ओए न्यूज़

एसे लड़ते हैं पहाडी कपल

अक्टूबर 21, 2016 ओये बांगड़ू

करवा चौथ गया और अब आये उसके अनुभव, पतियों ने इस भूख हडताल को समाप्त करवा कर अब जाकर अपनी पीडाएं शेयर करना शुरू किया है. एक पहाडी पति विनोद पन्त ने तो करवा चौथ की अपनी पूरी दिनचर्या को ही यहाँ उतार दिया है. पहाडी में पढ़िए फिर जिसे समझ ना आये वो ब्रेकेट में हिन्दी में आनन्द उठाइये इस मीठी तकरार का .

रत्ति ब्याण (सुबह सुबह )-

स्यैणि(पत्नी ) – उठना कन फटाफट नै ध्वे बेर तैयार है जाओ . आज करु
चौथ छ

(उठते क्यों नहीं जल्दी , नहाओ और तैयार हो जाओ आज करवा चौथ है ).

पति – पड़ण दी .. क्याप बबाल छ . हमार पहाड़न में
कां हुं तौ करु चौथ ? पैलि बटी हमैरि ईज और आमैलि
कबै न कर तौ बर्त .. अाजकलाक नई जपान वालनाक टटम भै तौ .

(सोने दे , हमारे पहाड़ों में नहीं होता ये , पुराने जमाने में हमारी माँ और आमा ने कभी नहीं किया , ये सब आजकल का फैशन है )

स्यैणि(पत्नी ) – पैलि बटी तुमैरि बाबू और बूबू लि कबै मोटर
साइकिल नि चलै . सब जाग पैदलै जांछीं . तुम तो सब
जाग मोटर साइकिलै में किलै डोईंछा … तुमार ईज बौज्यू टैम पर तो
बहुत चीज नि हुंछी .. के के छोड़ला ?

(पुराने जमाने में तुम्हारे पिताजी और दादाजी ने मोटरसाईकिल भी नहीं चलाई , सब पैदल जाते थे तुम क्यों घुमते रहते हो , और तुम्हारी माता जी के टाईम में बहुत चीजें नहीं होती थी सब छोड़ दोगे?)

पति – तु बहस करिबेर म्यार मूंड नि बिगाड़ यार रत्तै रत्तै .

(बहस करके सुबह सुबह मेरा मूड मत खराब कर )

स्यैणी – सुणो पैं .. मेर लिजी कि गिफ्ट
लाला आज ?

(अच्छा..सुनो जी ..मेरे लिए क्या गिफ्ट लाओगे आज ?)

पति – कस गिफ्ट यार रोज रोज .. पोरुवैं मैरिज एनभरसरी
पर एक पौडर क डाब दे तो सही त्वेकैं कोहरयाई
मुंडी डालिये कैबेर . किलै खतम करि हालौ ?

(कैसा गिफ्ट ? परसों मैरिज एनिभर्सरी में पाउडर का डब्बा दिया तो था , खत्म कर दिया क्या ?)

स्यैणि – तुमन में रै जौ उ गिफ्ट . कांहुं गे तुमैरि अकल ? गिफ्ट
दिणक ले तमीज नहांति तुमन .. के भल भल
चीज लूना .. पौडरक डाब .. शरम ले नि उड़य बतूण में .

(तुम रख लो वो गिफ्ट , अक्ल कहाँ गयी ? गिफ्ट देने की तमीज नहीं है , कोइ अच्छी चीज लाते , पाउडर का डब्बा , शरम भी नहीं आ रही बताने में )

पति – यार गिफ्ट दिणी वालैकि भावना देखीं जां
. गिफ्ट नै .

(अब यार गिफ्ट देने वाले की भावना देखी जाती है गिफ्ट नहीं )

स्यैणी – ततु लैकक गिफ्ट वी भावना कैं दि
आया ..भावना देखीं राखी तुमैरि ..

(एसा गिफ्ट उसी भावना को दे आना , देखी है तुम्हारी गिफ्ट देने की भावना )

पति – यार तु कचकचाट नि कर मेर पैन्ट कि जेब बटी सौ
रुपै निकालि लिजा . जी ले पसन्द आल
खरीद लिये .

(यार दिमाग ना खा सुबह सुबह ,पेंट की जेब से 100 रूपये ले जा , जो खरीदना हो खरीद लेना )

स्यैणी – गिफ्ट खरीदण छ .. ब्यालक साग
थोड़ी खरीदण छ . सौ रुपैं में पौ
भरी साग ऊं . गिफ्ट नै उन . उसके ले गिफ्ट
खरीदबेर लूनी . डबल नै दिन .
मी क्वे पौंण थोड़ी छ्यूं सौ रुपै हाथ में च्यापो

(गिफ्ट लेना है , शाम की सब्जी नहीं लेनी . सौ रूपये में पाँव भर सब्जी आती है . वैसे भी गिफ्ट दिया जाता है पैसे नहीं . बच्ची नहीं हूँ जो सौ रूपये हाथ में दे दोगे)
.
पति – अच्छा ब्याल बखत तक लि उल .याद रै जाली तो .

