बांगड़ूनामा

‘बस चाटणियां रह रे सैं ’

अक्टूबर 19, 2016 ओये बांगड़ू

हरियाणवी बोली मै ही मजाक भरा है. हर बात पै मखोल(मजाक) करना हरियाणा आला की आदत मै शुमार है. हरियाणवी भाषा मै कई कहानी,कविता अर रागनी लिखी गयी पर सब के सहमी ना आ सकी. हरियाणा के मशूहर चौधरी मेहर सिंह नै फौज मै रहते होए 1936 मै आन वाले टाइम के बारे मै कुछ न्यू बयां कर दिया जैसे आज ही लिखा गया हो. आप भी पढ़िए ‘बस चाटणियां रह रे सैं ’

 

आग्या बुरा ज़माना मतलब गाठणियां रह रे सैं
दे कै जुबान करार बख्त प नाटणियां रह रे सैं

झूठ बराबर पाप नहीं पर बोले सर्ता कोन्या
पेटा भरना चाहिए मानस का पर फेर बी भरता कोन्या
पर त्रिया हो नागन काली नर फेर भी डरता कोन्या
और लाड करण के होया करे कोई भी करता कोन्या
आज माँ जाये भाई के सिर न काटणियां रह रे सैं

अगड़ पडोसी न्यू चाहवे इसके ना क्याहै का चा हो
इसके घर का ऊंट मटिल्ला होज्या और ना छोरे का ब्याह हो
अपना मारै इसी जगह गेरै ना तडपे ना घा हो
बिराना मार के ल्या छोडे जित ना पानी ना छां हो
गैर घरां की बहु बेटी तै सांटा साटणियां रह रे सैं

थोड़े माणस प्यार की खेत्ती मन्नै बोवण आले देखे
घने ऊत मन्नै धूम्मे के मिस रोवण आले देखे
प्यारा बणके धन दौलत न ढोवण आले देखे
माणस प्यारे श्यान बख्त प खोवण आले देखे
ब्याह की जगह मौत प लाडू आज बाटणियां रह रे सैं

बिन आई म्ह मर्या करे जो करदे बिना बिचारे
कोण आपणा कोण पराया मैंने जोड़ लगा लिए सारे
चौड़े के मांह मरवा दे ये आजकाल के प्यारे
भोत से माणस रोवै सैं “जाट मेहर सिंह” के मारे
और प्यारे बनके धन दौलत ने बस चाटणियां रह रे सैं

 

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