गंभीर अड्डा

ये है संगीत की जादूगरी , ये हैं सुर ताल

सितंबर 30, 2016 कमल पंत

संगीत का मर्म वही समझ सकता है जो इसकी साधना करता हो.संगीत साधक चन्द्र शेखर ने अपने इस लेख के माध्यम से आज की पीढी के लिए वह बातें लिखी हैं जो उन्हें संगीत की वह समझ देंगी जो वर्षों की साधना से प्राप्त होती है.

गाना अक्सर सभी सुनते हैं. गाना मन को आनंदित कर देता है. गाना मन को दुनियां से परे ले जाता है. गाना मन को शांति देता है. मन को प्रफुल्लित कर देता है.
जानते हैं आखिर गाना मन को अच्छा लगता क्यूँ है और क्यूं गाना हमें किसी और दुनियां में लिये चला जाता है. आइये जानें कुछ सामान्य बातें जो गाने को बेहतरीन बना देती हैं.
सुर तो गाने की रूह है ही और ताल गाने की रीड़ की हड्डी. बिना सुर के गाना नहीं बन सकता और बिना ताल के गाना चल नहीं सकता धरासाई हो जायेगा. सुर से ही गाने का मूड और धुन बनती है और ताल से गाने की गति. सुर से मन झूमता है और ताल से शरीर. जब सुर और ताल मिलते हैं तो तन मन झूम उठते हैं. सुर पक्का हो और ताल के साथ नियमित गति में हो तब गाने का मजा है.

सुर और ताल के अलावा एक महत्वपूर्ण बात और है , वह है गाने का भाव, शब्दों का भाव यानि कि फील. जब तक गाने में फील नहीं होगा गाना नीरस ही रहेगा जैसे कि बिना चासनी के गुलाब जामुन , बिना नमक के सब्जी , बिना चीनी के चाय इत्यादि. हर एक कलाकार अपने अनुसार शब्दों को भाव देता है. मैं एक शब्द का उदाहरण देता हूं जैसे कि “खूबसूरत”. बात यह है कि मैं इस खूबसूरत शब्द को गाने में किस तरह पेश करता हूं कि उसमें वाकई खूबसूरती की फील आये. इसी तरह एक शब्द है “खुश्बू”. खुश्बू शब्द को किस तरह से जबान पर पैदा करूं कि खुश्बू सा ही लगे. यह हर एक कलाकार अपने तरीके से पेश करता है. यह उस पर निर्भर है कि वह उस शब्द को कैसे महसूस करता है और कैसे पेश करता है. भाव जरूरत से ज्यादा भी नहीं होना चाहिये एक सीमा तक होना चाहिये ऐसा नहीं कि एक कप चाय में 10 चम्मच शक्कर डाल दो वह ज्यादा मीठी हो जायेगी. पीने योग्य नहीं रहेगी. शब्दों का उच्चारण साफ हो और उचित भाव के साथ हो तो गाना सुनने वाला निश्चित रूप से प्रभावित हो जाता है. गाने के बोल भी अपना महत्व रखते हैं किस तरह से गाना लिखा गया है शब्दों का चुनाव किस प्रकार किया गया है.
गाने की धुन और वाद्य यंत्रों का चुनाव , वाद्यों की व्यवस्था कहां पर किस तरह से की गयी है इसकी भी अहम भूमिका होती है. शब्द तो हैं ही मगर वाद्य यंत्र भी कई बार उसी प्रकार भूमिका निभाते हैं जैसे कि खाने में मसाले. अब यह बनाने वाले पर निर्भर करता है कि वह कौन सा मसाला डालता है. जरूरत ये है कि मसाला डिश के अनुरूप ही डाला जाय. ऐसा न हो कि चाय में कालीमिर्च की जगह लाल मिर्च पाउडर डाल दें. या हम यह सोचें कि जलेबी में थोड़ा हल्दी और नमक भी मिला दें तो और ज्यादा अच्छा लगेगा. कभी कभी बिना मसाले वाला खाना भी अच्छा लगता है सादा खाना. यही बात गाने में भी है. बिना तड़क भड़क वाला गाना.

कुल मिलाकर कहने का मक्सद यह है कि एक अच्छा गाना बनाने में बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. उसमें सुर , ताल , रिदम , लिरिक्स , फील , धुन , वाद्य और भी कई सूक्ष्म चीजों का ध्यान रखना पड़ता है. तब कहीं वह एक बेहतरीन गाना बनकर हमारे मन को आकर्षित करता है.

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