हिन्दी के पास पैसा नहीं है इस बात का एहसास हिन्दी जर्नलिज्म के दौरान हुआ, जब अंगरेजी को 30 और हिन्दी को 7 हजार स्टार्टिंग सैलरी मिलते देखा. पढाई एक सी, नालेज एक सी, जुगाड़ एक सा. और जाब देने वाली कम्पनी भी एक सी. बस एक के पास हिन्दी थी दुसरे के पास अंग्रेजी.
हम काफी पिछड़े हैं , क्योंकि हम हिन्दी भाषी हैं . हमने बचपन से हिन्दी में पढना लिखना बोलना सीखा. फिर इस भागती दौडती दिल्ली में पहुंचे अपनी आधी अधूरी अंगरेजी के साथ. सामन्य बसों में, ऑटो में, यहाँ तक कि टेक्सी में भी कभी किसी ने हमारे पिछड़ेपन का हमें एहसास नहीं कराया क्योंकि वह भी हमारी तरह थे.
हम नौकरी का इंटरव्यू देने गए तो बाकी कंपनियों में तो छोडो हिन्दी अखबारों के एचआर तक को अंगरेजी में इंटरव्यू लेते हुए देखा. हिन्दी एडिटर को गुड मार्निंग गुड आफ्टरनून से संबोधित करना पड़ा. तब हल्का सा एहसास जागा कि हम शायद पिछड़े हैं. इसलिए इसे छिपाते हुए अंगरेजी के उपन्यास पढने लगे खासकर चेतन भगत टाईप, जो आसान हिन्दी जैसी अंगरेजी लिखते हैं. सोचा था अंगरेजी जिस तरह पढने में आ जाती है अपनेआप, वैसे ही बोलने में भी आ जायेगी. पर कमबख्त हर दफा मौके पर ही दगा दे जाए. इस मुई अंगरेजी का अंगरेजी के अखबारों में हमें हर अक्षर, शब्द समझ आ जाता लेकिन बोलते समय अक्सर शब्दों की कमी पड़ जाती. तब एहसास होता कि हम पिछड़े हैं.
फिर किसी ने ज्ञान दिया अंगरेजी में लिखा करो फ्यूचर अंगरेजी जर्नलिज्म में ही है. बात हजम नहीं हुई उसकी इसलिए उसकी बात पर गौर नहीं किया. ज्ञान देने वाले ने ट्रेक बदला और तुरंत अंगरेजी में चला गया. वह ज्ञानी पहले टाईम्स आफ इंडिया को टीम्स आफ इंडीया पढ़ा करता था.उसने तीन महीने का रेपिडेक्स स्पीकिंग का कोर्स भी किया था . जुगाड़ से किसी डाक्यूमेंट्री मेकर के साथ लग गया . जापानियों के लिए डाक्यूमेंट्री में कैमरा स्टेंड ढोता था . उसने सलाह दी अब भी मौका है तुरंत अंगरेजी में आ जाओ मौके मै दिलवा दूंगा.
कमबख्त हिन्दी को बार बार उपेक्षित देखकर दर्द सा होता था , तभी फेसबुक में हिन्दी लिखने वालों का जबर्दस्त जमावड़ा देखा. खासकर मिक्स हिन्दी हिंगलिश से अलग. बिहारी मिक्स हिन्दी (हिन्हारी ),पंजाबी मिक्स हिन्दी (हिन्जाबी ), हिन्दी मिक्स हरियाणी(हिनणी) वगेरह वगेरह. इन भाषाओं में सब कुछ था मजा ,मस्ती , नालेज सब कुछ . बस पैसा नाम की चीज नहीं.
तब चीजें कन्फर्म हुई की हिन्दी वाले हम पिछड़े नहीं है, भाषा के मामले में बहुत समृद्ध हैं . बस अंगरेजी के पास हमसे ज्यादा पैसा है. हम पैसे के मामले में कमजोर हैं क्योंकि इन भाषाओं में पैसे नहीं हैं. हिन्दी पिछड़ी नहीं है बल्कि हिन्दी पैसे वाली नहीं है .