यंगिस्तान

जोहान्सबर्ग से चिट्ठी 11

अक्टूबर 29, 2016 ओये बांगड़ू

भारत की स्कूलिंग की तरह ही बाहर की स्कूलिंग में भी कुछ समस्याएं और कुछ फायदे हैं . लेकिन भारतीय बच्चों को उनके अनुशासन के कारण खासी तवज्जो दी जाती है. जोहान्सबर्ग में हुए स्कूलिंग के अलग अलग अनुभवों को हमारे साथ बाँट रहे हैं बनारस के विनय कुमार . वही आपकी हमारी प्यारी जोहान्सबर्ग की चिट्ठी

बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए यहाँ बेहद सुकूनदायी माहौल है, पढ़ाई पर कम जोर लेकिन व्यक्तित्व विकास पर ज्यादा| अपने देश के बच्चों को देखिये, उनके वजन से ज्यादा उनके बस्ते का वजन होता है लेकिन यहाँ पर स्थिति काफी अलग और बेहतर है| यहाँ पर शैक्षणिक वर्ष यानी कक्षाएं जनवरी से प्रारम्भ होती हैं और नवम्बर में आखिरी परीक्षा ख़त्म| यानी पूरा दिसंबर बच्चों की छुट्टी, इसके अलावा भी साल में कई बार लंबी लंबी छुट्टियां होती रहती हैं और बच्चों पर पढ़ाई का तनाव अमूमन नहीं दिखता है| शायद इसीलिए यहाँ शिक्षित लोगों का प्रतिशत भी काफी ज्यादा है, लगभग 92 प्रतिशत|

अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल नाम का एक स्कूल यहाँ ऐसा है जिसका शैक्षणिक वर्ष भारत के हिसाब से है, लेकिन वहां पर एडमिसन के लिए लंबी लाइन होती है| और अगर इसके फीस को आप सुनेंगे तो होश फाख्ता हो जायेंगे, बहुत ही ज्यादा है| एक साल की फीस लगभग 3० लाख रूपये होती है और उसके अलावा तमाम खर्चे अलग से , मतलब अगर आप वहां पढ़ाने का सोच रहे हैं तो फिर हिंदुस्तान की प्रॉपर्टी को बेचना पड़ेगा| वैसे सामान्य प्राइवेट स्कूल की फीस भी लगभग 4 से 5 लाख रूपये सालाना होती है|nais-graduation-1

स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम तो इंग्लिश ही है लेकिन उसके अलावा आप यहाँ की स्थानीय भाषा, जैसे अफ्रीकन, जुलू इत्यादि भी सीख सकते हैं| सरकारी स्कूल भी हैं जहाँ पर फीस बहुत कम है लेकिन प्राइवेट स्कूल तो भयानक फीस लेते हैं| हिंदी की पढ़ाई भी कुछ स्कूलों में होती है और इससे यहाँ के अप्रवासी भारतियों को बहुत राहत मिलती है| बच्चों को कैलकुलेटर शुरू में ही पकड़ा दिया जाता है और प्राइवेट स्कूलों में तो आई पैड में ही पढ़ाई होती है| मतलब लिखने, जोड़ने, घटाने इत्यादि का झंझट ख़त्म|eden-college-entrance

वैसे एक खास बात है कि यहाँ के स्कूलों में हिंदुस्तान से आये बच्चे बड़े अच्छे नज़रों से देखे जाते हैं| और प्रिंसिपल तथा शिक्षक भी उनसे बहुत प्रभावित रहते हैं, वजह है अनुशासन और संस्कार| भारतीय बच्चे माँ बाप की बात मानते हैं तो शिक्षकों की बात भी मानते हैं, जबकि यहाँ के बच्चे तो स्कूल में अनुशासन का नाम भी शायद ही जानते हों| मैं भी जब भी अपने बेटे के स्कूल जाता था, प्रिंसिपल बहुत तारीफ़ करता था कि भारतीय बच्चे अगर हों तो कोई दिक्कत ही न हो| स्कूलों में धूम्रपान बहुत सामान्य सी बात है और किसी शिक्षक को ये अधिकार नहीं है कि वो किसी बच्चे को दंड दे सके| अगर किसी बच्चे को धूम्रपान करते या किसी अन्य गलत काम में पकड़ा गया तो उसे कम्युनिटी सर्विस की सजा दी जाती है, जैसे स्कूल में झाड़ू लगाना या सफाई करना आदि| बच्चे किसी भी शिक्षक या प्रिंसिपल को भी उसके नाम से ही बुलाते हैं, बस नाम के पहले मिस्टर का मिस लगा देते हैं|

खेलकूद भी यहाँ शिक्षा का अभिन्न अंग है और बच्चे खूब खेलते भी हैं| कुल मिलाकर पढ़ाई यहाँ हिंदुस्तान की तरह नहीं है जहाँ बच्चों को बचपन में ही गधो की तरह बस्ते ढोने से लेकर रट्टू तोता तक बना दिया जाता है|

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