पद स्थिति तो तब होती है जब आप टॉयलेट में हों, अपना काम निपटा रहे हों और आपके बगल वाली स्थान पर आकर कोई स्थानीय व्यक्ति खड़ा हो जाए| अब ऐसे में अगर आपकी निगाह उस व्यक्ति से टकरा गयी तो मान के चलिए कि उस अवस्था में भी आपको अपना हालचाल बताना पड़ सकता है| हमारे ऑफिस के सामने एक चार्टर्ड अकाउंटेंट का ऑफिस था और उसका मालिक एक बेहद बुजुर्ग व्यक्ति था| अब आमने सामने ऑफिस होने कि वजह से लिफ्ट में भी मुलाक़ात हो जाती थी और हम एक दूसरे को पहचान गए थे| खैर जब ऑफिस के सामने, लिफ्ट में या शॉपिंग माल में (हम लोगों का ऑफिस एक शॉपिंग माल में ही है) मुलाक़ात होती थी तब तो ठीक था एक दूसरे की कुशल क्षेम पूछना| लेकिन सबसे खतरनाक तो तब लगा जब एक दिन टॉयलेट में हम लोग अगल बगल खड़े थे और जैसे ही उनसे नजर मिली, शुरू हो गए “आप कैसे हैं”| अब शर्मा शर्मी में हमने भी कह दिया ठीक हूँ, लेकिन अब अगर उनका हाल चाल नहीं पूछता तो असभ्य हो जाता| इसलिए बहुत हिचकते हुए उनका हाल चाल भी पूछना ही पड़ गया| अब आप कल्पना कर सकते हैं कि अपनी क्या हालत थी लेकिन उनके लिए तो ये सामान्य शिष्टाचार था| इसके बाद दो तीन बार और ऐसा ही संयोग हुआ तो टॉयलेट जाने में भी हिचक होने लगी कि कहीं फिर न टकरा जाएँ| (अब वो ऑफिस शिफ्ट हो गया है तो काफी राहत है)
टॉयलेट से याद आया, यहाँ पर सफाई का काम अश्वेत महिलाएं ही करती हैं और टॉयलेट चाहे महिलाओं का हो या पुरुषों का, उसे महिलाएं ही साफ़ करती हैं| सफाई करने के समय संकेत के तौर पर वो टॉयलेट के बाहर एक पानी का बर्तन जैसा रख देती हैं ताकि उसे देखकर कोई अंदर न आये| अब शुरू शुरू में तो यह पता नहीं था इसलिए सीधे घुस जाया करते थे | धड़धड़ाते हुए टॉयलेट में घुसे और सामने महिला कर्मचारी खड़ी थी| अब काटो तो खून नहीं, न आगे बढ़ते बनता था और न वापस भागने कि हिम्मत| खैर अब तो आदत भी पड़ गयी है और संकेत का भी पता चल गया है तो शर्मिंदगी से बच जाते हैं|
एक और बेहद अजीब बात है इस देश में कि यहाँ अधिकतम खुदरा मूल्य का कोई कांसेप्ट ही नहीं है| मतलब एक ही चीज आपको एक दूकान में एक मूल्य में और उसी के बगल वाली दूकान में उससे कई गुना ज्यादा दाम में मिलेगी| दर असल अधिकतर चीजें यहाँ आयात की जाती हैं और जिस दुकान की जो मर्जी, वह कीमत लेता है| एक बार एक साधारण सा रजिस्टर हम लोगों ने ख़रीदा जो काफी महंगा लगा (लगभग 650 रुपये का था)| कुछ ही दिन बाद वही रजिस्टर उसी के ठीक बगल वाली स्टोर में मिला जिसकी कीमत लगभग 60 रुपये थी, मतलब दस गुने का फ़र्क़| अब आप की मर्जी है कि आप ये सब पता लगाते रहें, वर्ना तो लुटना तंय है|
एक और बहुत अजीब बात देखने को मिली यहाँ पर, यहाँ पर जुड़वाँ बच्चे बहुत देखने को मिलते हैं| मैंने अपने जीवन में जितने नहीं देखे थे, यहाँ शायद एक साल में ही देख लिए| जुड़वाँ बच्चों की गाड़ी भी खूब देखने को मिलती है यहाँ और कभी कभी तो तीन बच्चे भी दिख जाते हैं| एक और फ़र्क़ है यहाँ, हिंदुस्तान में तो महिलाएं बच्चों को कमर पर टाँग के घूम लेती हैं लेकिन यहाँ पर दो अलग अलग वर्ग दो अलग अलग तरीके से बच्चों को ढोते हैं| जो अमीर (मुख्यतयाः श्वेत आबादी) हैं वह महिलायें या तो बच्चों को बच्चा गाड़ी में घुमाती हैं या अपने पीछे एक आरामदायक बैग जैसे सामान में टाँग कर घूमती हैं| लेकिन तो गरीब आबादी है उसे ये बच्चा गाड़ी लेना महंगा पड़ता है तो ये महिलायें बच्चों को अपनी पीठ पर तौलिये के सहारे बांध लेती हैं और घूमती हैं| बच्चे भी बड़े आराम से बिना कोई शोर किये तौलिये से बंधे हुए घूमते रहते हैं|
वैसे एक बात तो है कि यहाँ के बच्चे अमूमन बहुत खामोश रहते हैं, बच्चों का रोना चिल्लाना बहुत दुर्लभ दृश्य है यहाँ|
पुरानी चिट्ठियों से जोहान्सबर्ग के अंदर झाँकने के लिए इधर अंगूठा टेकें