मारवाड़ी बोली में मस्त अंदाज मे लिखने वाले के.डी चारण घुमक्कड़ किस्म के शख्स है. अक्सर इन्हें घुमते हुए बचपन की कुछ मीठी यादें याद आ जाती है. तो आज यह ओए बांगडु के साथ शेयर कर रहे है शनिवार वाला चिल्ड्रन डे
शनिवार का दिन मुझे तब से प्रिय है। जब एकसार चालीस तक पहाड़ागान करवाने के बाद हमारे गाँव वाली प्राइमरी स्कूल के इकलौते मास्साब (मास्टरजी) छाछ जैसी ठंडी सांस लेने के बाद खुद कुछ बोलने के लिए खड़े होते। गाँव-ढाणियों के लगभग सात बीसी (7×20=140) बदमाशों को दिन भर संभालने के बाद भी वो एक दम तरोताजा से लगते थे क्योंकि आज शनिवार होता था। खैर, सबसे पहले तो नाख़ून न काटने और बालों में तेल न लगाने के साथ न नहाने से होने वाले नुकसानों के बारे में एक आशुभाषण होता था जो हमेशा कुछ न कुछ बदलाव के साथ परोसा जाता था। (जो वाकई बड़ा मीठा लगता था क्योंकि कक्षा में किसी को व्यक्तिगत भाषण देते समय मास्साब साथ में चिटकी, बतासे और टिकड़ियां (सजाओं के नाम) दे देते थे। हम सब एक दूसरे के नाख़ून देखकर वापिस अपने में रम जाते थे क्योंकि मास्साब द्वारा बोली जाने वाली अगली लाइन हमें सबसे प्यारी होती थी। मास्साब अटल बिहारी जी की तरह अपनी बात में थोड़ा सा गेप देकर बोलते, “हमे सीधा घरे जावो अर् सोमवार रा टाइम माथे आया। सिगळा ने चालीस तक पावड़ा (पहाड़े) याद होवणा चाहिजै….रोवता मति फिरिया(फालतू में इधर-उधर मत भटकना)।”
और सेना अपने-अपने पाटी-बस्ते समेटकर अगले ठिकाने के लिए यलगार-घोष के साथ कूच करती…..
“चक्की में चक्की, चक्की में दाणा
कल की छुट्टी, परसों आणा।”
चक्की में चक्की, चक्की में दाणा
कल की छुट्टी, परसों आणा
रोचक