अबे बांगड़ू ये कायदे और कानून केवल इंसानों के लिए हैं, या जानवरों के लिए भी? अब भाई एक अजीब वाक्या हो गया दिल्ली के बदरपुर में! बस स्टाप पर सारे बुद्धिजीवी एसी बस के इंतज़ार में खडे थे, कुछ नें तो कान में एकदम घुसेड के हेडफ़ोन पर कानफ़ाडू संगीत भी बजा रखा था और कुछ अखबार लेके ना जानें कहां कहां की चिन्ता ले के माथा फ़ोडे हुए थे और हम, हम तो ठहरे बांगड़ू! सो चुप्पे से स्थिति का जायजा लेने मे व्यस्त थे लेकिन तभी!!
ना मालूम कौन से लोक से एक सांड प्रकट हो गया, वह भी एकदम क्रोधित मुद्रा में। अबे एकदम भगदड जैसी मच गई बस स्टाप पर। जो कान में हेडफ़ोन घुसेडे थे वह फ़ोन फ़ेक के भागे और बुद्धिजीवी अखबार फ़ेंक के। सांड भाई नें पहले बस स्टाप खाली कराया और फ़िर बस स्टाप पर चुप्पे से खडा हो गया। मुझे लगा बस पकडनें ही आया था। ना हिलता और ना डुलता। एकदम मूर्ति बन के खडा था अपना सांड भाई। बस आई लेकिन कोई चढ ही न पाया। बस स्टाप पर बस ड्राईवर नें सांड को खडा देखा तो थोडा पीछे ही बस को रोका लेकिन कोई चढ न पाया, जब तीन चार बसें निकल गई तो फ़िर किसी नें बोला, अरे कोई इस सांड को निकलवाओ, इसनें तो नाक मे दम कर रखा है क्या किया जाए?
हम कहे अबे सांड ही तो है, हमारे फ़िरोज़ाबाद में तो हर चौक पे इन्ही के दर्शन होते हैं और ई त दिल्ली का दिल वाला सांड है, इसको भी लोगों की आदत होगी, कुछ नहीं होगा!
हिम्मत जुटा के साहब हम आगे बढे और हमारी पूंछ पकड के बाकी लोग। बस स्टाप पर अब सांड और सांड के साथ सारे लोग, अब लगा की लोग और सांड बस पकडनें के लिए खडे हैं। अपना सांड भाई अभी भी मूर्ति बन के खडा है। बस आई! अपनें हिन्दुस्तानी भाई लगे धक्कम पेल में, सबको गिरा लुढका के बस में सबसे पहले सवार होनें के लिए लगे धकियानें लेकिन इस हरकत से सांड भाई नाराज़ हो गया और लगा बस के दरवाज़े पर अपना गुस्सा निकालनें। जहां लोगों की भीड थी वहां फ़िर से सन्नाटा था, ना सांड चढा और ना लोग!
अबे सांड को लगा पहले वह चढेगा लेकिन अपनें यहां न सांड कायदे कानून जानते हैं और न लोग, लगे धक्कम पेल मचानें अगर कायदे से लाईन लगा के चढे होते तो न सांड गुस्साया होता और न लोग गिरे पडे होते। बहरहाल थोडी देर बाद सांड को खोजते दो चार गुंडे टाईप लोग आये और उन्होनें कोई आधे पौन घंटे की मश्शकत और जोर आज़माईश के बाद सांड को काबू किया।
अजब देश है भाई, बस स्टाप पर इंतज़ार करते समय बुद्धिजीवी बने रहते हैं, कान में हेडफ़ोन घुसेडे रहते हैं लेकिन बस में चढनें के टाईम धक्कम पेल मचा के सबको गिराते धकियाते हुए चढते हैं। अब ऐसे में तो कम से कम सांड भाई का सनकना जायज़ ही था न?