चंकी महाराज गए थे इतिहास खंगालने जमीनी दुनिया में , कुछ ना मिला. लास्ट में एक दो साल के बच्चे ने गूगल में ढूंढ कर दिया पटाखों का इतिहास . आप भी पढ़िए
हुआ कुछ यूं था उस दिन कि एक रसोइया था. अपना चीन का रसोइया , कुछ मोमो चाउमीन बना रहा था . आग में उबालने को रखे थे लेसेदार चाऊमीन और ऊपर से डाल रहा था नमक (साल्ट पीटर (KNO3). पोटेशियम नाईट्रेट (देखो गूगल करके इतना ही पतो चलो है, तो मगजमारी नहीं करो बाकी जानकारी चाहिए तो सीरियस टाईप चेम्स्ट्री पिरोफेसर से सम्पर्क करो , और कोइ ना मिल रही तो मै बता दूं वह सुष्मिता सेन भी मै हूँ ना में चेम्स्ट्री की पिरोफेसर थी ). नमक डालकर क्या हुआ मालूम ? बज गयी बैंड आग के बदले क्या निकला नीचे पढो .
हां तो जो ये साल्ट पीटर होवे है ये एक टाईप का नमक ही समझ लो. वा रसोइये ने यो डाल दिया आग में फिर जो है रंगीन आग आने लग गयी. रसोइया तो घबराया ही, वा का हेड भी हिल गया. उसने इसे रंगीन आग को दबाने के लिए डाल दिया कोयला (उसने सोची होगी नार्मल आग आने लग जायेगी ). ऊपर से वहां पड़ा बाकी का आईटम भी झोंक दिया इसमें (पता नहीं किचेन में क्या क्या पड़ा था कौन जाने ). अब हुआ ये कि रंगीन आग तो आ ही रही थी साथ में आना शुरू हो गयी आवाज भड़ाम भूड्म भटाक.
फिर चीनी तो चीनी हुए, उन्हें जैसे ही पतो चलो कि ये आईटम डाल कर तगड़ी आवाज होवे है , उन्होंने शुरू कर दिया इसका प्रोडक्शन और इस तरह पहली आतिशबाजी आयी 1040 में नाम था “फायर पिल ” . (चीनी सामान का बहिष्कार करने वाले प्लीज इस साल पटाखे भी ना फोड़ें , चीन को बर्बाद करने में कुछ सहयोग दें ).
तो भई पटाखों का आविष्कार तो हुआ चीन में , वैसे मैंने सुना है राम जी के पास भी एसे तीर थे जिनसे भड़ाम भूड्म की आवाज तगड़ी निकलती थी , लक्ष्मण के तरकश के तीरों से रंगीन रोशनी आती थी लेकिन क्या है कि उसकी विधी प्राप्त ना हो पाने के कारण मजबूरन चीन को श्रेय देना पड़ेगा . चीन के बाद इंग्लेंड ने भी खूब पटाखे बनाये , जर्मनी रूस ने भी पटाखों में पीएचडी की . फिलहाल इंडिया में पटाखे खूब चलते हैं. दिवाली तो हुई ही साथ में शादी बरात बड्डे में भी खूब आतिशबाजी करते हैं हम लोग. चुनाव में तो हर रात बेवजह पटाखे फूटते हैं. फिर जीतने वाले दिन एक ही फोड़ता है.
क्रिकेट के मैच में तो बाकायदा सभी देश पटाखे खरीदते हैं. फिर जो जीता उसके फूटते हैं बाकी के चुटकुले बनाने के काम आते हैं.