लॉकडाउन से पहले हम हजार से भी कम मरीजों से घिरे हुए थे,लॉकडाउन के बाद हमारे आस पास लाखों मरीज हो गए हैं,हमने इतने दिन घरों में बंद रहकर,अपना काम धंधा छोडकर बिता दिए,हमें क्या एक बेहतर परिणाम मिला ?
लाकडाउन के बाद हालात सामान्य होंगे इस बात के साथ 25 मार्च को जब लॉकडाउन घोषित किया गया था तब भारत में कुल मरीजों की संख्या 500 से कुछ ज्यादा थी.लॉकडाउन को एकदम नोटबंदी की तरह लागू किया गया,किसी को संभलने का कोइ मौक़ा नहीं,किसी के पास घर में बंद रहने की कोइ तैयारी नहीं,यूं रातों रात सरकार ने कह दिया की हम कुछ दिन के लिए (31 मार्च ) सब कुछ बंद कर रहे हैं. कोरोना को लेकर उस समय अमेरिका और इटली से काफी भयानक खबरें आ रही थी जिन्हें सोशल मिडिया और मेन स्ट्रीम मीडिया में काफी दिखाया जा रहा था,लेकिन भारत के अंदर सिर्फ 500 से कुछ ज्यादा मरीज मिले थे.
अमेरिका के बुरे हाल और इटली की कई खबरों ने भारत की जनता को इस कदर दहला दिया था कि लॉकडाउन ही एकमात्र उपाय नजर आ रहा था.लेकिन क्या एक सरकार होने के नाते देश को चलाने वाली संस्थाएं भी यही मानती थी कि इतने कम मरीजों पर लॉकडाउन एक सही फैसला है ? हाँ . सरकारों ने जिस तरह फैसले लिए,और रातों रात लॉकडाउन की घोषणा करी उससे तो यही लगता है कि सरकारों ने इटली और अमेरिका के उस समय के हाल देखकर अपने देश के हालात, और अपने देश की वस्तुस्थिति को देखे समझे बिना एक फैसला ले लिया.
यह फैसला एक सफलतम फैसलों में गिना जा सकता था अगर इस दौरान एक बेहतर तैयारी के साथ आगे की रूपरेखा तैयार होती,लेकिन इस दौरान आगे की रूपरेखा के नाम पर कुछ भी ठोस कदम नजर नहीं आया.
दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में जब एक के बाद कई सारे लोग कोरोना पोजिटिव पाए गए तो मीडिया ने उस समय कोरोना का सारा जिम्मा इन लोगों पर डालकर सबका ध्यान इस मुख्य मुद्दे से हटा दिया कि कोरोना को लेकर सरकारें क्या ठोस कदम उठा रही हैं,लॉकडाउन खुलने की स्थिति में क्या और कैसे देश आगे बड़ेगा इसके ऊपर किसी भी मीडिया संस्थान में कोइ चर्चा हुई ही नहीं,निजामुद्दीन मरकज को लेकर दिन के दस एपिसोड बनाने वाले बड़े बड़े मीडिया हाउस न तो प्रवासी पैदल चल रहे मजदूरों पर कोइ बात कर रहे थे और न ही सरकारों द्वारा किये जा रहे किसी काम पर,दिन के समय केन्द्रीय स्वास्थ मंत्रालय एक हेल्थ बुलेटिन जारी करता था जिस पर मरीजों की संख्या और कोरोना को लेकर देश दुनिया में क्या हो रहा है जैसी सामान्य जानकारियाँ रहती थी,इसके अलावा कुछ अफवाहों को करेक्ट करके,प्रेस कान्फ्रेसं समाप्त, देश में जब लॉकडाउन खुलेगा तब क्या करना होगा? इस सवाल के जवाब में “सोशल डिस्टेंसिंग,हाथ धोना,मास्क पहनना’ बस यही जरूरी चीजें बताई जा रही थी.
बार बार जनता से अपील की जाती थी कि जिसमें लक्ष्ण नजर आये वह लोग आकर टेस्ट करा लें,लेकिन ये सब तो एक सामन्य लोकल प्रशासन भी कर सकता था,क्या सरकार के लिए यह जरूरी नहीं था कि भविष्य को लेकर एक ठोस रूपरेखा तैयार करे, मीडिया ने जब जब किसी न्यूज को लगातार फ़ॉलो किया तो सरकारें भी उसके पीछे लग गयी,जैसे शुरुवात में पैदल ही अपने घर को निकल गए मजदूर,जिनके लिए बाद में दिल्ली सरकार ने शेल्टर और खाने पीने की व्यवस्था करी,लेकिन क्या यह काफी था ?
एसा लग रहा था कि सरकार यह देख रही है कि मीडिया क्या मुद्दा उठा रही है और उस आधार पर सरकार कुछ फैसले ले रही थी, अब वह भले ही प्रवासियों की समस्या हो या बंद उधोगों की, लोगों की खत्म होती सेविंग्स पर चर्चा हो या मध्यम वर्ग की जाती नौकरियां..
हालांकि अब भी नौकरियों को लेकर सरकार की तरफ से कोइ रूपरेखा नहीं दिखाई गयी है,और 20 लाख करोड़ के पॅकेज के नाम पर एसा झुनझुना हाथ आया है कि मध्यम वर्ग को ये समझ नहीं आ रहा कि इतनी बड़ी राशि सुनायी तो दी मगर गयी कहाँ ?
इस पूरे लॉकडाउन पीरियड में एक बेहद कमजोर प्रशासन देखने को मिला,यह बात सिर्फ इसलिए कही जा रही है कि अभी तक हमें सिवाय लाठी चलाते पुलिस वाले,राशन बांटते एनजीओ और आंगनबाड़ी कर्मी,हास्पिटल में मरीजों की तीमारदारी में लगे डाक्टर्स,विभिन्न जगह बदहाल हुए क्वारनटीन सेंटर और जगह जगह कोरोना काल की ड्यूटी दे रहे सरकारी अधिकारियों के अलावा,अभी तक कुछ भी एसा ठोस देखने को नहीं मिल रहा जिसके आधार पर हम कह सकें कि हम धीरे धीरे सुरक्षित हो रहे हैं.
लॉकडाउन से पहले हमारे आस पास 500 के करीब कोरोना मरीज थे और आज हमारे आस पास एक लाख से कई ज्यादा, तो हम क्या मानें ? कि हम लॉकडाउन से पहले सुरक्षित थे या बाद में ? शराब की दूकान खुलती है और जमकर भीड़ लगती है,ये सिर्फ एक शराब की दूकान खुलने पर उडी क़ानून की धज्जियां हैं,सिर्फ एक शराब की दूकान ने लॉकडाउन खुलने पर तैयार सरकारों की रूपरेखा कि धज्जियां उड़ाकर रख दी.
हम अब ज्यादा सुरक्षित हैं?????? या पहले थे ???