यंगिस्तान

हिमालय पर पल्सर -2

नवंबर 10, 2016 ओये बांगड़ू

हिमालय पर पल्सर लेकर चढ़ गए रिस्की पाठक झरनों ,पहाड़ों , नदियों से होते हुए आगे बढ़ रहे थे . पहले हिस्से में आपने जाना कि वह किस तरह कैलाश मानसरोवर के पहले पडाव पिथोरागढ़ पहुंचे . अब आगे जानिये कि हिमालय कि इन सड़कों पर उन्होंने क्या का महसूस किया .

सुबह नींद खुली, आदतन मोबाइल देखा तो समय 5.30 हुआ था। पिछले दिन की सारी थकान गायब लग रही थी। बस अड्डे एवं तिराहे के नजदीक होटल होने से रात भर ट्रक एवं अन्य वाहनों का शोर पार्श्व में बजता रहा था। होटल से बाहर आकर देखा तो रात के शोर-शराबे के मुकाबले सुबह शांत नजर आई और उस शांति में डूबे पिथौरागढ़ शहर को देखने का मन हुआ तो बाइक चंडाक(शहर के अंदर सबसे ऊंची चोटी ) वाली सड़क की ओर मोड़ दी।

चंडाक से दिखता पिथोरागढ़ शहर
चंडाक से दिखता पिथोरागढ़ शहर

सुबह की कंपकंपी ठण्ड शरीर को ठिठुरा तो रही ही थी पर उस ठिठुरन का भी अपना ही आनंद था। चंडाक से पिथौरागढ़ शहर का अप्रतिम सौन्दर्य मन को लुभाता है तो असुरचुला एवं ध्वज(शहर के बाहर सबसे ऊंचे शिखर) जैसे शिखर उस दृश्य में चार चाँद लगाते है। नैनों को तृप्त करने के बाद मैं दोबारा होटल की तरफ बढ़ा और फिर तैयार होकर 8 बजे आज के सफ़र मुनस्यारी के लिए रवाना हुआ।

शहर अब तक जग चुका था और सड़क पर यातायात की भीड़ होनी शुरू हो गयी थी। जाखनी से ऊपर सिल्थाम होते हुए डीडीहाट रोड की ओर निकल गया। शहर से बाहर निकलते ही, मैं फिर से एक अलग दुनिया में आ गया। जहां दूर पहाड़ों पर ऊपर जाते हुए बादल आपका मन मोहते हैं तो कहीं किसी दूर बसायत पर धूप की किरणें आपको गुदगुदी कराती हैं । कभी कभी सड़क पर स्कूल जातें बच्चे दिखतें है जिनकी मंद मुस्कान एक नई ऊर्जा देती है तो दूसरी ओर सर पर भारी घास की गठरी उठाए घस्यारी(घास काटने वाली महिला) दिखती है, जिनके संघर्ष को नमन करने का मन करता है मेरे नाश्ते का अगला पड़ाव कनालीछिना था जहां चना-मटर की दो प्लेट, पकौड़ियों की एक प्लेट एवं गर्मागर्म चाय के एक गिलास ने भूख को कुछ हद तक शांत किया। कुछ देर धूप सेकनें के बाद मैं आगे बढ़ा।

पिथौरागढ़ से कनालीछीना तक रोड चौड़ी है एवं स्थिति भी लगभग ठीक ही है। पर इसके आगे रोड की स्थिति अच्छी नहीं है और भूस्खलन से जगह जगह पर रोड के चीथड़े उड़े से प्रतीत होते है। कहीं कहीं यह हिमाचल में रामपुर से आगे रिकांगपिओ सड़क की याद दिलाती है। इसी सड़क पर एक क़स्बा “चरमा” आता है, जहां मुझे सड़क के किनारे अमरुद बेचते गांव के कुछ युवक दिखाई पड़े। मैंने बाइक रोककर 1 किलो अमरुद लिए जिसमें से एक तो मैंने वहीं पीसे हरे लूण(नमक) के साथ खा लिया। पूछने पर पता चला कि यह अमरुद पास ही गाँव की पैदावार से है और यह क्षेत्र अमरूदों के लिए प्रसिद्ध है। वहां से थोडा ही आगे बढ़ा तो देखा कि रात को सड़क पर मलबा आने की वजह से सड़क बंद थी और एक जे.सी.बी. मशीन सड़क को साफ़ कर रही थी।

पहाड़ों के बीच जीवन कैसे फलता है ,इसे समझने के लिए तस्वीर में मौजूद गाँव को देखो. पहाड़ की जटिलता समझ आ जायेगी
पहाड़ों के बीच जीवन कैसे फलता है ,इसे समझने के लिए तस्वीर में मौजूद गाँव को देखो. पहाड़ की जटिलता समझ आ जायेगी

मैंने समय का सदुपयोग किया और बाइक किनारे खड़ी करके सड़क से नीचे आ गया और नरम घास पर बैठ कर कुछ देर पहले ख़रीदे अमरूदों को निपटाने लगा। आधे घण्टे बाद सड़क खुल गयी थी, मैंने बाइक शुरू की और आगे निकल गया। अगला क़स्बा ओगला आया जहां से सड़क की स्थिति बहुत अच्छी हो जाती है। ओगला से एक सड़क नारायण नगर होते हुए डीडीहाट(पुरातन नाम डीनहाट) को जाती है और दूसरी धारचूला/मुनस्यारी की ओर, जिसपर मैं आगे बढ़ा।