(ठीक है शाम को याद रह जायेगी तो ले आऊँगा )

स्यैणी – रूण दिया एहसान नै करिया .. ब्या दिनन कास
छिया तुम आब कास हैगेछा …

(रहने दो , एहसान करने की जरुरुत नहीं है, शादी के दिन कैसे थे अब कैसे हो गए हो )

पति – तु ले कि ब्या दिनन कसि छी हरि
खुश्याणी जसि आब कसि हैगेछै सग्गी
खुश्याणी जसि ..

(तू भी कैसी थी हरी मिर्च सी अब शिमला मिर्च हो गयी है )

स्यैणी – तुम ज्यादे हाकाहाक झन करिया हां ..
आपुणी तामि खोरि चाओ आरसी में .. बड़
आईं मेकें नाम धरणी वाल .

(अपनी टकली खोपड़ी देखो आईने में , बड़े आये मुझे नाम रखने वाले )
पति – हुंह …
स्यैणी – हुंह …..
दोपहर )
पति – किलै भूक लागि गे ?(क्यों भूख लग गयी ?)

स्यैणी – तुमन कि मतलब .. तुम तो भ्यैर
बटी खै बेर ऐ गे हुनाला ..

(तुमसे मतलब , तुम तो बाहर खाकर आ गए होगे )

पति – होय तेरि आम बैठ रछी बजार में रवाट लिबेर ..

(हाँ तेरी आमा रास्ते में रोटी लेकर बैठी थी  )

स्यैणी – मेरी आम में झन जाया हां …
खबरदार !

(मेरी आमा को बीच में मत लाना )

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पति – हुंह ..
( रात में )
स्यैणी – लाछा …? गिफ्ट ?(लाये ? गिफ्ट ?)

पति – भुलि गेयू यार .. गिफ्टै हैरौ .. यो बुड्याकाल हुंछै गिफ्ट ? तौ
चीज जवानी में ठीक लागनेर भै

(भूल गया , ये बुढापे में गिफ्ट अच्छा थोड़ी लगता है ये जवानी की चीजें ठैरी सब )
.
स्यैणी – तुम तौ फसक आपुण पास धरि करि करो .
कमचूस रना ..
( रात चांद निकलणाक टैम पर )

स्यैणी – यो चांद कब निकलल ? आज तो बहुत देर
करि है .

(ये चाँद कब निकलेगा ? आज बहुत देर कर दी )

पति – चांद कें पत्त नि हुनेल त्वील बर्त करि राखौ
कैबेर . फोन करि बेर बतै दिनी तो टैम पर ऐ जान .
बेवकूफ स्यैणी . नि थाईंड़य भूक तो किलै करौ बर्त …
ऐ जाल आपुण टैम पर . तु हाकाहाक नि कर .

(चाँद को पता नहीं होगा कि तूने व्रत कर रखा है , नहीं तो टाईम पर आ जाता . बेवकूफ औरत ! भूख सहन नहीं होती और व्रत करे बैठी है . आयेगा अपने टाईम पर चाँद )

स्यैणी – देखो धें . बादल लागि गो आकाश में . चांद
ढकी रौ हुनेल .. टैम तो हैगो .. मी यस
करू चांद उज्याण बादलैकि सीध में अर्ध दी
बेर ब्रत खोलि ल्यू कि ? .. न मालूम यो बादल कब तक हटौल ?

(लगता है चाँद निकल आया है . बादल के कारण नहीं दिख रहा , टाईम तो हो चूका है , मै एसा करती हूँ बादल देख कर अंदाजे से व्रत खोल लेती हूँ . क्या पता कब हटेंगे बादल ?)

पति – नै नै तस झन करिये यार .. तेरी खुटी
सलाम … भलीके चांद देखीण दि … तेर
बबाल टलाई में मेर जै आफत ऐ रौली … ले गिफ्टाक
पांच हजार पकड़ … पर चांद भलीके उण दे . बादल
हट जाण दे …. मेरि खिमुली … मेरी
पराणी …. तेरी बलै ल्यून …

(ना ना एसा ना करना , तेरे पाँव पकड़ता हूँ ..अच्छे से चाँद देखना , ये तेरे जल्दबाजी में मेरी जान की आफत बन जायेगी , ले गिफ्ट के पांच हजार पकड़ लेकिन चाँद अच्छे से देखना फिर ही खाने को हाथ लगाना मेरी जानू , शोना ….)

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