पहाड़ में एक प्रथा है । किसी को देवता “लग” जाता है और वह निदान के लिए ‘पुछ्यारे’ /’वाक्किये’ के पास जाता है। दोनों में संवाद कुछ इस तरह होता है :
* हे परमेश्वर,भला कर. संकट दूर कर दे
-देख तू ने पिछली बार झूठ बोला , बोल बोला कि नहीं
*अनजाने हुआ होगा इष्ट ज्यू
– नहीं, तूने कहा मंदिर बनाऊंगा नहीं बनाया। इसलिए भोगना पड़ेगा अपने करमों का फल।
* हे परमेश्वर अबकी बार गद्दी दिला दे तो मैं जरूर बनाऊंगा तेरा बड़ा मंदिर, ऊँची मूर्ति।
– तूने धोखा दिया है । ऐसे ही नहीं मानेगा देवता ।
* नहीं मैं वचन देता हूं अब चूक नहीं होगी,
– तो वचन के साथ बलि भी देनी पड़ेगी…
* उसके लिए तो मेरे लोग सदा हाजिर ठैरे
-अच्छा,अगर मंदिर नहीं बना तो फिर समझ लेना खैर नहीं
* परमेश्वर,अबकी बार जरूर बनेगा
– अच्छा जा सोचता हूं। अभी मेरे थान पर कुछ भेंट रख दे। बाहर चेलों का गला तर कर। मुँह बंद करने का इंतजाम कर। मैं देखता हूँ.
(लेखक-सुरेश पन्त)