‘धार का गिदार ‘ ये एक संग्रह है उन कहानियों का जो नब्बे के दशक में पैदा हुए बच्चों ने बोली , जो ना पूरी हिन्दी थी ना पहाडी . हम प्रवासी थे , अपने अपने गाँव छोड़कर शहर में आये थे शहर में आये थे इसलिए हिन्दी बोलना हमारे लिए जरूरी हो जाता था. अगर हम पहाडी में बात करें तो हमें गंवार कहा जाता था. इसलिए हिन्दी बोलना हमारे लिए जरूरत से ज्यादा मजबूरी थी. इसलिए हमारी मजबूरी ने एक नयी भाषा बोली को जन्म दिया जो थी हिन्दी पहाडी . पहाडी के शब्दों के साथ बोली गयी हिन्दी.
ये वो भाषा थी जो बोली तो जाती थी मगर लिखित रूप में इसके लिए कहीं ख़ास जगह नहीं थी , मनोहर श्याम जोशी जैसे कुछ बड़े लेखकों ने अपने साहित्य में इस भाषा को जगह दी मगर बहुत थोड़ी सी. उसको पढ़कर हम खुश हो जाते थे क्योंकि वो हमारी असली मातृभाषा थी हिन्दी पहाडी . हमारे माता पिता ने पूरी पहाडी बोली. लेकिन हमारे हिस्से आयी आधी हिन्दी आधी पहाडी .
डाक्टर अनिल कार्की की लिखी ‘धार का गिदार’ हमारी उसी बचपन की हिन्दी पहाडी का लिखित रूप है. इन कहानियों में वो शब्द हैं जो हमने अपने बचपन में बोले. ये उस भाषा में है जिसे हमने अपने बचपन में इस्तेमाल किया. एसी भाषा जब आपको लिखित में मिल जाती है तो पूरी किताब कब खत्म हो जाती पता ही नहीं चलता.
शहर शहर बदलते बदलते हमारी हिन्दी पहाडी भी छूटती जा रही थी अव्वल तो पहाड़ के बाहर कोइ पहाडी आसानी से नहीं मिलता और मिल भी जाए तो हिन्दी पहाडी में बात नहीं करता. यहाँ या तो शुद्ध हिन्दी में वार्तालाप होती है या फिर हिंगलिश. बचपन की भाषा जो छूटती है तो बस छूटती चली जाती है. एसे में ‘धार का गिदार ‘ जैसी किताबें अपना बचपन याद दिला देती हैं वो भाषा वो बोली फिर से मिला देती हैं.
कहानियों के शीर्षक से ही आपको एहसास हो जाएगा कि किसी ना किसी पहाडी शहर में हो ‘धदार’ ‘दो रत्ती की फुल्ली ‘. जैसे शीर्षक ही मजबूर करने को काफी हैं. बाक़ी की कहानियों में आईवा की कसमपरेट, धार का गिदार, खिच्याक, ठुल बगस, गड़बड़ेशन, पत्थर फोड़वा, तुमड़िया लौकी, चैमुड़ी और दुर्गा जनरल स्टोर का कलैंडर कहानियां इस संग्रह में शामिल हैं।विभिन्न भाषाओं में हाथ आजमाने वाले लोग भी इसे आसानी से पढ़ पायेंगे क्योंकि इसमें शामिल वाक्य हिन्दी में ही हैं बस कुछ शब्द पहाडी के शामिल किये गए हैं. कहानी का मूल भाव समझने के लिए हर वाक्य काफी है .
डाक्टर कार्की ने पहाड़ की कहानियों के बहाने पलायन, शिक्षा के गिरते स्तर, खनन आदि समस्याओं को प्रमुखता से उभारते हुए सरकारी तंत्र पर चोट की है. नैनीताल में कल इस पुस्तक का विमोचन किया गया है.