आजादी पाने के लिए किसी भी हद तक जाना और बेखौफ अंदाज से जीना ही चंद्रशेखर आज़ाद की पहचान थे. चंद्रशेखर अक्सर कहा करते थे “गिरफ़्तार होकर अदालत में हाथ बांध बंदरिया का नाच मुझे नहीं नाचना है. आठ गोली पिस्तौल में हैं और आठ का दूसरा मैगजीन है. पन्द्रह दुश्मन पर चलाऊंगा और सोलहवीं यहाँ!” और आज़ाद अपनी पिस्तौल की नली अपनी कनपटी पर छुआ देते. अपनी ज़िन्दगी में आज़ाद ने जैसा कहा वैसा ही किया और 27 फ़रवरी 1931 इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में जिसका नाम बाद में चंद्रशेखर आज़ाद रखा गया वहां पुलिस के हाथ जिंदा आने के बजाए अपनी ही बन्दुक से खुद को गोली मार देश की आज़ादी के लिए खुद का बलिदान कर दिया.
चंद्रशेखर आज़ाद ने गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर दिए जाने के बाद खुद को क्रान्तिकारी गतिविधियों से जोड़ लिया और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए. चंद्रशेखर सिर्फ 14 साल की उम्र में 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे और तभी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जब जज ने उनसे उनके पिता नाम पूछा तो जवाब में चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल बताया. यहीं से चंद्रशेखर सीताराम तिवारी का नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ा.
आजाद का बचपन आदिवासी इलाके में बीता इसलिए बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाए और बचपन में ही निशानेबाजी सीख ली. आज़ा चंद्रशेखर आज़ाद बेहद ख़ास बातें कहीं जैसे –
‘जिस राष्ट्र ने चरित्र खोया उसने सब कुछ खोया’
“मैं जीवन की अंतिम सांस तक देश के लिए शत्रु से लड़ता रहूंगा।”
“आज़ाद की कलाई में हथकड़ी लगाना बिल्कुल असंभव है। एक बार सरकार लगा चुकी, अब तो शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे, लेकिन जीवित रहते पुलिस बन्दी नहीं बना सकती।”