भारतीय जहाँ जाते हैं अपने जैसा माहौल बना ही डालते हैं, अफ्रिका के इस शहर को भी भारतीयों ने अपने रंग में रंग रखा है. बनारस के विनय कुमार जब पहली बार यहाँ गए तो क्या देखा क्या महसूस किया पढ़िए इस चिट्ठी में
यहाँ पर सबसे ज्यादा जो चीज हम हिंदुस्तानियों को खलती है, वह है सड़क के किनारे चाय पकोड़े की दुकान का नहीं होना| डरबन और केपटाऊन, जो इस देश के अन्य महत्वपूर्ण शहर हैं, वहां तो फिर भी सड़क के किनारे दुकानें मिल जाती हैं, लेकिन जोहानसबर्ग में तो आपको कुछ भी खरीदना है तो आपको शॉपिंग माल में ही जाना होगा| सुरक्षा की वजह से यहाँ सड़क पर दुकानें नहीं मिलती हैं, इक्का दुक्का कहीं कहीं दिखती भी हैं तो वह सिर्फ स्थानीय अश्वेत लोगों के लिए ही होती हैं|
लेकिन इसी शहर का एक हिस्सा है फोर्ड्सबर्ग, जो कि एक तरह से मिनी एशिया है| इस जगह हर तरह की भारतीय चीज जैसे सरसो का तेल, पोहा, जलेबी इत्यादि मिल जाती है| आपको बेहतरीन इडली डोसा खाने को मिल जाएगा और तमाम तरह के भारतीय पकवान भी मिलेंगे| इस एरिया में हिंदुस्तानी, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी दुकानदार हैं और उनका अपना ग्राहक बेस है| अधिकतर बाल काटने की दुकानें
पाकिस्तानियों की हैं तो मीट और मछली की दुकान बांग्लादेशियों की| इस इलाके में आने के बाद आप खुद को हिंदुस्तान के ही किसी हिस्से में महसूस करते हैं| दरअसल यहाँ गन्दगी का साम्राज्य है और ट्रैफिक नियम का भी उतनी कड़ाई से पालन नहीं होता है| आपको पूजा पाठ की सारी सामग्री भी यहाँ मिल जाएगी और होली में रंग तथा दीवाली में पटाखे और दिए भी यहाँ पर मिल जाते हैं| कुछ चाय और पान की दुकान भी यहाँ हैं और बांग्लादेश से इम्पोर्टेड रोहू और कतला मछली भी यहाँ मिल जाती है जो बेहतरीन क्वालिटी की होती है| उतनी बढ़िया क्वालिटी की रोहू तो मैंने शायद ही कभी हिंदुस्तान में खायी होगी| एक खास दुकान है यहाँ पर, एक मीट की दुकान है जिसमें सभी सेल्स काउंटर पर सिर्फ मुस्लिम महिलाएं काम करती हैं| एक और खासियत है यहाँ की, यहाँ मटन का मतलब लैम्ब (भेड़) होता है| दरअसल यहाँ पर लोग लैम्ब ही खाते हैं, बकरे का मीट बहुत कम खाया जाता है| लेकिन फोर्ड्सबर्ग में आपको बकरे का मीट भी मिल जाता है| दिक्कत सिर्फ होटल्स में होती है जहाँ आपको बकरे का गोश्त नहीं मिलता है|
शुरुआत में एक बार दिलचस्प वाकया हुआ| फोर्ड्सबर्ग में एक सब्जी की दुकान, जो अमूमन फुटपाथ पर लगती है, से सब्जी खरीदकर चलते समय हमने थैंक्यू कहा तो उसने जवाब में शुक्रिया बोला| इस देश का स्थानीय सब्जी बेचने वाला हिंदी बोल रहा था, ये मेरे लिए बेहद अजीब बात थी| फिर तो उससे खूब बात हुई हिंदी में और उसने बताया कि हिंदुस्तानी ग्राहकों से ही उसने हिंदी सीखी है| अब तो बस उसकी की दुकान से सब्जी लेता हूँ, उससे बात करके काफी अच्छा लगता है| कुछ और दुकानदार भी हिंदी के कुछ शब्द जानते हैं और हम लोगों को देखकर अक्सर बोलते भी हैं|
इस शहर के कुछ और हिस्से भी ऐसे हैं जहाँ हिंदुस्तान के लोग बहुतायत में रहते हैं और वहां पर खूब सारे मंदिर और मस्जिद भी हैं, उसके बारे में अगली चिट्ठी में|
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