यंगिस्तान

फिल्म रिव्यू:द एक्सीडेंटल प्राईम मिनिस्टर

जनवरी 12, 2019 कमल पंत

जैसे फिल्म में आप हीरो से प्यार और विलेन से नफरत करने लगते हैं वैसे ही इस फिल्म को देखने के बाद आप फिल्म के हीरो संजय बारू से प्यार और विलेन (सोनिया गांधी,राहुल गांधी) से नफरत करने लगेंगे. मनमोहन सिंह का सिर्फ किरदार है फिल्म में हीरो विलेन की फाईट कहीं और ही हो रही है.

सबसे पहले तो फिल्म के निर्देशक को बधाई दूंगा कि जीवित किरदारों को लेकर राजनीती पर फिल्म बनाने की हिम्मत करी उन्होंने, हालांकि फिल्म देखकर कहीं से भी यह नहीं लगा कि वह फिल्म बनाने की कोशिश कर रहे हैं. संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राईम मिनिस्टर’ पर बनी यह फिल्म मुझे लगा था कि जीवित किरदारों की सही से व्याख्या कर पाने में सक्षम होगी,मगर फिल्म में सिवाय प्रोपेगेंडा के और कुछ नहीं है.न कसी हुई स्क्रिप्ट है न सधी हुई एक्टिंग,अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह के किरदार को पकड़ने की बहुत अच्छी कोशिश की है मगर शायद निर्देशक मनमोहन सिंह की इस कोशिश को भुना नहीं पाए. सभी किरादारों का मेकअप जबर्दस्त है.खैर फिल्म से उम्मीद थी कि वह मनमोहन के दस साल के कार्यकाल की बखूबी व्याख्या करेगी,कुछ इंट्रेस्टिंग इनसाईड स्टोरीज हमें बतायेगी,मनमोहन सिंह के कुछ छिपे रूप से हमें रूबरू करायेगी.मगर लगता है पूरी फिल्म किताब से कम और टीवी न्यूज पर आयी ख़बरों से ज्यादा इंस्पायर्ड रही.

फिल्म में कोइ भी एसा किस्सा या इनसाईड स्टोरी देखने को नहीं मिली जिसका उल्लेख यहाँ किया जा सके. राहुल गांधी को पप्पू और सोनिया गांधी को एक विलेन के रूप में पेश करती इस फिल्म के हीरो हैं किताब के राईटर संजय बारू, फिल्म देखने से साफ़ पता चलता है कि संजय बारू ने खुद का हीरोइज्म फिल्म के माध्यम से दिखाया है शायद इसी वजह से अक्षय खन्ना को वह किरदार दिया भी गया हो.

संजय बारू ने किताब में क्या क्या लिखा है वह अभी तक मैंने नहीं पढ़ा,लेकिन फिल्म में संजय बारू खुद को संकटमोचक उस हीरो के रूप में पेश करते हैं जो एक हीरो की तरह परेशानी में फंसी हीरोइन(मनमोहन सिंह) को विलेन (सोनिया गांधी) और विलेन के चमचों (अहमद पटेल और राहुल गांधी) से बचाने की भरपूर कोशिश करता है.

अपने पहले कार्यकाल में मनमोहन सिंह ने संजय बारू को अपने मीडिया एडवाइजर के रूप में नियुक्त किया था और लगभग यहीं से कहानी शुरू भी होती है,फिल्म में भले ही संजय बारू और मनमोहन सिंह को ज्यादा दिखाया गया हो मगर अदृश्य रूप से फिल्म के गुंडे हैं सोनिया गांधी राहुक गांधी और अहमद पटेल. कहानी में जगह जगह पर यही दिखाया गया है कि किस तरह साफ़ दिल मनमोहन सिंह कोइ फैसला लेने की कोशिश करते हैं और ये तीनों किसी न किसी रूप में उस पर टांग अड़ा देते हैं.

कोइ इनसाईड स्टोरी अगर फिल्म में होती तो शायद दर्शकों को राजनितिक इतिहास के कुछ पन्नों को जानने समझने का मौक़ा मिलता,मगर लगभग हर जगह पर तारणहार संजय बारू मनमोहन सिंह के सम्मुख आ जाते हैं और उन्हें मुश्किलों से बचा ले जाते हैं. नरसिम्हा राव की मृत्यू वाला जब सीन चल रहा था तो मुझे लगा शायद अब सोनिया ने नरसिम्हा राव की डेथ बाडी कांग्रेस कार्यालय में क्यों नहीं लाने दी जैसे सवालों के ऊपर कोइ इनसाईड स्टोरी निकल कर आयेगी,मगर वहां भी वही संजय बारू का हीरोइज्म और बाकी विलेन , अहमद पटेल कहता है इसका दाह संस्कार हैदराबाद कराओ बात खत्म.जबकि इससे ज्यादा बातें तो सामान्य अखबारों में उस समय छप कर सामने आ गयी थी.किताब लिखने की क्या जरूरत थी.

अब बात करते हैं रियल लाईफ की,कि आखिर क्यों ये फिल्म प्रोपगेंडा लग रही है,मनमोहन सिंह के सिर्फ एक काम न्यूक्लियर डील पर फोकस किया गया है और वही एक स्टोरी को बताया गया है,जबकि अपने दस साल में इस एक्सिडेंटल प्राईम मिनिस्टर ने बड़ी ख़ूबसूरती से आर्थिक मंदी में देश को संभाला,विपरीत परिस्थितियों में पाकिस्तान के साथ वार्ता की,कई मोर्चों पर भारत की आर्थिक दर को कम नहीं होने दिया,मगर फिल्म में इन सब पर कोइ चर्चा नहीं हुई,चर्चा हुई तो बस न्यूक्लियर डील और मनरेगा पर और मनरेगा पर भी इस तरह से की राहुल गांधी उसका क्रेडिट लेना चाहते थे मगर संजय बारू ने अपना हीरोइज्म दिखाकर उन्हें एसा करने नहीं दिया.

फिल्म के आखिर में मोदी के चुनाव प्रचार को बढ़ चढ़ कर दिखाया गया है जिसकी फ़िल्म में कहीं कोइ जरूरत नहीं थी,मोदी के भाषणों को फिल्म के आखिर में सुनना गैर जरूरी सा लगा,उसके बाद ओम वाला एक गीत है जिसका लाजिक कभी समझ नहीं आएगा.

मेरे आगे एक अंकल बैठे थे जो फिल्म के दसवें मिनट में यह कहकर उठ गए कि मनमोहन सिंह कांग्रेसी जरूर था मगर इतना बुरा पीएम नहीं था जैसा ये दिखा रहे हैं. मेरे बगल वाले अंकल कहने लगे कि ‘संजय बारू इज माई फ्रेंड एंड ही टोटली डिसअपाइंट अस बाई दिस,आई थोट देर इज सम इनसाईड स्टोरीज विच ही टोल्ड अस आफन ,बट देर इज नथिंग सीरियसली’   (संजय बारू मेरा दोस्त है लेकिन उसने निराश किया मैंने सोचा था वह इनसाईड स्टोरी लायेगा जो वह हमें अक्सर सुनाया करता था). खैर अंकल को मैंने कहा फिल्म संजय ने नहीं बनाई,किताब के ऊपर स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले लिखा गया है.

कुल मिलकर आगामी चुनाव में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेगेटिव प्रचार के लिए बनाई गयी फिल्म से ज्यादा ये कुछ नहीं.

 

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