यंगिस्तान

हिमालय पर पल्सर

नवंबर 7, 2016 ओये बांगड़ू

नाम है रिस्की पाठक , अब नाम में ही रिस्क है तो रिस्क लेने की आदत तो होगी ही, तो जनाब ने एक पहाड़ टूर खुद के लिए आर्गनाईज किया जिसका पूरा वृत्तांत आप नीचे ‘पहाड़ों में बाईकिंग ‘ में पढेंगे . कहाँ से गुजरे ? कैसा रास्ता था ? कैसा अनुभव था ? जैसे कई सवालों के जवाब आपको इस सीरीज में मिलेंगे . बाईक से कभी लम्बे लम्बे टूर करने हों तो इन अनुभवों का फायदा आप लोग भी ले सकते हैं. रिस्की पाठक की ज़ुबानी अनुभव कीजिये आनलाइन कबाड़ी से 24 घंटे पहले खरीदी गयी बाईक से पूरे कुमाऊँ का सफर .

वर्ष 2013 से पहले जब चंडीगढ़ में कार्यरत था तब हिमाचल प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में कई बार बाइकिंग की है और तभी से “पहाड़ों पर बाइकिंग” करने का कीड़ा लग गया था। कुमाऊं क्षेत्र में बाइकिंग का रूट मैप तभी तैयार कर लिया था।  दिल्ली आ जाने के बाद, पिछले 4 सालों में, प्लान कई बार बनाया पर कभी भी संभव नही हो पाया। उसके कुछ कारण थे जैसे “घरवालों की बाइकिंग पर आपत्ति एवं चिंता”, “अपने पास बाइक का ना होना”, “दिल्ली से हल्द्वानी तक का उबाऊ प्लेन्स का सफ़र”, “मित्रों का तैयार न होना” वगैरह वगैरह।

इसी वर्ष अप्रैल में मेरा गांव मोटर सड़क से जुड़ा। जब से यह समाचार मिला था तब से अपने गांव “बाइक” पर जाने की ललक और बढ़ गयी थी और इस बार कुछ भी करके एक राइड करने की ठान ली थी। महीना चुना अक्टूबर (असौज) का क्योंकि यही ऋतू थी जिसे मैंने पहाड़ों पर अब तक नही देखा था।
अब अपने पास बाइक तो थी नहीं, तो रेंटल बाइक्स के लिए हल्द्वानी, काठगोदाम में संपर्क किया तो प्रति दिन बाइक का किराया 1000(हजार) रुपये का पता चला। यह किराया बजट से बाहर था तो दिमाग में एक आईडिया कौंधा कि अगर कोई पुरानी बाइक 25,000 रूपये के आसपास की मिल जाएं तो उससे ट्रिप करी जा सकती है
इसी विचार को ध्यान में रखकर सितम्बर महीने से ही आनलाइन कबाडियों  पर कई सज्जनों से निश्चित दिन पर बाइक दिखाने का आग्रह कर रखा था। खैर 5 अक्टूबर की रात को वॉल्वो से हल्द्वानी की और प्रस्थान किया।

आनलाइन कबाडियों के दिखाए वाहन में कोई भी वाहन ऐसा नही मिला जो बिना किसी छोटी-मोटी परेशानी के हो और मुझे चाहिए थी ऐसी बाइक जो नियमित सर्विस हो और लंबे सफ़र के अनुकूल हो। मैंने अगले दिन “बाइकिंग” करनी ही थी यह तो मन में ठान लिया था पर मुझे कोई बाइक नहीं मिल रही थी। शाम होते होते, कई जदोजहद के बाद सुधांशु जी मिले जिन्होंने निजी जरूरतों के कारण अपनी प्रिय पल्सर-180 बाइक को अपने से अलग करने का निर्णय लिया था। बाइक एक ही बार चलाने से मन को भा गयी और मैंने झट से हाँ कर दी. रात्रि में मुझे नींद नही आ रही थी, मेरे मन में अगले दिन का फितूर ही चल रहा था जैसे “कल पहाड़ों पर बाइक, सफ़ेद सुर्ख हिमालय भी तो दिखाई देगा, अरे भीमताल से ऊपर पहाड़पानी का रास्ता तो पहली बार मिलेगा, दन्या में दिन का भोजन करूँगा” वगैरह वगैरह। यहीँ सब मन में सोचते सोचते नींद आ गयी और जब नींद खुली तो सुबह के 6 बज रहे थे। मैं आराम से तैयार हुआ और नाश्ता करके, बाइक पर सामान बांध कर हल्द्वानी को अलविदा कहा।

ये है पनार , कैलाश मानसरोवर को जो यात्री जाते हैं उन्हें रस्ते में दिखता होगा और पहाड़ों में सफर के शौक़ीन यहाँ उतरकर नहाते जरूर हैं. बर्फीली नदी में आईस बकेट चेलेंज
ये है पनार , कैलाश मानसरोवर को जो यात्री जाते हैं उन्हें रस्ते में दिखता होगा और पहाड़ों में सफर के शौक़ीन यहाँ उतरकर नहाते जरूर हैं. बर्फीली नदी में आईस बकेट चेलेंज