इसी सड़क पर कुछ ही दूर पर अस्कोट आता है जो “अस्सी कोट(किला)” का अपभ्रंश है और कत्यूरी वंश के पाल घराने के रजबारों का गढ़ रहा है। यहां से आगे बढ़ा तो अगला क़स्बा जौलजीबी आता है जहां दो गंगाओं, गोरी एवं काली का मिलन होता है। जौलजीबी से ही एक सड़क धारचूला को जाती है और दूसरी सड़क गोरी गंगा के किनारे-किनारे मुनस्यारी को। जौलजीबी में दिन का भोजन करने के बाद, मैं मुनस्यारी की सड़क पकड़ता हूँ, जिसकी चौड़ाई अब सिंगल रोड की है।

झरनों को अब तक सिर्फ देखा होगा, इस तस्वीर से महसूस करो
झरनों को अब तक सिर्फ देखा होगा, इस तस्वीर से महसूस करो

जौलजीबी से मुनस्यारी तक की सड़क का सफ़र बहुत ही खूबसूरत है। पुरे सफ़र में गोरी गंगा का छल-छल बहता पानी अपनी ओर आकर्षित करता है तो वहीं दूसरी ओर दूर पहाड़ों पर गिरते झरने आपका मन मोहते है। चारों ओर हरियाली ही हरियाली है और उन हरियाली के बीच में बसे छोटे-छोटे गांव अपनी सुंदरता पर इतराते है। सड़क पर ही आपको कई छोटे गधेरे(नाले) मिल जाते है, जिनकों बाइक से पार करना बड़ा रोमांचकारी होता है। इन्ही सब दृश्यों के बीच मैं आगे बढ़ता और जब मन को रोक न पाता तो उतर कर निहार लेता। बरम होते हुए मदकोट आता है, जहां मैंने चाय का विश्राम लिया। अब यहां से मुनस्यारी सिर्फ 25किमी  ही बचा था। यहां से आगे बढ़ा ही था कि एक बुलेट सामान से लदी सामने से आ रही थी। उसकी वेशभूषा एवं पीछे लदा सामान देखकर मैंने उसे अपनी ही तरह का बाइकर जानकर रोकने के लिए इशारा किया।एक दुसरे को परिचय दिया तो पता चला कि महाशय महाराष्ट्र से है और पिछले एक महीने से सड़क पर ही घुमंतू है। नाम है “समयक कनिन्दे”(Samyak Kaninde)

सम्यक के साथ लेखक रिस्की
सम्यक के साथ लेखक रिस्की

जो पेशे से फोटोग्राफर है और बाइकिंग का सफ़र उनका चंडीगढ़ से शुरू किया जो पठानकोट, श्रीनगर, लेह, लद्दाख, स्पीति, रामपुर, शिमला, देहरादून, यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ, कर्णप्रयाग, बागेश्वर, कौसानी, चौकोड़ी होते हुए पिछली रात मुनस्यारी पहुंचे थे। अब आगे धारचूला से नेपाल बढ़ने का इरादा था। मैंने मन ही मन उसके जज्बे को नमन किया और एक सेल्फी लेकर अलविदा कहा। अब आगे रोड की स्थिति खराब थी पर गंतव्य के नजदीक होने की ख़ुशी में वह रास्ता भी आसानी से निकल गया। मुनस्यारी से कुछ किलोमीटर पहले हल्की बारिश शुरू हुई, जो पहाड़ी के एक भाग में ही हो रही थी। ऊपर को चढ़ते हुए उस पहाड़ी पर 1किमी के 4-5 बैंड है जो इस पहाड़ी से बाएं छोर से दाहिने छोर की ओर जाते है और फिर दाहिने से बाएं की ओर। अब बारिश जो पड़ती थी वह उस ही पल पड़ती थी जब उस बारिश के क्षेत्र में बाइक आती। वही से खड़े होकर अगर पीछे देखते हो तो मुनस्यारी के छोटे छोटे गांव दूर दूर तक दिखाई देते है।

कुछ ही समय में मैं मुनस्यारी बाजार में था जहाँ एक ढाबे पर चाय एवं पकोड़ों का आनंद लिया और यहीं बैठे बैठे होटल बुक करने वाली मोबाईल एप से “बिल्जु इन्न” नामक होटल बुक किया। यही रात्रि का डेरा था और मैंने होटल के कमरे में घुसते ही हाउस कीपिंग स्टाफ से पूछा “यहां से पंचाचूली दिखाई देगी ना?”। उसका जवाब था “हाँ सुबह के वक्त यहीं खिड़की से साफ़ दिखाई देगी”।
मैंने खिड़की से अभी देखने की कोशिश की तो मुझे सब बादलों से ढ़का नजर आया। अँधेरा हो जाने के बाद मैं एक बार फिर से मुनस्यारी बाजार देखने को निकला और फिर कुछ समय में वापस आकर भोजन करके सो गया।
जारी है……

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हिमालय पर पल्सर

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