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फसक पुराण

अक्टूबर 14, 2016 ओये बांगड़ू

जोगा सिंह कैड़ा हमें सुना रहे हैं फसक पुराण, फसक का अपना एक अलग महत्व है, जो लोग फसक को नहीं समझते वो इसे ध्यान से पढ़ें उन्हें फसक समझ आ जायेगी

खाली फसक निमारो

फसक मारना भी जिंदगी को इतना सुख दे जाता है जो दौलत नहीं दे सकती ।शहरों में लोग एकाकी जीवन बिता रहे होते है इस बात का आनंद कम ही उठा पाते है।
गाँव की चौपाल दुकान या किसी छायादार पेड़ की छाँह इस बात की गवाह है
कि लोग कितना लुफ्त उठाते है। वहाँ औरते भी धारों नौलों या अन्य जल स्रोत्रो पर फसक मारने का मौका ढून्ढ ही लेती है। कभी कभी तो सिर पर बोझ को बिना उतारे घंटो बतियाने का लुफ्त उठाती रहती हैं ।जंगल घास लकड़ी के लिए आते जाते सारा रास्ता
गप सप अर्थात फसक का आनन्द लेते कट जाता है । फुर्सत के छण हों या कोई सामूहिक सामाजिक काम फसकी महफ़िल सजाते देर नहीं लगती । ये फसक मंडली संचार प्रसार न्यूज़ चेॅनल की तरह रूप धारण कर लेती है।
हसीं ठिठोली पूरे देश गाँव की खबर एक जगह पर नाना विषय नाना तर्क सुझाव समाधान सब वही पर हो जाता है। राज निति से लेकर टांग खिचाई तक सब हास्य बीनोद में होता रहता है ।कभी जूते चपल नहीं चलते। फस्कों का स्वाद भरा वार्तालाप आनंद विभोर कर देता है और भाईचारे की डोर को और भी मजबूत कर देता है। और भी कई जगह है जहा ये ग़प सप फसक परमानन्द की अनुभूति देती है। इतना ही नहीं ये समाज शास्त्र और अनुशासन का पाठ पढा ने मे भी अहम् रोल अदा करती है। जो कुछ भी हो मनुष्य बिना इसके लुफ्त उठाये रह नहीं सकता। काली फसक भी होती है जिस में नारद का रोल ज्यादा दिखता है इसको खुसर पुसर के नाम से जाना जाता है।
इसमें कान भरने का या किसी की बखिया उधेड़ने की चाल खेली जाती है बन्दुक दुसरे के कंधे में रख कर गोली दागने के काम होते रहते है। अब राम के साथ रावण न होता तो तुलसी दास क्या लिखते ।

आज की फसक बस इतनी कर लेना चाहे कल बात जितनी।

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