रामलीला के मंचन के दौरान लोगो को अलग-अलग लीलाएं नज़र आती है. कोई प्रभु की लीला का आनंन्द उठाता है तो कोई उन लीलाओ के बीच अपनी लीला भरी आँखों से दुनियावी लीला को देखने की कोशिश करता है. बांगड़ू चंकी महाराज को भी रामलीला में नेतालीला नज़र आती है, आप भी पढ़िए नेता लीला
जब रामलीला में धनुषयज्ञ के दिन जो देश विदेश के राजा आते है. उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे साक्षात संसद में पक्ष विपक्ष बैठा हो. राजा जनक भी खामोश रहकर अच्छा किरदार निभाते है. कभी-कभी तो शक होता है कि कही रामलीला वाले जानबूझकर नेताओं से मिलते जुलते राजा तो नहीं बनाते. जैसे हर राजा धनुष तोड़ने से पहले बड़ी-बड़ी हांकता है कि मै तो चुटकी में तोड़ दूंगा या मेरे बाए हाथ का खेल है और जब धनुष उठाने की बारी आती है तो जनक से कहता है. अरे कहा धनुष तुडवा रहे हो .सीता ऐसे ही दे दो.
अच्छा एक अजीब इत्तेफाक और देखिये जैसे ये राजा रावण जैसी मुसीबत आने पर एक साथ दुबक जाते है और तब तक दुबके रहते है जब तक बला टल नहीं जाती ठीक वैसे ही जब संसद में कोई बिल आता है तो हमारे नेता भी एक साथ दुबक जाते है और तब तक दुबके रहते है जब तक वो बिल टल ना जाए.