यंगिस्तान

यूपी चक्र भाग-2

अक्टूबर 6, 2016 ओये बांगड़ू

“ईमानदारी सिर्फ उत्तराखंड की बपौती नहीं है,” उत्तर प्रदेश की आगे की यात्रा के दौरान हुए ऐसे ही कुछ अनुभवों को हमसे साझा कर रहे हैं विनीत फुलारा

ईमानदारी केवल उत्तराखंड की ही बपौती नहीं है, इस बात को बहुत नजदीक से महसूस किया जब इलाहाबाद से चित्रकूट की तरफ को हम चले। कोई तीस पैंतीस किलोमीटर चलकर जब बहुत भूख लगने लगी तो रास्ते में ढाबे की खोज में नजरें दाएं बाएं घूमने लगी लेकिन उस तरफ को मीलों तक कोई होटल ढाबा नहीं नजर आया। कुछ आगे एक दो चाय पानी की दुकानें दिखी। लेकिन वो केवल चाय और समोसा की दुकान थी, उनसे पूछा की हमें परांठा या कुछ और खाने को नहीं मिल पायेगा तो उन्होंने बताया कि अब तो काफी दूर दूर तक ऐसे कोई होटल नहीं हैं, हमारी परेशानी समझकर उन लोगों ने इधर उधर से व्यवस्थाएं कर किसी तरह पूड़ी सब्जी बनाने की व्यवस्था की अपना सारा बाकि काम छोड़कर। पूरा परिवार जुट गया। दो बेटियां और दंपति, उनकी दुकान पर बैठे स्थानीय लोग भी उनकी मदद करने लगे हाथ बंटाने में। बातों बातों में जब उन्हें पता चला की हम उत्तराखंड से हैं तो उन्हें लगा हम हरिद्वार से हैं, वो उत्तराखंड मतलब हरिद्वार से समझते थे। उनके पास खाना खिलाने को थाली बर्तन नहीं थे ये हम समझ गये जब उन्होंने पूछा की आप यहीं पर खाएंगे या पैक करके ले जाएंगे। हमने खाना पैक करवा लिया। और जब उनसे पूछा गया कि कितने पैसे हुवे तो बड़ा संकोच करते हुवे बहुत ही कम केवल चाय पानी के बराबर पैसा उन्होंने बताया। हमारे यह कहने पर कि -अरे, आपने बहुत मेहनत की हमारे वास्ते और पैसे आप बहुत कम ले रहे हैं वे बोले हमें इस से ज्यादा नहीं पच पावेगा।

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रामनगर एक वहाँ भी पड़ता है चित्रकूट से पहले। भगवान राम एक रात वहाँ भी रुके थे। इसी जगह पर एक खूबसूरत सा तालाब है और चंदेल वंश का बना एक खंडित मंदिर भी है जिसे ओरंगजेब ने तुड़वाया था और अब भारतीय पुरातत्व विभाग फिर से उन टुकड़ों को जोड़कर पुनरुत्थान कार्य करवा रहा है। जब दूर से उस जगह पर नजर पडी तो पीछे से आते हुवे साइकिल सवार से हमने पुछा ये कौन जगह है? साहब पूर्व प्रधान निकले। उन्होंने पूछा कहाँ से आय रहे हैं?

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उत्तराखंड बताने पर बोले चलो हम लोग आप लोग के खाने को प्रबंध करते है, आप लोग खटिया पर जाकर बैठें उल्लंग को, उहाँ पर ही हमारा घर होवत है, उसके बाद हुवाँ को घूमके आओ भय्या, बहुत ही श्रेष्ठ जगेह है जिहां आप आये हैं। हमने हाथ जोड़े, बोले खाना तो हम खा कर आये हैं। बस घूमना है। वहाँ पर asi की तरफ से शुक्ला जी देखरेख करते हैं उस जगह की। तालाब में नहाने की हिम्मत हम नहीं जुटा पाये लेकिन वहाँ पर स्थित प्राचीन कुआं हमारे लिए गर्मी से निजात दिलाने में मददगार साबित हुवा। पानी निकलने वाली बाल्टी टूटी हुवी थी तो शुक्ला जी ने अपनी बाल्टी देकर नहाने की व्यवस्था की।

चित्रकूट आधा उत्तर प्रदेश में आता है और आधा मध्य प्रदेश में, तो हमारा दिन का खाना मध्य प्रदेश में हुआ। उस तरफ बारिश थी। खाना खाते हुवे उस होटल से बाहर सड़क पर कुछ लोग पाकिस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान हाय हाय के नारे लगाते हुवे एक पुतला लेकर जाते हुवे दिखाई दिए, बाद में पता चला की वो गले में मोटी मोटी सोने की चेन पहने हुवे और आँखों में रे बेन का चश्मा लगाये हुवे अधिकतर मोटी काया के लोग किसी पार्टी विशेष के कार्यकर्ता व् पदाधिकारी थे और फोटो खिंचवाने की होड़ में पुतले की छीना झपटी सी चल रही थी। मैं भी खाना छोड़कर अपना कैमरा लेकर उनकी फोटो लेने चल दिया, लोग मुझे मीडिया से जुड़ा समझकर पोज देने लगे। वहीँ पता चला कि उरी में हमले में हमारे काफी जवान शहीद हुवे हैं। हम देश दुनिया की किसी भी ख़बरों से कटे हुवे थे इस दौरान।

यूपी चक्र का पिछला भाग पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

यूपी चक्र – “एक पहाडी” का बाई रोड मैदान का अनुभव

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