ना जाने कितनो ने ही गांव को छोड़ा और शहर से नाता जोड़ा .चल दिए अपनों से मुंह मोड़ मशीनों के बीच मशीनों सा जीवन जीने की और OyeBangdu पढ़ तो जरा कैफ़ी आज़मी ने अपनों के छूटने के दर्द को शब्दों में कैसे उकेरा है.
‘ हाथ आकर लगा गया कोई ‘
हाथ आकर लगा गया, गया कोई । मेरा छप्पर उठा गया कोई ।
लग गया इक मशीन में मैं भी शहर में ले के आ गया कोई ।
मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी इश्तिहार इक लगा गया कोई ।
ऐसी मंहगाई है कि चेहरा भी बेच के अपना खा गया कोई ।
अब कुछ अरमाँ हैं न कुछ सपने सब कबूतर उड़ा गया कोई ।
यह सदी धूप को तरसती है जैसे सूरज को खा गया कोई ।
वो गए जब से ऐसा लगता है छोटा-मोटा ख़ुदा गया कोई ।
मेरा बचपन भी साथ ले आया गाँव से जब भी आ गया कोई ।
Nice Brother.