यंगिस्तान

जोहान्सबर्ग से चिट्ठी 10

अक्टूबर 28, 2016 ओये बांगड़ू

यहाँ किसी ने कहा कि पेप्सी अफ्रिका में टायलेट क्लीन करने के काम आती है और हमने यकीन मान लिया भला हो बनारस के विनय कुमार का जिनकी जोहान्सबर्ग की चिट्ठी के कारण कई राज से पर्दे खुल रहे हैं. ये बातें गूगल भी कम ही बताता है . यहाँ पढ़ लो

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फर्ज कीजिये कि आप कहीं खाने के लिए गए हैं, जैसे किसी रेस्तरां इत्यादि में, तो आप तो ये उम्मीद करेंगे ही कि खाने के मेज पर पानी भी मिले | लेकिन इस देश में ये एक बड़ा फ़र्क़ नज़र आया, यहाँ खाने के साथ आपको सॉफ्ट ड्रिंक जैसे कोक, मिरिंडा इत्यादि तो मिलेगा, यहाँ तक कि आपको हार्ड ड्रिंक भी जैसे बियर, व्हिस्की इत्यादि भी मिलेगा लेकिन अगर आपने पानी माँगा तो बेयरा आपको थोड़े आश्चर्य से देखेगा | अगर आपने पानी माँगा तो आपको बताना पड़ेगा कि आपको मिनरल वाटर चाहिए या टैप वाटर (नल का पानी)|

अब आप सोचिये कि आपको हिंदुस्तान में कहीं खाने के लिए बुलाया जाए और पानी नल से निकाल कर दे दिया जाए तो आप कैसा महसूस करेंगे | शायद आप पीने से ही मना कर दें (वास्तव में हिंदुस्तान में नल का पानी पीना कल्पना से बाहर है), लेकिन इस देश में जब हम लोग आये तो घर में देखा कि न तो फ़िल्टर लगा है और न ही मिनरल वाटर की कोई बोतल रखी है | अब पीने का पानी कहाँ है पूछा तो मेरे पूर्ववर्ती ने बताया कि यहाँ पर पीने के लिए नल का ही पानी इस्तेमाल करते हैं | दरअसल इस देश का पानी विश्व के सबसे शुद्ध पानी वाले देशों में शुमार किया जाता है और इसीलिए जो पानी बाथरूम में इस्तेमाल होता है वही किचन में भी और वही पीने के लिए भी | हमें कई महीने लग गए आपने आप को मानसिक रूप से तैयार करने में कि नल का पानी भी इतना शुद्ध और साफ़ हो सकता है|

यहाँ पर लोग बाहर पानी पीने के बदले कोक पीना ज्यादा पसंद करते हैं, खासकर अश्वेत आबादी | और इसीलिए यहाँ की अश्वेत आबादी मोटापे से जूझ रही है| दरअसल कोक और पेप्सी कंपनियों ने यहाँ के लोगों को अपने पेय का गुलाम बना दिया है | आप यहाँ मजदुर तबके को देखिये, उनके हाथ में पानी की बोतल के बदले कोक की बड़ी वाली बोतल दिखेगी| तकलीफ तो तब होती है जब दो से तीन साल के बच्चों को भी कोक पीते देखता हूँ, कितना नुक्सान करता होगा ये उनको | खाने का भी यहाँ अलग ही सिस्टम है, घर पर खाना शायद ही बनता है, लोग नाश्ता से लेकर भोजन तक अधिकतर बाहर ही करते हैं | हमारे यहाँ जितने भी लोग काम करते हैं, उनको हमने आजतक कभी टिफ़िन लेकर आते नहीं देखा, ये अलग बात है कि हम लोग तो रोज ही लेकर जाते हैं | अधिकतर लोग बर्गर, पिज़्ज़ा और इसी तरह की चीजें खाकर दिन बिताते हैं और रोटी या चावल तो सिर्फ किसी हिंदुस्तानी आदमी के साथ ही खाते हैं |ea2a6e329fc5d992ad0ee238ada63875

अधिकतर लोग यहाँ पर मुख्य तौर पर मांसाहारी हैं और शाकाहारियों की संख्या बहुत कम है| हाँ यहाँ के फल बहुत अच्छे होते हैं और सब्जियां भी कमोबेश सभी मिल जाती हैं|

पुरानी चिट्ठियों के लिए अंगूठे को यहाँ लेकर आयें

जोहान्सबर्ग डायरी -9

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