बनारस से हमारे समीर बांगड़ू घुमते रहते हैं । सड़कों पर अलग अलग तरह के अनुभवों से गुजरते हुए वो जब जब शाम को लेपटोप पर पहुँचते हैं तो उनकी उँगलियाँ वो सब लिख डालती हैं जो दिन भर देखा हो। समीर का हमसे जुड़ने का शुक्रिया। बांगड़ू रे अब रोज रोज बनारस हम तुम्हारी नजरों से भी देखेंगे।
“का हो मुगलसराय चलबा” ” हां चलब लेकिन 60 रुपया लगेगा चचा” ,” ई कैसी मनमानी है अरे चाचा जाम लगल है तो इत्ता पैसा तो लगबे करी”
“मुगलसराय……. मुगलसराय……… मुगलसराय……….” “कितने में चलबा हो ……… 30 रूपये में चाचा। “.”चला हो राहुल कि ममी बैठा मजबूरी में इन्होऊ फायदा उठावत है ”
ये वाकया है वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन के सामने हमारे पुलिस अंचल के कदमो के नीचे फलने फूलने वाले मैजिक और टेम्पो स्टैंड का जहाँ जाम के झाम सभी का दाम बढ़ा हुआ था बारिश हो चुकी थी तो जाम लगना ही था और टेम्पो 60 रूपये और मैजिक 30 से आगे नहीं बढ़ता है। अब चाह अपनी 58 की बीवी के साथ कसमसाते हुए मैजिक में बैठ गये। अभी मौजिक चली भी नहीं थी कि आगया मैजिक का ड्राइवर। चाचा पैसा दे दो. चाचा भड़क गये. कैसन पैसा हो मरदे पहले पहुँचावा मुगलसराय तब मिली पैसा इतने में अगल बगल वाले टेढ़े होकर पैसा द्नेने लगे और चचा मन मन ही कसमसाते हुए पैसा निकाल के दे दिए अब आगे सुनिए क्या कह रहे है वो एनी सवारियों से।
मजबूरी का फायदा उठाते है अरे जाम में का गाडी 5 की जगह 20 लीटर तेल खाई का उठा ला बचवा मजबूरी का फायदा , इतने में उनकी पत्नी बोली बैठ ही नहीं पा रही हूँ बहुत कम जगह है। चाह ने भड़कते हुए कहा रस्ते में ज्यादा ना पनपनाया मत करो चुप चाप बैठो। नारी को अपनी ज़बान से प्रताड़ित कर महोदय फिर से लग गए ड्राइवर का मान मर्दन करने में बस कुछ ही देर में हम मुगलसराय पहुंच गये और चाचा अपने घर हम अपने घर।