भारत की तरह यहाँ कहीं भी चाय की दूकान पर खड़े होकर सुट्टा पीने का रिवाज नहीं है, बाकायदा स्मोकिंग सेंटर बनाये हैं गवर्मेंट ने , माल पार्किंग फैक्ट्री सब जगह स्मोकिंग एरिया बने हैं, कैसे अलग है यहाँ की स्मोकिंग पढिये जोहान्सबर्ग डायरी में ,बनारस के विनय कुमार बता रहे हैं आज की चिट्ठी में .
कुछ और अजीब चीजें भी यहाँ देखने को मिलती रहती हैं, बशर्ते आप आँखें खोल के निकलें| लोग यहाँ धूम्रपान बहुत करते हैं लेकिन बिलकुल अनुशासन में| हर माल या फैक्ट्री, कार्यालय में धूम्रपान की जगह नियत है और लोग उसी जगह पर जाकर सिगरेट पीते हैं| खासकर पार्किंग में तो अक्सर लोग सिगरेट पीते नजर आ जाते हैं और कार चलाते हुए भी खूब सिगरेट पीते हैं| किसी भी रोबोट (ट्रैफिक सिग्नल) पर आप रुकते हैं तो अपने चारो तरफ देख लीजिये, बहुत से लोग धूम्रपान करते दिख जायेंगे| लेकिन एक अजीब बात जो मुझे देखने को मिली वो ये थी कि पुरुषों के तुलना में यहाँ महिलाएं ज्यादा धूम्रपान करती दिखती हैं| हुक्का भी खूब फैशन में है और जगह जगह हुक्का बार हैं जिनमें कहीं कहीं तो पूरी रात युवक युवतियां आपको हुक्का पीते नज़र आ जायेंगे|
सबसे ज्यादा मजा तो तब आता है जब आपको किसी ट्रैफिक सिग्नल पर कोई महिला कार चालक अपनी भौहें बनाती दिख जाती है| कार में मेकअप करना तो सामान्य बात है यहाँ और कभी कभी तो भीड़ में धीरे धीरे कार चलाते हुए महिलाएं पूरा मेकअप कर डालती हैं| खैर मेरी नजर में तो बहुत साधना की जरुरत होती होगी इसके लिए|
शुक्रवार को दोपहर बाद अगर आप माल या किसी शॉपिंग सेंटर में जाएंगे तो आपको बहुत चहल पहल नजर आएगी| लोग वीकेंड के लिए खाने पीने का सामान और बाकी जरुरत की चीजें खरीद लेते हैं और फिर अगले दो दिन तक मस्ती करते हैं| लोगों से अगर आप शुक्रवार शाम को बात कीजिये तो कमोबेश एक ही बात सुनने को मिलती है “बहुत थक गए हैं, बहुत लंबा हफ्ता था”| अब इनको कौन समझाए कि एक बार हिंदुस्तान जाकर काम करिये तो समझ आये कि थकान और काम क्या होता है|
महीने में अमूमन 25 या 26 तारीख को यहाँ पे डे (तनख्वाह का दिन) होता है और उस हफ्ते तो चहल पहल देखने लायक होती है| अधिकतर लोगों की तनख्वाह अगले 10 दिन में ख़त्म हो जाती है और फिर लोग अगली तनख्वाह का इंतज़ार करते हैं| जिंदगी को सिर्फ आज में जीने वालों की यहाँ बहुतायत है और बचत क्या होती है, इनको पता भी नहीं होता| अब चूँकि हर चीज ही यहाँ किश्तों में मिल जाती है तो लोग बहुत चिंता करते भी नहीं हैं| यहाँ पर हर बड़े स्टोर का अपना एक कार्ड होता है (क्रेडिट कार्ड जैसा) और उससे लोग सामान को किश्तों में खरीद लेते हैं| यहाँ तक कि एक चप्पल भी आपको किश्त में खरीदने की सुविधा मिलती है और जब तक उसका भुगतान पूरा हुआ तब तक वह टूट भी जाती है|
और एक हम लोग हैं कि तनख्वाह मिलने के बाद सबसे पहले बचत के बारे में ही सोचते हैं|
पुरानी चिट्ठियों के दर्शन करने के लिए इस मंदिर में आयें