कभी गढ़वाली बोलने वाला एलियन देखा है नहीं तो जरूर देखें अनुज जोशी के निर्देशन में बनी हिमालयन फिल्मस की गढ़वाली फिल्म ” काफल” . गढ़वाली भाषा में दो साल पहले बन चुकी इस फिल्म पर मेरी नज़र हाल ही में पडी. उत्तराखंड के पहाड़ी सौंदर्य तले बनी यह फिल्म अपनी बोली बचाने के लिये अपनों से ही लड़ते बेडू नाम के बच्चे की कहानी है. बेडू को गढ़वाली भाषा से प्यार है अपने पहाड़ से प्यार है. फिल्म में बेडू की एंट्री भी हम्मा भी छीं दम, केसे नीं छ कम,बच्चा गढ़वाल का हम.. गाने के साथ होती है. बेडू के पिता भी एक सामान्य पहाड़ी पिता की तरह उसे अँगरेजी और हिन्दी सिखाना चाहते हैं. हालाँकि बेडू हिन्दी बोलता है पर गढ़वाली लहज़े की उसकी हिन्दी से पिता नाखुश हैं. बेडू के पिता बार-बार उसके मासूम सवालों के उत्तर देने में खीज जाते हैं. अब कोई पिता कैसे अपने बच्चे को समझा सकता है कि क्यों फर्राटे से गढ़वाली बोलने वाले को फर्राटे से अँगरेजी बोलने वाले से कम कर आँका जाता है. ऐसे में बेडू की मुलाकात बेडू पाको बारो मास गुनगुना कर उसकी धून में थिरकने वाले एलियन से होती है जो कि मंगलं ग्रह से आया है. कुल-मिलाकर काफल बिना किसी नाटकीयता के कहीं गयी सीधी-सादी कहानी है एकदम पहाड़ियों की तरह.
फिल्म के एलियन वाले हिस्से को छोड़ दिया जाय तो शायद 90 के दशक में उत्तराखंड के पहाड़ों से पलायन करें हर बच्चे ने काफल की कहानी को जिया होगी. अपनी खुली बाखुडी से दो बाय दो की बाल्कनी में सिमट गये हैं हम .ईजा-बाज्यू जैसे शब्द पापा-मम्मी जैसे शब्दों से बनी ममी की पट्टीयों के बीच ठूँस दिये हैं हमने. फिल्हाल डैड और मॉम की कीलों से ताबूत ठूकना चालू है. भैजी-भुला-नौनी-काक-चेली जैसे शब्द अँगरेज़ी शराब में घोल गटक गये हैं हम. अमिताभ बच्चन के झंगोरे की खीर खाने के ख़बर हमें झंगोरे की खीर का स्वाद याद दिलाती है. जापानी लोगों के अपने बच्चों को मड़वे खिलाने की ख़बर हमसे बड़े व्यापार मेलों में मड़वा ढुढ़वाती है. जापानी अपने बच्चों के मानसिक विकास के लिये मड़वे की कुक्कीस बना खिला रहें हैं और हम चाईनीज़ नूडल अपना रहे हैं. नौले-गधेरो के ठंडे पानी की मिठास हम केम्पा-कोला की बोतलों में खोजते है हम.
चाहे सरकारों को कितना दोष दे दो लेकिन एक सच ये भी है कि तुम-हमसब एक हत्यारे हैं. एक संस्कृति के हत्यारे. जिन्होंने लोग क्या कहेंगे के डर से अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारी है. ख़ैर फिल्हाल मजा लिजिये काफल फिल्म का. भले ही कुछ लोगों को कहानी के संबन्ध में शिकायत हो लेकिन फिल्म का परिवेश बड़े शहरों के छोटे कमरों की गर्मी मिटाने को पर्याप्त है. लिंक नीचे है.