<सफ़र शुरू>
हल्द्वानी से काठगोदाम होते हुए रानीबाग आता है और उसके बाद भीमताल के लिए दाहिने हाथ की ओर सड़क कटती है और यहीं से शुरू होता है पहाड़ों का सफ़र। मेरे मन में एक अलग ही उत्साह था, मैं सातवें आसमान में था, उस राइड को जी रहा था। एक समय था बचपन का जब पहाड़ की सडकों से बहुत नफरत थी क्योंकि बसों में होने वाली “उल्टी” से नफरत थी , तब रास्ते भी तंग थे मोड़ संकरे थे , गाड़ियों में एंजोयमेंट कम और चक्कर ज्यादा आते थे । मगर आज तो यह सड़क खत्म ही न हो ऐसा लग रहा था। रानीबाग से आगे पहुंचकर ऊपर को चढ़ना शुरू किया तो मुझे उस जगह की तलाश थी जहां से हल्द्वानी एवं गौला नदी का दृश्य साफ़ दिखाई देता है। आखिर पहाड़ी के ऊपरी रोड पर वो जगह मिल ही गयी, मैंने बाइक से उतर कर भाभर(हल्द्वानी क्षेत्र) को निहारा जो हल्की धुंध की चादर में लिपटी थी। वहां से आगे निकला तो सीधा भीमताल की शांत ताल के किनारे ही खुद को पाया। भीमताल बाजार सुबह के इस वक्त खाली-खाली सी प्रतीत हुई।

भीमताल बाजार से कुछ आगे जाकर दाहिने ओर ऊपर को जो रोड जाती है वो पिथौरागढ़ जाती है, मैं उस दिशा में बाइक मोड़ता हूँ। यहां अभी सड़क पर धूप नहीं पड़ी थी, तो पेड़ों के झुरमुट के बीच ठण्ड सी महसूस हो रही थी। बाइक आगे बढ़ती जा रही थी और कस्बे पीछे छुटते जा रहे थे। खुटानी, शहरफटक, पदमपुरी, धानाचुली, डोल और ना जाने कितने खूबसूरत नाम और उतने ही खूबसूरत दृश्य। बीच में कोई जगह अच्छी लगी तो बाइक रोककर उतर कर पहाड़ों को देर तक निहार लिया। बस यही तो है “बाइकिंग”, जब जहां जो अच्छा लगे वहां रुक जाओ और निहार लो जब तक आँखें तृप्त ना हो। और थोड़ी थकान लग रही है तो बाइक रोकों किसी चूल्हे वाली दुकान के सामने, वहां गर्म चाय एवं साथ में फैन/मट्ठी के साथ जो आनंद आएगा वो सब थकान भुला देगा। ऐसे ही मैं भी आगे बढ़ते बढ़ते सुवाखान होते हुए दन्या पहुंचता हूँ। खुटानी से लेकर यह सड़क सुवाखान में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ रोड पर मिलती है और यह सड़क कहीं भी जरा सी ख़राब नही है। हिमालय देखने की जो लालसा रास्ते भर थी वो बादलों ने पूरी ना होने दी। दन्या पहुँच कर एक ढाबे पर दाल-भात से पेट को तृप्त किया और थोडा विश्राम करके फिर पनार की ओर प्रस्थान किया। पनार की ओर नीचे उतरते हुए सड़क की ढलान बहुत तीखी है और दूसरी तरफ गहरी खाई है। पनार पहुंचते ही सरयू एवं पनार नदी का संगम मन को लुभाता है। यहीं से एक सड़क गंगोलीहाट को जाती है। मै घाट को जाने वाली सड़क पर ही बना रहा और आगे घाट से पिथौरागढ़ के लिए बढ़ा। घाट पर ही पिथौरागढ़-टनकपुर हाईवे वाली सड़क भी मिलती है और यही सड़क गुरना होते हुए पिथौरागढ़ जाती है। इस सड़क पर यातायात बहुत होता है और हिमाचल में बिलासपुर-मंडी हाईवे की याद दिलाती है। खैर धीरे धीरे ऊपर गुरना की और बढ़ा और यहीं से पिथौरागढ़ शुरू हो जाता है। ऐन्चोलि से पिथौरागढ़ बाजार शुरू होता है। शाम के 5 बज चुके थे और मै आज के पड़ाव पिथौरागढ़ पहुंच चुका था। मैंने कुछ समय बाजार में ही इधर उधर बाइक दौड़ाई और बाजार एवं शहर का जायजा लिया। अंत में बस स्टैंड के पास एक बजट होटल रात्रि के लिए लिया। उसी होटल में रात का भोजन कर, कमरे में आ गया और निढ़ाल होकर बिस्तर पर लुढ़क गया। नींद कब आई पता ही नही चला।

ये है कटोरी , चारों तरफ पहाड़ बीच में शहर , अभी आधा ही दिखेगा .
ये है कटोरी , चारों तरफ पहाड़ बीच में शहर , अभी आधा ही दिखेगा .

जारी है…

2 thoughts on “हिमालय पर पल्सर”

  1. पढ़ने में तो कोई रिस्क लगा नहीं! सुन्दर लगा। पिथौरागढ़से टीतोअपनी पुरानी स्मृतियाँजुड़ती हैं ओर आपने एंचोली में ही छोड़ दिया, आगे ले जाइए। प्रतीक्षा है!

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