पहाड़ी छोरी दीपा जोशी ने बँगला भोजन का इतना रस्वादन कर लिया है कि अब वो कोलकाता में जाकर बंगला भोजन की दूकान चला सकती है. फिलहाल वह बंगला भोजन के बारे में कुछ बता रही है .
बंगाली समुदाय में रहकर जो बात सबसे अच्छी लगी वो है खाना। सच मानो कभी भी बंगाली खाने से स्वादिष्ट खाना खाया ही नहीं। पता नहीं खाना बनाते हुए ऐसा कौनसा मन्त्र उसमें फूँक दिया जाता है, जिससे खाने की सूरत,स्वाद और सीरत तीनों ही बदल जाते हैं। यूँ तो बंगाली माँस-मछली ही ज्यादा खाते हैं। तभी तो घनघोर बुढ़ापा आने पर भी कभी आँखों पर न चश्मा होता है और न ही हाथों में छड़ी। खाना कैसे खाया जाता है, कोई सीखे तो बंगालियों से। कुछ पौंधों का सिरे से लेकर जड़ तक कुछ नहीं छोड़ते। अब कोचू (जिमीकन्द की प्रजाती) को ही ले लीजिए। इसकी जड़ को माछ (मछली) के साथ झोल वाला राँदते हैं, तो तने को चीनी डालकर कभी मीठा तो कभी चटपटा और पत्तों को अन्य सब्जियों के साथ मिक्स वेज बनाते हैं। इसके बाद एक जड़ और होती है जिसे कोचुर बोई कहा जाता है। उसे सरसों के बीज के तड़के के साथ बनाया जाता है। बनाने के लिए पहले वो पतली वाली जड़ लेकर हाथ से ही लम्बा तोड़ते हुए उसे छील लेते हैं और फिर धो लेते हैं। फिर एक पैन में तेल गर्म करके सरसों का तड़का लगाकर बांग्ला झाल डालकर पकाते हैं। बाकी नमक का टेस्ट तो सबका अपना है और हल्दी तो खाने का सबसे मेन आईटम है। बस फिर क्या थोड़ी देर धीमी आँच पर पकाओ और भात के साथ खाओ। वाह क्या स्वाद है, पानी आ गया मुँह में। सच एक सब्जी को 10 तरीके से बनाते हैं वो भी हर बार बिल्कुल अलग स्वाद के साथ और गजब की बात तो ये है कि आप कभी पहचान ही नहीं पाएंगे कि ये एक ही सब्जी की इतनी सारी डिशेज हैं। सब्जियों के नाम डाठा साग (चौलाई), लाऊ(लौकी), पोटोल(परवल),ऊस्ते(करेले),कुमड़ो(कद्दु) और भी न जाने क्या-क्या। खैर नाम चाहे जैसे भी हों पर स्वाद में लाजवाब है। आप भी जीवन में एक बार कभी मौका मिले तो बांग्ला खाने का रसास्वादन जरूर करें।