आज दिवाली है और सारे शॉपिंग तै ले कै सफाई तक के काम निपटा के पूजा अर धूम-धड़ाके करन की तैयारियां मै लग रे है ,पर जब एक बेचारे पति नै पर्यावरण की रक्षा करन का अपना फर्ज निभाया तो अपनी पत्नी को ही फुलझड़ी से लेकर अनार तक बनाया . पटाखे ना फोडन का सन्देश देती मजेदार कविता आप सब नै जोर तै हँसान ताई oyebangdu शेयर करै है . पढ़े सत्यदेव शर्मा की लिखी कविता ‘दिवाली’ .
पत्नी नै अपनी अक्लबन्दी की मोहर
मेरे दिल पै जमा दी
और दीवाली आवण तै पहलम
सामान की एक लम्बी लिस्ट
मेरे हाथ में थमा दी।
लिखा था-
अपने लिये एक साड़ी
बच्चों के लिए नये कपड़े
नये जूते, दो बर्तन
खील-खिलौने और पताशे
पूजन के लिए फूल जरा-से
रंग दो माशे / तथा ढेर सारा
पकवान का सामान व
दो किलो मिठाई भी आप लायेंगे और पचास रुपये के पटाखे
जो दीवाली के दिन बच्चे छुटायेंगे।
माथे पै हाथ धैरकै
दो घूंट सबर की भरकै
मैं बोल्या- रै बिट्टू की मां!
तनै अपना पति प्रेम खूब दिखलाया
और मेरा पाजामा जो सात जगहां तै पाट रह्या स
तेरी लिस्ट में उसका जिक्र तक नहीं आया!
देख! दीवाली शोक से मनाइये
लक्ष्मी पुजन भी करवाइये
पर फिजूल खर्च से तो बच जाइये।
सीमित साधन और ये महंगाई
पचास रुपये के पटाखे
यह बात कतई समझ में नहीं आयी।
के तेरे याद नहीं सै
पिछले ही साल पडौसी के छोरे
परमा की आख पटाखे तै फूटगी थी
और रामू की सारी पूली
इस मरी बारूद नै फूंक दी थी।
इस धरती का पर्यावरण तो
इन कारखानों और मोटर के धुए से
पहले ही प्रदूषित हो रहया सै
इस पर भी तूं दो कदम आगे बढै सै
पत्नी बोली-
मेरी बात तो तेरै सांप की तरयां लड़ै सै
यो मारा देश दीवाली के दिन
भैड़-भैड पटाखे छुटावैगा
मेरा छोरा के खड़ा लखावैगा
अरै सत्यानाशी!
जब त् इतना ही आदर्शवादी बनै था
तो ये बालक क्यूं जणै था।
जब मैनै बात बिगड़ती देखी
तो अपना गुस्सा दूर भगाया
और प्रेम से उसे समझाया।
देख! पटाखा-सा तेरा छोरा
चटर-मटर-सी छोरी
और ये हसीन हँसी जब तेरे मुंह तै फूटै सै तो घल्लू की मां
घर के बगड़ में अनार-सा छूटै सै ।
और नयी साड़ी बान्धकै
जब तूं डग-डग पै दीप धरैगी
तो फूल बखेरती हुयी ये फूलझड़ी
शर्म तै डूब नहीं मरैगी ।
प्यार से समझाया
तो घरवाली का हृदय तर होग्या ।
और मेरी बात का उस पर असर होग्या
बालका की मां
अब मेरे काम में दखल नहीं करैगी
और दीवाली जैसे मैं चाहूंगा
वैसे मन्नैगी–वैसे मन्नैगी — वैसे मन्नैगी।