दिल्ली नोएडा की शक्ल सफेद से काली हो गई है, हवा में हवा कम सिगरेट का धुंआ ज्यादा नजर आ रिया है और चिचा कह रहे, अरे कुछ न ये तो खुशी का धुंआ है.आएगा ही. वैसे इस काले ख़ुशी वाले धुएं को धियान से देखे तो हवा की गुणवत्ता नापने का सूचकांक बता रिया है की भाई लोगों जो सूचकांक 50 से ज्यादा नहीं होना चाहिए वो 328 पर पहुंच रिया हैं.
वैसे हमारे आदरणीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखे 8 से 10 बजे छोड़ना उसके बाद जो छोड़ेगा उसे पकड़ कर बन्द कर देंगे। मगर देश की जनता कहाँ सुनती है। सबको राम के त्रेता युग मे घर वापस आने की खुशी मनानी थी , और खुशी भी ऐसे जैसे पहले कभी न मनाई हो।
चिचा मिले चाय की दुकान में, उधर नोएडा में घुसते ही जो चाय की दुकान है उस पर बैठकर बीड़ी फूक रहे थे। मैंने जाते ही कहा, क्या चिचा देश की हालत खराब करके सुकून मिला, आपके कहने पर आपके चेलों ने 10 बजे बाद भी पटाखे फोड़े मालूम है आपको।
बोले अबे तो क्या हुआ, अक्ल से पैदल हो क्या, सुप्रीम कोर्ट का आदमी 5 बजे छुट्टी करके 6 बजे घर पहुंच जाता है नहा धोकर पूजा करके 8 बजे तक रेडी हो जाता है, तो वो तो फोड़ेगा ही न 8 से 10. अब जरा उसकी सुनो जो कमबख्त 10 बजे दुकान बंद करके घर जा रहा है। अब 10 बजे जाएगा तो 11 बजे पहुंचेगा, फिर नहा धोकर 12 बजे भी रेडी होगा तो उसके बाद ही न पटाखे जलाएगा।
मैंने कहा चिचा तो अगले दिन शाम जला ले न पटाखे। मतलब आप तो हद ही कर रहे हो उसका स्पोर्ट करके
चिचा बोले सुनो मियां देखो देश मे सिर्फ सर्विस क्लास नही रहता, पहले तो फैसले सबको देखकर किया करो, दूसरा जिस चीज पर पूरा बैन लगाना चाहिए उसकी आधी परमिशन देंगे तो ऐसा ही होगा। अब कोर्ट सीधे कहती कि पटाखे फोड़ने ही
नही हैं तो कितना अच्छा होता। कम से कम क्लियर होता न कि नही फोड़ने मतलब नही फोड़ने। हवा देखी कैसी कालेब हो गई है। अक्ल के दुश्मनों को दिखाई ही नही देता कि हवा काली हो चुकी है।
मगर कोर्ट ने परमिशन दे दी, और वो टाइम जिसको सूट नही किया उसने अपने टाइम में फोड़ लिए पटाखे,पुलिस बेचारी क्या करे, जब लोगों को खुद की अक्ल नही है।
राम का स्वागत थोड़े न पटाखे फोड़कर किया था अयोध्या वालों ने , उन्होंने तो सिर्फ रोशनी की थी दिए जलाए थे, दीपमालाएं जलाई थी।
लेकिन त्रेतायुग में हुई घटना को हम आज सेलीब्रेट कर रहे हैं वो भी भयंकर अपडेट करके, हवा हमने अपनी खराब कर रखी है। मगर क्या बताएं परवाह बिल्कुल नही है। नोएडा काली काली दिख रही है, दिल्ली दिख ही नही रही। गुड़गांव का पता नही चल रहा।
लोग यहां रह क्यों रहे हैं ये नही पता चल रहा, दम घोंटू हवा के बीच इंसान सांस कैसे ले रहा है।