यंगिस्तान

याद है दिल्ली का वो काला बंदर

अक्टूबर 12, 2016 ओये बांगड़ू

बहुत साल पहले दिल्ली में एक काले बंदर का कहर आया था अभिषेक बच्चन अभिनीत “दिल्ली-6” में इसको थोड़ा सा महसूस कर सकते हो. तो उस दौर में वो बंदर कमाल करता था , टीवी न्यूज सब जगह उसी के चर्चे थे. सुबोध मिसरा ने उसी बंदर की याद दिलाते हुए ये लिखा होगा पिछले साल . हमारे पास आज पहुंचा . पढो अगर काले बंदर की न्यूज आपने सूनी होगी तो आपको बहुत मजा आएगा.

काला बंदर याद है ??? दिल्लीवालों को तो अच्छे से याद होगा,…….
पूरबिया भाई लोग याद करें तो “मुंहनोचवा” याद आएगा !!!

बड़ी ज़बरदस्त हवा उड़ी थी. गर्मी होने के बावजूद लोग छत पर नहीं सोते थे । जो सोते थे, उनके पास अक्सर लाठी- डंडा रखे होते थे । हमारे साथ वाले मकान में एक लड़का रहता था, इनामुल । उस लड़के का बड़ा ज़बरदस्त “खाता” चलता था साथ वाले स्कूल की बारहवीं में पढ़ने वाली अंशिका से । और अंशिका रहती थी हमारी छत से कोई तीन छत बाद.
दोनों बजर दुस्साहसी !!! एक बार दोनों को अंशिका के भाई ने स्कूल टाइम में बाहर किसी पार्क में पकड़ा था रंगे हाथ, ‘प्रेम ग्रन्थ’ रचते !!! एक बार दोनों “तालकटोरा गार्डन” से भी बरामद हुए थे !!! रात में छत टाप कर मिलने की कई नाकाम कोशिशें इनामुल कर चुका था. हम कई बार ‘किसी के आ जाने की सूचक सीटी’ मार चुके थे ।।।।
तो…
‘काला बन्दर’ वाली एक रात दुस्साहसी प्रेम फ़िर जाग खड़ा हुआ ।। इनामुल अपनी छत टाप के हमारे पास आया, उसके सोखते से हमने तुरंत भांप लिया कि आज फ़िर सीटी मारनी पड़ेगी !!! लेकिन आज लड़का फुल ‘क्रान्ति मोड’ में था बोला, “आज तू बस तमाशा देख छोटे दो घंटे रह के आऊंगा” । हमारी बत्ती गुल “ओ भाई !!! तू आज मरेगा सुन ले साफ़- साफ़, मौत पड़े तो उस तरफ़ भागियो, इस तरफ़ आया तो पहले दो लट्ठ मैं धर दूँगा !!”
“चुप बे मनहूस !!! कोई नहीं पकड़ पाएगा आज देख लियो…..”
“अबे मान जा, अँधेरे में किसी ने काला-बन्दर समझ के पेल देना है तुझे…..”
“मेरी जान !!! आज काला-बन्दर ही तो बचाएगा मुझे” इनामुल ने आँख मारी, और सीधा एक उछाल में पहली छत पार.
आधा घंटा बीत गया, कोई सूँ- साँय नहीं. हम समझ गए “आज लड़का बॉर्डर पार कर गया है” । पड़े पड़े अभी आँख लगी ही थी कि अंशिका के घर की तरफ़ से ज़बरदस्त चीख सुनाई दी !!! और शायद अंशिका ही चीखी थी, “मम्मीईईई..!!! काला- बंदर्रर्र..”
और अंशिका के भाई उसके घर की दूसरी तरफ़ (हमारे घर से उलटी दिशा) को लट्ठ लिए छतें टापते दिखे..!!!
इधर हमारी सिट्टी- पिट्टी गुम……….
चुप-चाप नीचे हुए और ओढ़ने के लिए चादर खींची ही थी कि काली चादर ओढ़े मुँह पे कुछ लपेटे एक साया, हमारी छत पर प्रकट हुआ
हमने बगल में पड़ी रॉड उठा के अगले की जाँघ पर एक जबर प्रहार किया एक झटके में वो साया हमारे ऊपर था, और हम नीचे ज़मीन पर बिछे बिस्तर पर,”अबे मुए मैं हूँ !!!”
“ओ त्तेरी की.. तू….”, बेचारा इनामुल जाँघ पर पड़ी चोट सहलाते हुए बोला.
“जानेमन के मोहल्ले से बच आया था. कुत्ते, तूने पेल दिया !!!”
“मगर तू बचा कैसे. उधर तो हल्ला हुआ था बहुत, मुझे लगा..”
“मुझे मरवाने की ही सोचियो तू कमीने.!! अबे उसके भाई तो दूसरी तरफ़ गए न.. “काला-बन्दर” ढूँढने..”
“तो मतलब..” हमारी अक्ल के कबूतर उड़ गए………
इनामुल बिस्तर में हँसते-हँसते लौटने लगा..”हाँ बे..आज का ‘काला-बन्दर’ मैं ही था ।।।।।।।।।

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